रविवार, 30 जून 2019

जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस...💐

जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस।
मुझ ही जैसा होय रहो, सब सुख तेरे पास।।

कुछ दिनों से साहब की उपरोक्त वाणी मन में घूम रही थी। सोचा उनके जैसा बनने में मुझे सब सुख मिल जाएगा। फिर क्या था, दामाखेड़ा माघ मेले में मंच पर बैठे प्रवचन देते साहब की छवि दिमाग में उभर आई। उनकी तरह मैंने भी सफेद रंग का कुर्ता पायजामा बनवाया।

कमरे में अपने को बंद कर लिया। उनकी तस्वीर के सामने आसन बनाकर उनके बैठने के तरीके की नकल करता रहा, समाधि मंदिर में उनके नारियल भेंट करने के तरीके और भाव का नकल करता रहा, उनके बोलने की नकल करता रहा, चलने की नकल करता रहा। मिनट, घंटे, दिन, रात गुजरते गए। सुख की लालसा लिए उनकी तस्वीर कई दिनों तक निहारता रहा, लेकिन कोई सुख नहीं मिला, बल्कि तकलीफ ही तकलीफ मिली। ऊपर से सिर दर्द हो गया, पीठ दर्द हो गया, हालत खराब हो गई, डॉक्टर की शरण पहुँच गया।

कई सालों बाद साहब की उपरोक्त वाणी का सही अर्थ और भाव समझ में आया। मात्र सफेद कपड़े पहनकर उनके जैसा होना संभव ही नहीं है, उन्हें जीना सम्भव ही नहीं है...

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...