बुधवार, 16 सितंबर 2020

मृत्यु का भय...💐

मुझे अजब सा विराग हो जाता है, जब मैं मृत्यु देखता हूँ, किसी को मृत्यु के करीब देखता हूँ। सत्यों में से सर्वाधिक अटल सत्य मृत्यु है, देह का त्याग है। निश्चित ही यदि किसी ने जन्म लिया है तो उसकी मृत्यु भी तय है, निश्चित है। मृत्यु क्या है? क्यों है? मृत्यु के बाद क्या होता है? इनका उत्तर प्राचीनकाल से ही रहस्य है। हर कोई इस रहस्य को जानने को उत्सुक रहता है।

मृत्यु को लेकर सदा से मन में डर का भाव रहा है। मृत्यु हमें सर्वाधिक डराती है। ना जाने क्यों पर वो कल्पना जब मैं मृत्यु शैय्या पर होऊंगा और मेरे प्राण देह का साथ छोड़ रहे होंगे। धीरे धीरे सांसे धीमी हो रही होंगी, नाड़ीयां थम रही होगी। उस समय ये भौतिक शरीर भयंकर पीड़ा महसूस कर रहा होगा। उस अथाह पीड़ा का भय ही मृत्यु से भयभीत करता है। आदिकाल से अब तक हम सब मृत्यु से सर्वाधिक भयभीत रहते हैं, मानो ये देह छोड़ना कोई भयंकर कष्टजनक हो।

दूसरी तरफ देहधारी होना सुखकर लगता है। देहधारी होना सुखकर इसलिए लगता है क्योंकि दुनिया का हर भोग, हर विषय, हर रस हम देह के इन्द्रियों से ही भोग पाते हैं। रसों, विषयों और भोगों में आनंद महसूस करते हैं और इस शरीर को अधिक से अधिक भोगना चाहते हैं।

मृत्यु सुंदर हो या असुन्दर। जो भी हो, मृत्यु सत्य है, शाश्वत सत्य, अटल सत्य।  इसके बिना तो जीवन का कोई अस्तित्व ही नही। जानता हूँ अनेकों प्रश्न अनुत्तरित ही रहेंगे, फिर भी अपनी मृत्यु को समय से पहले देख लेना चाहता हूँ, जान लेना चाहता हूँ कि मेरी मृत्यु कैसे होगी?

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...