शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

जीवन गुजर जाए...💐

आपके शब्दों का हर अल्पविराम, हर पूर्णविराम, हरेक मात्रा, शब्दों में निहित भाव, संवेदनाएं, मनोविचार और उसकी गहराई उसी रूप में ग्रहण होती है जिस रूप में आप कहना चाहते हैं।

बात सार्वजनिक हो या व्यक्तिगत, धरती की हो या अम्बर की, तारों की हो या नक्षत्रों की... जो आप कहते हैं सब समझ में आता है। आपके सिवाय कुछ और समझ नहीं आता।

कभी सपने में भी भान नहीं था की आप इस एक जीवन में मिल जाएंगे। लेकिन अब जीवन की सार्थकता का भान होता है, आहोभाग्य का अहसास होता है। आपने हाथ नहीं थामा होता तो न जाने कहाँ जाते, न जाने किस दशा में होते, न जाने किस गर्त की ओर निकल पड़ते।

जिंदगी के रास्ते बड़े कटीले हैं, फिसलन भरे हैं, निःठुर हैं। न तो दसों इन्द्रियों का भरोसा है, न ही खुद के कर्मों का। न जाने कब रास्ते से भटक जाएं, न जाने कब फिसल जाएं। इसलिए ऐसे ही सदा हाथ थामें रहिएगा, ये जीवन आपके गीत गुनगुनाते यूँ ही गुजर जाए।

शुक्रिया आपका...💐

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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

मेरे परमात्मा...💐

क्या तुम नहीं जानते परमात्मा किसे कहते हैं? साध्वी ने पूछा।

नवयुवक ने "नहीं" में सिर हिलाते हुए पूछा-
"आपने देखा है उन्हें? मुझे भी उनका दर्शन करा दीजिए, जीवन भर आपका ऋणी रहूँगा।"

साध्वी ने नवयुवक के उल्टे-पुल्टे सवालों से खीझते हुए कहा-
"परमात्मा को लड्डू समझ लिए हो... कि तुम्हारे हाथ में थमा दूँ और तुम खा जाओ..? उन तक पहुँचना है, उनका दीदार करना है तो उनके नाम की डोर पकड़ लो, नाम की चाबी से ही सत्यलोक का दरवाजा खुलेगा, परमात्मा मिलेंगे।"

नवयुवक ने फिर से प्रश्न दागा-
"परमात्मा दिखते कैसे हैं?"

साध्वी ने दीवार पर लगे "प्रकाशमुनि नाम साहब" की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा- "ऐसे ही दिखते हैं।"

नवयुवक ने फिर प्रश्न किया- "क्या परमात्मा के भी हाथ पाँव होते हैं साहब की तरह?"

साध्वी ने पुनः खीझते हुए गुस्से से कहा-
"अरे बुद्धू साहब ही परमात्मा हैं, साहब ही भगवान हैं, साहब ही सतपुरुष हैं।"

इस बार साध्वी के गुस्से को भांपते हुए नवयुवक और प्रश्न करने की हिम्मत नहीं जुटा सका, लेकिन बड़े दिनों तक "साहब" और "परमात्मा" शब्दों में ही उलझा रहा। परमात्मा के चार हाथ वाली छवि उसके जेहन में थी, और उसके लिए "परमात्मा" और "साहब" दोनों भिन्न थे।



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भाव बड़े गहरे हैं...💐

हर बात की शुरुआत उन्हीं से होती है, हृदय के भाव और सारे मनोविचार भी उन्हीं पर आकर टिक जाते हैं। कुछ कहने सुनने का उद्देश्य और सार भी वही हैं। हर ध्वनि में उनकी ही आवाज होती है, हर दृश्य में उनका ही रूप होता है। वो जीवन के हर क्रियाकलापों में रचे बसे हैं। उनका सुरूर जेहन से उतरता ही नहीं है।

हर सुबह हल्के स्पर्श के साथ जगाते हैं, तैयार करते हैं जीवन के एक और नूतन दिवस के लिए। वो अनेक ध्वनि और दृश्य के संकेतों से अनहद की बात बताते हैं, अपने अनुपम रूप की झलक दिखाते हैं, साथ होने का अहसास कराते हैं। उनके नाम की चादर से जिंदगी ढकी सी है, और उनके आलोक से जीवनपथ प्रकाशित है।

अहसास बड़े गहरे हैं लेकिन शब्द उन्हें छू नहीं पाते। अहसासों को बताते हुए नयन छलक उठते हैं और शब्द मौन हो जाते हैं। सागर किनारे रेत पर लिखे नाम की तरह हृदय पटल पर उनकी अभिव्यक्ति उभरती और मिटती है।

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शनिवार, 15 दिसंबर 2018

ब्रम्हचारी का जीवन...💐

वो ब्रम्हचारी उमर भर लोगों को शिक्षाएं देते रहे। समाज को धर्म, अध्यात्म और परमात्मा की बात बताते रहे। उनकी रहनी गहनी भी ठीक थी। मर्यादित और संयमित जीवन जीते थे।

