शनिवार, 26 नवंबर 2022

जीवन में दुख ही अंतिम सत्य है ...💐

बचपन में प्राथमिक शिक्षा गाँव में पूरी हुई। कक्षा 6 से 8 की माध्यमिक शिक्षा के लिए दूसरे गाँव लगभग 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा तय करके जाया करता था। फिर नवमीं से दसवीं कक्षा के लिए रोज 36 किलोमीटर की सायकल यात्रा करता था। मैं अक्सर स्कूल से घर सुनसान रास्तों को पार करके अंधेरा होने के बाद ही पहुँचता। बेहद गरीबी में बचपन गुजरा है। दो कपड़े हुआ करते उसमें भी एक स्कूल ड्रेस। पैंट पीछे से दोनो साइड से फटा हुआ।

लम्बा परिवार था, खाने के लिए भी घर में झगड़े हुआ करते, भर पेट खाना किसी को नहीं मिलता था। पिताजी ने कैसे भी करके ऊँची शिक्षा दिलाने के लिए शहर में मेरा एडमिशन कराया। किराए के खपरैल और मिट्टी से बने एक कमरे में विद्यार्थी जीवन बिता। स्कूल के बीच चूल्हे में दो वक्त का खाना बनाने, बर्तन और कपड़े धोने की चिंता में वक्त बीतता। घर से महीने का रोज दस रुपए के हिसाब गिनकर महीने भर के खर्चों के लिए तीन सौ रुपये मिलता। ऊपर से जन्मजात पेटदर्द...। इन कठिनाईयों और आसपास फैले विपरीत परिस्थितियों के बीच रो पड़ता।

अब दो बेटियों का पिता हूँ, किसी का पति और घर का बड़ा पुत्र भी। अहसास होता है कि मेरे परिवार ने मुझे किस तरह पाला पोसा होगा, किस तरह ऊंची तालीम दी होगी, किस तरह संभाला होगा। उनका त्याग, उनका बलिदान याद करता हूँ। लेकिन जब अपने जीवन को ऊपर उठकर देखता हूँ तो पाता हूँ कि हर किसी का जीवन पीड़ा में बीत रहा है। वो मुझसे भी कहीं अधिक दुखी हैं, मुझसे भी अधिक कष्टों से घिरे हैं, और मन को संतोष कर लेता हूँ, मान लेता हूँ कि दुख ही इस सृष्टि का अंतिम सत्य है।

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