रविवार, 20 फ़रवरी 2022

वंश गुरुओं का कार्यकाल...💐

मुझे ग्रन्थों में लिखी साहब की वाणियों की कोई जानकारी नहीं है। जब जानकारी नहीं है तो मुझे उसके बारे में लिखना भी नहीं चाहिए। लेकिन कई प्रश्न मन में उमड़ते रहते हैं, जैसे- "किस ग्रन्थ में किस वंश गुरु का कार्यकाल कितना होगा?" जैसे प्रश्न कोई पूछता है तो बड़ा गुस्सा आता है। ऐसे उल्टे-पुल्टे और बेतरतीब प्रश्न मुझे परेशान करते हैं। 

मैं ग्रन्थों पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाना चाहता। लेकिन मुझे लगता है कि अभी पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब, हुजूर प्रखर प्रताप साहब को गद्दी की जिम्मेदारियों से दूर रखना चाहिए। उनके कंधों पर अभी निकट भविष्य में कोई भार नहीं सौंपनी चाहिए। उन्हें ऊंची से ऊंची आधुनिक शिक्षा और तालीम देनी चाहिए।

यह घोर कलयुग है। भांति भांति के लोग कबीरपंथ से जुड़े हुए हैं, अनेकों टेढ़े मेढ़े लोग और साहब के भक्त उनसे जुड़े हुए हैं। समाज अनेक बदलावों से गुजर रहा है, ऐसे में मैं चाहता हूं कि उनको ऊंची से ऊंची तालीम दी जाए। वो वर्तमान के बड़ी सी बड़ी समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हों, वर्तमान सामाजिक ढांचे के अनुरूप उन्हें शिक्षित और दीक्षित किया जाए।

मेरा मत है कि जब तक पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और परम् पूज्य डॉ. भानुप्रताप साहब इस धरा धाम में विराजमान हैं, तब तक आने वाली पीढ़ी को जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाए।

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रात रातभर सत्संग ...💐

भगवान कसम यार, लोगों ने पकड़ पकड़कर सत्संग में बैठाया। रात रात भर चाय पानी पिला पिलाकर, भंडारा खिला खिलाकर सत्संग सुनाया। मुझे ज्ञानी बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब दूर दूर तक उनकी परछाई नहीं दिखती। सब लोग आधे रास्ते, बीच मझधार में छोड़कर, अपना हाथ छुड़ाकर कल्टी हो गए।

शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

करुण पुकार...💐

कहीं दूर से बेहद करुण पुकार की आवाज आ रही है। न जाने कौन है, जिसकी आह मुझे कुछ दिनों से असहज कर दे रही है। कोई तो है जिसे मैं पहचान नहीं पा रहा।

हे साहब, उसकी पीड़ा दूर कर दीजिए। भले ही उसके हिस्से की सारी पीड़ा मुझे दे दीजिए। आपके चरणों में उस अनजान करुण पुकार की बंदगी स्वीकार कीजिए। आपके चरण कमलों में बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी साहेब।

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

ज्ञान की ज़रूरत...💐

किसे जरूरत है ज्ञान की? क्यों हर किसी को पकड़ पकड़ कर ज्ञान बांट रहे हो? अरे भैया सब ज्ञानी हैं। किसी को ज्ञान की तलब तब होती है जब वो मुसीबत में घिरा हुआ होता है, परिस्थितियां खराब होती हैं, माथे की लकीरें जब अपना कमाल दिखाती है। तब जाकर वो नींद से जागता है, तब जाकर उसकी आंख खुलती है, तब जाकर उसे ज्ञान की प्यास लगती है।

आध्यात्मिक ज्ञान तो दूर की बात है, पहले भौतिक ज्ञान तो समझ लें। सामान्य व्यक्ति का पेट जब भर जाता है तभी वह कुछ और करने लायक होता है। मैं तो इस विचार का समर्थक हूँ कि बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छी तालीम दिया जाना चाहिए न कि बचपन से आध्यात्मिक ज्ञान थोपा जाना चाहिए। जैसा हम अधिकतर करते हैं।

ध्यान रखिए, संस्कार देना और आध्यात्मिक ज्ञान ठूंसने में सूक्ष्म अंतर है। साहब ने भी कहा था एक बार की बच्चे जब बड़े हो जाएं तभी उन्हें दीक्षा दिलाया जाए। मुझे साहब का यह तर्क बहुत अच्छा लगा।

दामाखेड़ा गुरु गद्दी ...💐

जब कभी खाली वक्त में सोचने बैठता हूँ कि दामाखेड़ा गुरु गद्दी से मुझे क्या मिला? तो पाता हूँ कि दामाखेड़ा के गुरु गद्दी ने मेरा हाथ परमात्मा के हाथों में थमा दिया, परमात्मा से परिचय करवा दिया, उन्होंने मेरे जीवन को साहबमय कर दिया। उन्होंने क्या नहीं दिया?