लेकिन ढ़लती उमर में विपरीत परिस्थितियों का एक झोंका आया, जमकर बीमार पड़ गए। परिवार तो पहले ही छोड़ आए थे, अब वापिस जाना मुश्किल जान पड़ा। अपनी सेहत के लिए अब दूसरों पर निर्भर रहने लगे, भक्तों पर निर्भरता बढ़ने लगी। दो वक्त की रोटी भी अब बड़ी मुश्किल से मिल पाती थी।

समय बीतने के साथ लोग और भक्त उस सन्त को दुत्कारने लगे, उनसे पीछा छुड़ाने लगे। वो बहुत विचलित हो उठे, और एक दिन अपने आश्रम के मैले कुचैले बिस्तर पर लौट आए। काँपते हाथों से चूल्हे में अपने लिए खाना बनाते, और नाम स्मरण में लीन रहते।

नवयुवक शिष्य को उनके गिरते स्वास्थ्य का पता चला तो उस संत को मिलने चले गए। अपने शिष्य को सामने देखकर संत की आंखों से आंसू छलछला उठे, गला भर आया। शिष्य को गले लगाते और सिसकते हुए बोले-
"गृहस्थ आश्रम में रहते हुए ही साहब की भक्ति करना बेटा। जिंदगी बेरहम है, लोग बेरहम हैं और शरीर जर्जर है।"

जो संत जनसमुदाय के लिए जीता है, समाज के लिए अपना जीवन देता है, उनकी ऐसी दयनीय स्थिति देखकर वह नवयुवक सहम गया, फट पड़ा।

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प्रेम का सही रूप...💐

प्रेम का अर्थ है दूसरे को अपने से अधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान मानना। प्रेम का अर्थ है मेरा सुख गौण है, तुच्छ है, लघु है तथा जरुरत पड़े तो मैं अपने को मिटा दूँ ताकि जिससे प्रेम करते हैं वो बच सके, उसका अस्तित्व बच सके। इस तरह दूसरे के अस्तित्व के लिए अपने अस्तित्व को मिटा देना प्रेम की पराकाष्ठा है।
प्रेम में व्यक्ति अपना रूप, अपनी पहचान, अपना अहं खो देता है तथा दूसरे के लिए जी रहा होता है। इस गहरे प्रेम की दिशा को परमात्मा की तरफ, साहब की तरफ मोड़ दिया जाए, चराचर जगत कल्याण की तरफ मोड़ दिया जाए, तभी उस प्रेम की सार्थकता है। गहरे प्रेम का यह रूप ही प्रेमी को परमात्मा की ओर ले जाता है।

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सोमवार, 10 दिसंबर 2018

आदमी की फितरत...💐

उस वक्त जब तुम असहाय से थे, तकलीफों और पीड़ाओं से घिरे थे, नैय्या डूब रही थी, तब हाथ थामने का प्रणय निवेदन किया था, भरोसा दिलाया था कि साथ रहोगे। समय थोड़ा आगे क्या बढ़ा, पीठ दिखा दिए, मजबूरियां गिनाकर दामन छुड़ा लिए।

हमनें तो तुम्हें हृदय से लगाया था, बराबर की कुर्सी पर बिठाया था, हमकदम बनाया था, तुम्हारी तकलीफ़ पर हमने भी आँसू बहाया था, अपने हिस्से की रोटी भी तुम्हारे साथ बांट ली थी।

नाराज नहीं हूँ लेकिन "आदमी" की फितरत से हैरान जरूर हूं।

रविवार, 9 दिसंबर 2018

परमात्मा का स्पर्श...💐

कुछ छूट सा रहा है, कुछ खो सा रहा है, कुछ विस्मृत सा हो रहा है। जो भीतर द्वंद्व है, अंधकार है, किसी तेज पुंज से मिट रहा है, उज्जवलित हो रहा है। किसी दिव्य सुबास से अंतर्मन महक रहा है। कतरे कतरे में बिखरी जिंदगी को कोई नया मुकाम हासिल हो रहा है। जो रास्ते घुप्प अंधेरो से ढके थे अब रोशनी से नहाए हैं।हृदय की किवाड़ खुल चुकी है, सबको अपने में स्वीकार करने की सदइक्छा सी जाग रही है।

वो जो तन्हाई का आभास था, तिरोहित सा हो रहा है। उत्सुकतावश गहरे, और गहरे उतरने की उत्कंठा हो रही है, थाह लेने को मन मचल रहा है। पर्दे के पीछे जो अनसुना, अनकहा, छुपा और ढका सा है, उसका अनुमान अब ज्यादा अच्छे से हो रहा है। जिसे अब तक नहीं देखा उसके रूप का एक अंश नजर सा आ रहा है।

कोई उजला आभामंडल अस्तित्व और जिंदगी को चारों तरफ घेरे हुए है। उसके दिव्य स्पर्श से जीवन सुवासित और पुलकित हो उठा है। शरीर का रोम-रोम, हृदय का कोना कोना, समय का क्षण-क्षण उस प्रकाशपुंज को अहोभाग्य से निहार रहा है...।

