हे आत्म साक्षात्कारी महापुरुष, हे परमात्मा स्वरूप दिव्यदृष्टि धारी आप झोला उठाकर हिमालय क्यों नहीं जाते? पारख हो गया है, आत्मज्ञान हो गया है तो यहां वहाँ लोगों के घर डेरा क्यों डालते हो?
हाथ घुमाओ, मंतर पढ़ो, खीर-पूड़ी और लड्डू प्रगट करके खाओ और जरूरतमंदों को भी खिलाओ। शादी हुई होती, घर में बाल बच्चे होते, परिवार की जिम्मेदारी होती तब पता चलता आपको की इस महंगाई में घर चलाना कितना मुश्किल काम है।
हवा हवाई ज्ञान बघारना बहुत आसान है, लेकिन जीना बहुत कठिन। आपके तीसरे पैर को सादर चरण स्पर्श... कृपया दुबारा मेरी ओर मत ताकना...💐