शनिवार, 23 जुलाई 2022

मैं लिखूंगा तो सुमिरण करेगा कौन?

फेसबुक में अब तक पोस्ट किए गए लेखों के अलावा भी साहब के प्रति मेरे विचार, मेरे मनोभाव, उनके प्रति मेरा प्रेम, उनके प्रति मेरी नाराजगी तथा उनसे संबंधित करीब 100 से अधिक लेख लिख रखा हूँ। 

साहब तक पहुंचने में जीवन खप गया, रास्ते में अनेकों कष्ट मिले, कुछ लौकिक तो कुछ अलौकिक आनंद भी मिले। सफर के हर एक पल को मैंने लिख रखा है। सोचता हूँ वो सब आप सबके समक्ष रखूं। 

चूंकि मुझे साहब भी पढ़ते हैं, इसलिए डर और संकोच होता है कि कहीं मेरे भाव मर्यादा क्रास न कर जाए। मैं उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता।

मेरे लेखों में आप अल्हड़ता पाएंगे, बहती नदी की धुन सुनेंगे, बारिश सी प्रेम की फुहार में भीगेंगे, उड़ते पतंग की मदमस्ती महसूस करेंगे। अहंकार, चिंता, डर, उदासी, अकेलापन पाएंगे। साहब को जिए गए पल पल की अनुभूति करेंगे, उनके प्रति मेरे हृदय के भाव, उमंग, आशा, उत्सव के रंगों में आप भी रंग जाएंगे।

जो मन में विचार, भाव आते हैं उन्हें उसी रूप में लिख देता हूँ। किसी विद्वान, साहित्कार, लेखक, ज्ञानी की भांति अपने मनोभावों को प्रगट करना नहीं आता, न ही दोहा चौपाई, साखी शब्द की समझ है।

मैं साहब का कुत्ता ...💐

"मैं साहब का कुत्ता" गले में उनके नाम की रस्सी बंधी हुई है।

जब जीवन की डोर परमात्मा के हाथ हो तो कोई लाख सर पटक ले, लाख हाथ पैर जोड़ ले, विनती कर ले। वो करता वही है जो उससे परमात्मा कहता है और करवाता है। साहब के कहने पर वो सोता है, जागता है, रोता और गाता है। परमात्मा ही उसे चलाता है, उसका हर पग परमात्मा के कार्यों के लिए उठता है, हर कार्य परमात्मा को समर्पित होता है।

काश... मैं तुम्हें समझा पाता, और काश तुम समझ पाते तो मुझ पर गुस्सा नहीं करते, तब तुम मुझसे नाराज नहीं होते। तुम्हें कैसे बताऊं, कैसे समझाऊँ की भूख-प्यास, नहाने धोने, उठने बैठने तक में उन्हीं का दखल है, उन्हीं का नियंत्रण है।

किसी के बुलाने पर जा नहीं सकता, किसी के जगाने पर जाग नहीं सकता, किसी के खिलाने पर खा नहीं सकता, किसी और के अनुसार जीवन के पल-पल का निर्णय भी नहीं कर सकता। तुम्हें गुस्सा करना है तो करो, नाराज होना है तो हो जाओ, बात नहीं करनी है तो मत करो, रिश्ता तोड़ना है तो तोड़ दो... भाड़ में जाओ, लेकिन अपने हिसाब से मुझे चलाने की कोशिश मत करो। आज से तुम्हारी और मेरी जयराम जी की।

किसी ने किसी से कहा और स्टोरी का "द एन्ड" हो गया।

गहन मौन ...💐

भीतर तक गहन मौन है, बस साँसों की लय भरी सूक्ष्म और सुरीली प्रेमगान अपने ही आप गुंजित है। इस एकांत में मैं साहब के पदचाप स्पस्ट सुन पा रहा हूँ। वो आएंगे, मेरे ही बिस्तर पर मेरे साथ सोएंगे। रात के इस पहर की खुशनुमा लम्हों में मैं साहब के चरणामृत की सोंधी महक महसूस कर रहा हूँ, पान परवाने की सुवास महसूस कर रहा हूँ। वो यहीं कहीं मेरे पास ही हैं। जरा और गहरे उतरने दो, वो आएंगे। पूछेंगे क्यों जाग रहे हो? मेरा उत्तर होगा- आपकी प्रतीक्षा थी साहब, आपके बिना नींद कहाँ, सुकून कहाँ?

वो मुझे अपनी पनाहों में सदैव घेरे रहते हैं। मेरे लिए खाना निकाल लेते हैं, मेरी गाड़ी में पेट्रोल भरवा देते हैं, मेरा मोबाइल रिचार्ज करवा देते हैं, जेब में आवश्यकता अनुसार पैसे छोड़ जाते हैं, मेरे कमरे की लाइटें जला जाते हैं। जो कोई मिलने आने वाले होते हैं उनका नाम पता बता जाते हैं। सबकी खबर देते हैं। उन्हें मेरे बारे में सबकुछ पता होता है। आज बाजार से उन्होंने सफेद बैगन खरीदने को कहा।

साहब मेरा सब काम कर जाते हैं, उनके बिना मैं अधूरा, बेबस और लाचार हो जाता हूँ। वो मुझे कभी मेरा नाम पुकारकर जगाते और सुलाते हैं, तो कभी अव्यक्त भाव से। वो हर राज की बात बताते हैं। मखमली चादर के पार, दुनिया और धरती के पार अकथ की कहानी कहते हैं, सत्यलोक की बातें सुनाते हैं।

जीवन में वो नहीं होते तो न जाने किस गटर में पड़े रहते। वो ही परमात्मा हैं, वो ही गुरु हैं, वो ही पिता, मित्र और सखा हैं। उनके बिना मैं कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। वो मेरे दिन, वो मेरी रातें, वो मेरी नींद, वो मेरा सुकून और अभिमान। हृदय में सदा अकथनीय एक बोध रह जाता है, वो बोध साहब ही होते हैं। मेरा हाथ मत छोड़िएगा साहब, चरणों में विनती है।

साहब की नकल ...💐

चौका आरती में मैंने साहब को एक आसन में लगातार चार घंटे बैठे देखा है। इस दौरान वो कभी ध्यान मुद्रा में नजर आए, कभी उनमुनि भाव से भरे नजर आए तो कभी सुमिरण करते नजर आए।

मैं साहब की नकल करता हूँ। लेकिन ध्यान, सुमिरण और उनमुनि भाव की तो बात ही छोड़िए, बमुश्किल चालीस मिनट से एक घंटा तक ही एक आसन में बैठ पाता हूँ। इतने से ही पैरों, पीठ और पसलियों की हड्डियां रहम की भीख माँगने लगती है। ठीक से नकल भी नहीं हो पाती।



वो आबाद रहें ...💐

मेरे हिस्से की सारी महकती खुशियां, मेरी मुस्कान के सारे फूल, मेरे जज्बातों के सारे खुशनुमा भाव, मेरे जीवन का सारा सुख उन्हें मिले, जिन्हें मैं हृदय से प्यार करता हूँ, जिनके चरणों में शीश झुकाता हूँ। मेरा वजूद रहे न रहे, उनका अस्तित्व सदा कायम रहे, उनका आंगन हमेशा भरापूरा और आबाद रहे।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...