साहब ने मेरे इस जीवन को मानवीय गुणों से पोषित किया। हिंसा, व्यभिचार, पाप, दुर्गुणों से रहित और अहिंसा, धर्म, सत्य और शांति से महकता जीवन दिया। मेरे पूर्वजों से लेकर मेरे बच्चों तक में मानवीयता के संस्कार दिए, मानव जीवन का मोल समझाया, अपने प्रकृति और इस चराचर जगत का हिस्सा बनाया।

उसके बदले मेरा भी कर्तव्य बनता है कि मैं भी साहब के मार्ग में उनके कोई काम आऊँ। उनके जनकल्याण की हरेक इक्छा की पूर्ति में अपना भी योगदान दूँ। उनके चरणों में प्रेम अर्पित करूँ, फूल बनकर उनके मार्ग में बिछ जाऊँ, उनके चरणों से लगकर जीवन सफल कर जाऊं।

दोस्तों, एक ही जीवन है और एक ही मौका है। हमें साहब के जनकल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति में अपना जीवन बिछा देना है।

साहब के मंच पर नेताजी ...💐

साहब के मंच पर कोई नेता बैठता है तो मुझे बड़ी चिढ़ होती है, झल्लाहट होती है। लोग लाखों की तादात में देश के कोने कोने से साहब के दर्शन बंदगी करने आते हैं, जिसमें बरसों की प्रतीक्षा होती है, जन्मों की प्रतीक्षा होती है। हम अपने साहब को जीभरकर निहार भी नहीं पाते, उनके चरणों तक पहुंच भी नहीं पाते, उनके हाथ से पान परवाना भी नहीं ले पाते, और ये महोदय लोग साहब के समकक्ष मंच पर बैठते हैं, हम इनका फूलों की हार से स्वागत करते हैं, उनकी बकबक सुनते हैं।

क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, इसका निर्णय करने वाला मैं कोई नहीं होता। लेकिन मुझे ये पसंद नहीं। चाउर वाला बाबा तो ठीक ही थे, लेकिन दारू, अंडा वाला काका या उसकी टीम के लोग साहब के बगल बैठे मुझसे सहा नहीं जाएगा।

कुछ लोग कहते हैं कि नेताओं के आने से फंड मिलता है, कबीरपंथ के विकास को प्रगति मिलती है। लेकिन मुझे दामाखेड़ा में कोई विकास या सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता। बाकी भगवान ही मालिक है।

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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

बस इतनी सी ख्वाहिश...💐

अपने घर वालों को अपनी सेहत के बारे में अब तक ज्यादा कुछ नहीं बताया था। लेकिन कब तक उन्हें अंधेरे में रखूँ, कभी न कभी सच्चाई उनके सामने आ ही जाएगी। दर्द को एक्सप्रेस न करते हुए एक लाइन में कहूँ तो "जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चलेगी।"

आज हिम्मत करके माँ को बता ही दिया। सुनकर थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ गई, फिर रोने लगी। उनको रोते देखकर बड़ी पीड़ा हुई। बेटे के होते हुए माँ रोए, ये किसी भी सूरत में अच्छी बात नहीं। माता पिता उमर की जिस ढलान पर हैं, मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए थी, लेकिन उन्हें मेरी देखभाल और सेवा करनी पड़ती है।

आज कह रही थी कि चलो साहब के पास, उनसे निवेदन करेंगे, दर्शन बंदगी करेंगे, पान परवाना मांगेंगे, तुम ठीक हो जाओगे, साहब जरूर कृपा करेंगे। लेकिन उन्हें कैसे समझाऊँ कि साहब से मेरा "छत्तीस का आंकड़ा है"।

उनकी दया, उनकी कृपा तो हर पल मुझ पर बरसती ही रहती है। तभी तो जी पा रहा हूँ, तभी तो सांसे चल रही है। वो तो मेरे आसपास सदैव रहते ही हैं, मेरी साँसों में घुले हुए हैं। वो तो घर बैठे ही दिखाई दे जाते हैं, सुनाई पड़ जाते हैं। लेकिन माँ तो माँ होती है, उसे मेरी पीड़ा देखी नहीं जाती। 

मेरी ख्वाहिश तो बस इतनी सी है कि जब देह त्यागूँ तो नजरों के सामने साहब हों, और देह त्यागने के पश्चात उनके करकमलों से मेरा चलावा चौका हो।

माघी पूर्णिमा 2022 और पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब...💐

आज माघ पूर्णिमा है। मेरी माँ और बुआ गाँव से मेरे घर रायपुर आई हुई हैं। कल शाम को लगभग दो घंटे माँ, बुआ, मेरी पत्नी और मैं घर-परिवार की चर्चा कर रहे थे। घरेलू चर्चा कब सत्संग में बदल गया, कुछ पता ही नहीं चला। चर्चा के दौरान पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब की याद आ गई। उनकी लीलाओं के बारे में माँ और बुआ बताते रहे, लगता था कि वो बताते ही रहें और मैं सुनता ही रहूँ।

