जब मौन होता हूँ महसूस होते हैं आप। खुले नयनों से नजर आते है, और बंद आँखों से भी चहुँ ओर आपकी ही छवि नजर आती है। गहरे मौन में भी और जोर की कोलाहल में भी, हृदय की हर धड़कन में भी, नींद में भी, जाग्रत में भी, चेतनता और जड़ता में भी बस आप ही आप हैं। जीवन के इस पार और उस पार भी आप ही हैं, प्रकृति के हर रूप में, हर रंग में, आकाश के अनंत फैलाव में और सुक्ष्म परमाणु में भी आप ही हैं, आप ही जीवन पर छाए हैं।
उठते बैठते, सोते जागते आप सदा नजरों में रहते हैं। आप ही सुनाई देते हैं, आप ही दिखाई देते हैं। साँसों से भी आपकी ही सुबास आती है। हर ध्वनि, हर आवाज आपकी होती है। जब मौन होता हूँ आपकी धड़कन सुनता हूँ, आपको अपने मे जीता हूँ।
फिर भी न जाने कैसी प्यास है, मिलकर भी न मिल पाने का अहसास है, अतृप्त सी प्यास है...