शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

ज्ञान की ज़रूरत...💐

किसे जरूरत है ज्ञान की? क्यों हर किसी को पकड़ पकड़ कर ज्ञान बांट रहे हो? अरे भैया सब ज्ञानी हैं। किसी को ज्ञान की तलब तब होती है जब वो मुसीबत में घिरा हुआ होता है, परिस्थितियां खराब होती हैं, माथे की लकीरें जब अपना कमाल दिखाती है। तब जाकर वो नींद से जागता है, तब जाकर उसकी आंख खुलती है, तब जाकर उसे ज्ञान की प्यास लगती है।

आध्यात्मिक ज्ञान तो दूर की बात है, पहले भौतिक ज्ञान तो समझ लें। सामान्य व्यक्ति का पेट जब भर जाता है तभी वह कुछ और करने लायक होता है। मैं तो इस विचार का समर्थक हूँ कि बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छी तालीम दिया जाना चाहिए न कि बचपन से आध्यात्मिक ज्ञान थोपा जाना चाहिए। जैसा हम अधिकतर करते हैं।

ध्यान रखिए, संस्कार देना और आध्यात्मिक ज्ञान ठूंसने में सूक्ष्म अंतर है। साहब ने भी कहा था एक बार की बच्चे जब बड़े हो जाएं तभी उन्हें दीक्षा दिलाया जाए। मुझे साहब का यह तर्क बहुत अच्छा लगा।

दामाखेड़ा गुरु गद्दी ...💐

जब कभी खाली वक्त में सोचने बैठता हूँ कि दामाखेड़ा गुरु गद्दी से मुझे क्या मिला? तो पाता हूँ कि दामाखेड़ा के गुरु गद्दी ने मेरा हाथ परमात्मा के हाथों में थमा दिया, परमात्मा से परिचय करवा दिया, उन्होंने मेरे जीवन को साहबमय कर दिया। उन्होंने क्या नहीं दिया?

साहब ने मेरे इस जीवन को मानवीय गुणों से पोषित किया। हिंसा, व्यभिचार, पाप, दुर्गुणों से रहित और अहिंसा, धर्म, सत्य और शांति से महकता जीवन दिया। मेरे पूर्वजों से लेकर मेरे बच्चों तक में मानवीयता के संस्कार दिए, मानव जीवन का मोल समझाया, अपने प्रकृति और इस चराचर जगत का हिस्सा बनाया।

उसके बदले मेरा भी कर्तव्य बनता है कि मैं भी साहब के मार्ग में उनके कोई काम आऊँ। उनके जनकल्याण की हरेक इक्छा की पूर्ति में अपना भी योगदान दूँ। उनके चरणों में प्रेम अर्पित करूँ, फूल बनकर उनके मार्ग में बिछ जाऊँ, उनके चरणों से लगकर जीवन सफल कर जाऊं।

दोस्तों, एक ही जीवन है और एक ही मौका है। हमें साहब के जनकल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति में अपना जीवन बिछा देना है।

साहब के मंच पर नेताजी ...💐

साहब के मंच पर कोई नेता बैठता है तो मुझे बड़ी चिढ़ होती है, झल्लाहट होती है। लोग लाखों की तादात में देश के कोने कोने से साहब के दर्शन बंदगी करने आते हैं, जिसमें बरसों की प्रतीक्षा होती है, जन्मों की प्रतीक्षा होती है। हम अपने साहब को जीभरकर निहार भी नहीं पाते, उनके चरणों तक पहुंच भी नहीं पाते, उनके हाथ से पान परवाना भी नहीं ले पाते, और ये महोदय लोग साहब के समकक्ष मंच पर बैठते हैं, हम इनका फूलों की हार से स्वागत करते हैं, उनकी बकबक सुनते हैं।

क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, इसका निर्णय करने वाला मैं कोई नहीं होता। लेकिन मुझे ये पसंद नहीं। चाउर वाला बाबा तो ठीक ही थे, लेकिन दारू, अंडा वाला काका या उसकी टीम के लोग साहब के बगल बैठे मुझसे सहा नहीं जाएगा।

कुछ लोग कहते हैं कि नेताओं के आने से फंड मिलता है, कबीरपंथ के विकास को प्रगति मिलती है। लेकिन मुझे दामाखेड़ा में कोई विकास या सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता। बाकी भगवान ही मालिक है।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...