मुझे लड़कपन से ही सूफ़ी संत लुभाते रहे हैं। भारत और विश्वभर में अनेकों सूफ़ी संत हुए। उनकी वाणियों में अजीब आकर्षक होता है, गहरे भाव होते हैं। उनके शब्द परमात्मा की विरह में डूबा हुआ होता है। जब भी सूफ़ी संतों की वाणियों को पढ़ता हूँ तो लगता है मानो वो मेरी ही बात कह रहे हैं, मेरे ही दिल के शब्दों को आकार दे रहे हैं।
उनके भावों में परमात्म प्रेम की अनंत ऊंचाईयां होती है। वहीं विरह की न बुझने वाली अनंत तड़प होती है। दिल बेधने वाली गहरी और अतृप्त प्यास... जिसका कोई ओरछोर नहीं। सीमाओं से परे, बंधनों से परे, उन्मुक्त संवेदनाएँ...। किसी सूफ़ी संत के परमात्मा से विरह के भावों को देखें और महसूस करें-
"किसी लम्हा, किसी भी पल ये दिल तनहा नहीं होता
तेरी यादों के फूलों से मैं तनहाई सजाता हूं।"
भले ही शब्दों में बयान नहीं कर पाते लेकिन साहब के लिए ऐसी ही तड़प आप भी अपने भीतर पाते होंगे, आप भी उनकी याद में पल पल जीते और मरते होंगे।