एक हल्की सी आवाज और धुंधले दृश्य से विचलित हो जाता हूँ, घबरा जाता हूँ, नींद उड़ जाती है, कई दिनों तक बेचैन रहता हूँ। लेकिन उनके पास तो हर पल लाखों करोड़ों की आवाजें पहुँचती है।
कोई स्वास्थ्य के लिए रो रहा होता है, कोई धन के लिए, कोई परिवार के लिए, कोई भक्ति के लिए, कोई प्रेम के लिए तो कोई मुक्ति के लिए। हर कोई अपना दुखड़ा उन्हें चीख चीखकर सुना रहा होता है। हर कोई दर्द से कराह रहा होता है, हर कोई तकलीफ़ों से जूझ रहा होता है, हर कोई समस्याओं में उलझा हुआ होता है।
उन चीखते चिल्लाते, छटपटाते, पुकार लगाते लोगों की करुण और दर्द से भरी आवाजें...। चारों तरफ शोर ही शोर है, चीख पुकार है, भीड़ है, भगदड़ है। चारों ओर पीड़ा से भरे वीभत्स और भयंकर दृश्य...।
जब उन्हें मानव तन में देखता हूँ तो सोचता हूँ कि उन्हें नींद कैसे आती होगी, वो कब सोते होंगे, वो खाते कब होंगे, इन सबके बीच वो जीते कैसे होंगे...
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