ब्रम्हांड के हर मूर्त और अमूर्त, दृश्य और अदृश्य कृतियों में साहब का ही अंश है। कहते हैं मनुष्य जीवन साहब की असीम कृपा से प्राप्त होता है। जिसको साहब ने स्वयं ही अपने से पृथक कर पुनर्मिलन के लिए रचा है। साहब से मिलन ही इस मानव जीवन का अंतिम ध्येय है। और इस ध्येय की पूर्ति केवल प्रेम के द्वारा ही हो सकती है।
जिन मनुष्यों के बीच आपसी प्रेम और सहयोग की भावना रहती है, जो दूसरों से प्रेम करते हैं, हृदय में हरेक जीवों के प्रति दया का भाव रखते हैं, और जो सबके प्रति स्नेह एवं शिष्टता का व्यवहार करते हैं, वे सब मानव साहब से मिलने के अपने लक्ष्य की ओर ही बढ़ रहे होते हैं।
साहब से मिलन के कई उपाय बताए जाते हैं, लेकिन यह उपाय तभी सफल होता हैं जब उन उपायों में अलौकिक और अगाध प्रेम हो। यह प्रेम श्रद्धा, भक्ति, आस्था, विश्वास आदि कई रूपों में होता है। श्रद्धा और प्रेम से रहित कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती। जिस भक्त को साहब से सच्चा प्यार होता है, वह भक्त भी साहब को प्यारा होता है। उस भक्त के हृदय की प्यास बुझ जाती है, उसे साहब मिल जाते हैं:-
कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आय।
अन्तर भीगी आत्मा, हरि भई बनराय।।
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