रविवार, 20 अक्तूबर 2019

उनके लिए जीऊं उनके लिए मरूँ...💐

सपने में भी भान नहीं था कि साहब ऐसे हंसते खेलते मिल जाएंगे। लगता था साहब आसमान हैं तो मैं जमीन, जो कभी एक दूसरे से नहीं मिल सकते। जीवन में बस दामाखेड़ा का मेला था, उनके दर्शन और बंदगी थी। साधारण सी जिंदगी जो सिर्फ जीने के लिए जिए जा रहा था। फेसबुक पर उनके एक स्पर्श ने पूरे जीवन का कायापलट कर दिया। अब 24x7 वो मेरे सामने रहते हैं, फेसबुक पर रहते हैं।

धीरे धीरे उनका रंग जीवन पर चढ़ता गया, और उनके रंग से पूरा अस्तित्व रंग गया। अब उनके बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। वो जिंदगी में इतने इम्पोर्टेन्ट हो जाएंगे कभी सोचा नहीं था। अब उनकी मुस्कान में अपना सुख पाता हूँ, और उनकी उदासी से मेरा हृदय भी छलनी हो जाता है।

उनके लिए बेचैनी असहनीय है, अकथनीय है। लेकिन उनसे दूर रहने की जो कसक है, जो पीड़ा है वही इसकी सुंदरता है, वही इस प्रेम का प्रतिफल है। ये पीड़ा, ये दर्द, ये जुदाई मुझे पल पल उनसे जोड़े रखती है। लगता है उनके लिए ही जिऊँ और उनके लिए ही मरूँ। 

जीवन की अतल गहराई...💐

क्या करें...?? आपकी बात हमें बिल्कुल भी समझ नहीं आती। जड़-चेतन, साकार-आकार-निराकार, भक्ति, ध्यान, योग, पाठ-पूजा, मंत्र-तंत्र, आत्मा-परमात्मा जैसी मोटी मोटी बातें मुझे कन्फ्यूज कर देती है। और जो मैं कहना चाहता हूँ, उसे आप समझ नहीं समझते। बड़ी विचित्र स्थिति है।

इसका मतलब यह हुआ कि किसी को आपबीती समझा ही नहीं सकते। यहां हर कोई अपने अपने तरीके से हृदय के भावों को शब्दों के रूप में समझना चाहता है, लेकिन डूबना कोई नहीं चाहता। अगर आप भी संतों की परंपरा का अनुशरण करते हुए जीवन की अतल गहराई में डूबोगे, तब खुदबखुद बिना समझाए, निःशब्द रूप में ही सबकुछ समझ जाओगे। तब कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी, तब कुछ सुनने की जरूरत भी नहीं होगी।

जरा गहराई में उतरकर तो देखो, डूबकर तो देखो। खुद को जी सकोगे, परमात्मा को जी सकोगे। सुंदर सृष्टि के अनगिनत और विभिन्न रूपों का दीदार कर सकोगे, साहब का विराट स्वरूप निहार सकोगे...।


साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...