जो पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब के समकालीन साहब के भक्त रहें हैं, जिन्होंने साहब से कंठी बंधवाई, उनसे पान परवाना लिया, उनका सानिध्य पाया, उनका दिव्य स्पर्श पाया, वो लोग कुछ और ही दर्जे के हैं, साहब के प्रति उनकी भक्ति बहुत ऊंचे लेवल की होती है, अधिकतर वो लोग साहब के सच्चे प्रेमी होते हैं। साहब के प्रति उनकी दीवानगी दिखती है, उनके हृदय में साहब के लिए एक निर्मल, दिव्य और सुगंधित प्रेम की धार बहती है।

साहब की लीलाओं का लिखकर वर्णन करने में इतना आनंद नहीं आता जितना उनके बारे में सुनकर आता है। जब कोई पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब की चर्चा करता है तो सुनने वाले लोग भावावेश, प्रेमवश रो पड़ते हैं। कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी हुआ। साहब के व्यक्तित्व में, साहब की वाणियों में अजीब आकर्षण था, स्निग्धता थी, मधुरता थी, कोमलता थी। आज उनकी कमी अखरती है, लेकिन वो हमारे हृदय में वंश ब्यालिस और गुरु गोस्वामी साहब के रूप में सदैव रहेंगे।

मैं सौभाग्यशाली हूँ, जो उनके पावन चरण कमलों में माथा रखने का अवसर पा सका।

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टेंशन...💐

विगत दिनों मुझे एक परम् आदरणीय महंत साहब का फोन आया। कह रहे थे- "तुम्हारा फेसबुक और ब्लॉग पेज पढ़ा, अच्छा नहीं लिखते, लेख में साहब के लिए मर्यादा नहीं रखते, इसलिए तुम्हें ब्लॉक और रिपोर्ट कर दिया हूँ।"

इस तरह की बातें तो होती ही रहती है। लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं, इसकी परवाह करता, तो आज जीवन में साहब नहीं होते। अपने परिजनों की, मित्रों की, रीति रिवाजों की, सीमाओं और समाज की परवाह करता तो आज जीवन में साहब नहीं होते।

अगर मुझे फेसबुक पर ब्लॉक और रिपोर्ट करोगे, मेरा एकाउंट बंद करवाओगे तो मैं साहब के लिए अपने हृदय के भाव पेन और कागज पर लिखकर उन्हें पोस्ट ऑफिस के माध्यम से दामाखेड़ा भेजूँगा। लेकिन अब उनका गुणगाण बंद नहीं कर सकता। अगर अपने हृदय की बात, भाव उन्हें नहीं कह पाया तो पागल हो जाऊँगा।

इसलिए हे आदरणीय महंत साहब, मैं आपके चरणों में बंदगी करते हुए, आपकी मर्यादा को भी लांघते हुए आपसे कहना चाहता हूँ - "भाँड़ में जाओ, आपकी परवाह नहीं मुझे।" 

साहब का लाईक और कमेंट...💐

जब भी मेरे किसी पोस्ट पर साहब का लाईक या कमेंट आता है, तो मैं रो पड़ता हूँ, सिसक पड़ता हूँ। साहब के इस प्यार से, साहब के इस छुअन से दिल भर आता है, आँखे छलक पड़ती हैं। उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाता, उनकी यादों में ही सारी रात गुजर जाती है।

उनके इस प्यार भरे मखमली स्पर्श से नस नस में नए उत्साह का संचार होता है। मुझे नाम सुमिरण-ध्यान में और ज्यादा गहरे उतरने की प्रेरणा मिलती है, मार्गदर्शन मिलता है।

इस धरती पर अनेकों संत हैं, पूण्य आत्माएं हैं, साहब की भक्ति करने वाले लोग हैं, साहब को जीने वाले लोग हैं। जो साहब के एक इशारे पर तन-मन-धन और जीवन उनके चरणों में रख देने का साहस रखते हैं। जबकि उनके सामने साहब के प्रति मेरा प्रेम बहुत छोटा है, तुच्छ है, तिनके के समान है।

जब साहब की छुअन से मैं रात भर जागता रहता हूँ, तो साहब भी नहीं सो पाते होंगे। साहब के इस कलयुगी भक्त की करुण पुकार भी उन तक जरूर पहुँचती होगी, उनके चरणों में मेरी बंदगी, आरती भी उन तक जरूर पहुंचती होगी।

मेरे प्रति साहब का यह प्रेम जिम्मेदारी का भी अहसास कराता है। उनके जनकल्याण और जीव मुक्ति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मैदान में उतरने को जी करता है। लगता है मैं भी उनके चरणों में जीवन बिछा दूँ।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...