रविवार, 24 मार्च 2019

शब्दों का पोस्टमार्टम...💐

आँखे मूंदे, पद्मासन में बैठे, मन को विचार शून्य करने की कोशिशें होती रही, बारी बारी से नाक-कान बंदकर प्राणायाम और ध्यान की कोशिशें होती रही, संध्या पाठ के अक्षरों को अर्थ देने की कोशिशें होती रही। ग्रंथो और शास्त्रों के खाक छानते रहे, विद्वानों के चरण पखारते रहे। यहां वहां "सार शब्द" नामक चमत्कारी बूटी ढूंढ़ते रहे।

मंदिरों के चक्कर लगाए, बाबाओं के भभूत खाए, बरसों बीत गए, कुछ नहीं हुआ, भगवान नहीं दिखे, "सार शब्द" नहीं मिला।

अब जिंदगी ढलान पर आ चुकी है, कमर झुक गई है, चेहरे पर झुर्रियां नजर आती है। लेकिन उनकी खोज आज भी बदस्तूर जारी है। शब्दों के ऑपरेशन, शब्दों के पोस्टमार्टम और ज्ञान का पारख अभी भी जारी है। पता नहीं कब पारख होगा, कब सार शब्द मिलेगा, कब मोक्ष मिलेगा, शब्दों को परखते हुए और कितनी जिंदगी गुजारेगा?

उलझन...💐

किन उलझनों में उलझा है? क्यों बीच पथ पर ठहर गया है? किसका प्रतीक्षा है, किस ओर उम्मीदों से निहार रहा है? तू कल भी अकेले चला था और आज भी अकेले ही उस मार्ग पर चलना है। क्यों किसी साथ की अपेक्षा करता है? साहब के अलावा कोई नहीं आएगा राह दिखाने, कोई नहीं आएगा बांह थामने। तू जरा हिम्मत तो कर, तू जरा दृढ़ता पूर्वक कदम तो बढ़ा।

सांसे उखड़ती तो उखड़ने दो, आंसू बहते हैं तो बहने दो, कुछ टुटता है तो टूटने दो, कोई छूटता है तो छूटने दो। बस थोड़ी दूर और, हिम्मत तो कर, बस कुछ कदम और चल। तू उनकी उंगली पकड़े आगे बढ़ता चल।

रास्ता बड़ा दुर्गम है, रास्ते में बीहड़ है, घुप्प अंधेरा है। लेकिन इस अंधियारे की भी एक दिन सुबह होगी, उजाला होगा, रोशनी होगी, भोर होगा। वो मिलेंगे, जरूर मिलेंगे। और जब वो मिलेंगे तब जीभरकर उनकी गोद में सिर रखकर रो लेना, सारी शिकायतें कह सुनाना..💐

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...