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अस्तित्व तुझमें ही कहीं खो गया...💐

तुझे याद करते करते तो सबकुछ खो गया। सारी की सारी साँसे खप गईं, जिंदगी का कतरा कतरा कुर्बान हो गया। जिसे रूह कहते हैं, आत्मा कहते, जीवन का अस्तित्व कहते हैं, अपने भीतर से निकालकर तुम्हें उसी पल सौंप दिया था जिस पल हृदय के आईने में अपनी सूरत की जगह तुम्हारा चेहरा देखा, अपने भीतर तुम्हारा अख़्स देखा, अपनी परछाई में तुम्हारा रूप देखा।
कहने को तो बस अब ये माटी का तन ही रह गया है, जिसे अहंकार वश अपना कह लेता हूँ। लेकिन अब तन भी जर्जर होने को है, किसी तूफ़ान के एक थपेड़े से यह भी किसी दिन झरझराकर गिर पड़ेगा, ढह जाएगा।
जैसे हरी घास पर बिखरी ओस की बूंदे जो भोर की पहली किरण पड़ते ही मोतियों की तरह चमकती हैं, पैर पड़ते ही अपना रूप खो जाती हैं। रात के आकाश में हीरों की भांति टिमटिमाते तारे सूरज की रोशनी के आते ही अपना रूप खोकर प्रकाश में विलीन हो जाते हैं। ठीक उसी तरह मेरा भी वजूद तुम्हीं में कहीं खो गया है, विलीन हो गया है।
जिंदगी में अब तेरे और मेरे की बात नहीं है, दूरियों और फासलों की बात नहीं है, गहराई और उथलेपन की बात नहीं है, समतल और ढलान की बात भी नहीं है। अब तो बस मौन अभिव्यक्ति की बात है, निःशब्द की बात है।
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बुधवार, 5 दिसंबर 2018

प्रेम का सही रूप...💐

कक्षा छठवीं में पढ़ रही अबोध बच्ची के स्कूल बैग से प्रेम पत्र मिलता है। पिता उस पर टूट पड़ता है, खूब खरी खोटी सुनाता है, मारता-पीटता है। जब भी पिता डंडे से उसे पीटता, वो बच्ची किसी फ़िल्म की हीरोइन की तरह चिल्ला चिल्लाकर डायलॉग बोलती-
"प्यार किया तो डरना क्या" "प्यार किया तो डरना क्या"

पिता ने बेटी को मारकर, डराकर उसकी आवाज बंद तो कर दी। लेकिन वह सोच में पड़ गया कि इतनी छोटी, इतनी अबोध बच्ची कैसे प्रेम का मतलब समझ सकती है और कैसे किसी से प्रेम कर सकती है? वह कारणों का पता लगाना चाहता है।

दरअसल प्रेम सभी मानव के लिए अति आवश्यक है। लेकिन बच्चे और किशोर प्रेम के जिस रूप को सबकुछ मान बैठते हैं वह प्रेम उन्हें गर्त की ओर खींच लेता है। उन्हें प्रेम का सही रूप, सही ढंग से समय रहते समझने और समझाने की जरूरत है।

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

साहब और शिष्य का मिलन...💐

पीढ़ी बीत गयी, घर में संतों के चरण नहीं पड़े। संतु बड़े आस से इस पूर्णिमा अपने घर में चौका आरती कराने जा रहा है। वह मिट्टी के टूटे फूटे और कच्चे घर में बड़े ही संकोच के साथ संतो और रिश्तेदारों को आमंत्रित करता है।

साल भर गांव में मजदूरी की। पाई पाई जोड़कर बड़े ही प्रेम भाव से वह चौका आरती और भोजन भंडारे की सारी व्यवस्थाएं करता है। उसके साथ पूरा परिवार बेहद खुश है कि आज बरसों बाद संतों के माध्यम से साहब के कदम घर आँगन में पड़ेंगे, साहब के चौका आरती से जन्मों का मैल धूल जाएगा। संतु ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। वो चौका का कोई विधि विधान नहीं जानता, सिर्फ बंदगी जानता है, समर्पण जानता है।

अश्रुपूरित नेत्रों से आरती करते हुए पूरा परिवार महंत साहब के रूप में "साहब" की आगवानी करता है। चौका शुरू होता है, संतु अपने परिवार के साथ साहब को नारियल, फूल, पान, सुपारी, द्रव्य भेंट करता है। वह और उसका परिवार महंत साहब के चरणों में, बरसों की प्रतीक्षा और जीवन का भार अश्रु धारा के रूप में अर्पित कर देता है।

चौका के समापन तक संतु बैठे बैठे महंत साहब को निहारता रहता है, रोता और सिसकता रहता है। दीनता से भरे उसके भाव देखकर महंत साहब भी अपने को रोक न पाए, चौका के आसन में बैठे बैठे वो भी रो पड़े।

"साहब" और "साहब के भक्त" का चौका के बीच सुखमनी लगन में निःशब्द मिलन हो रहा था।

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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

कोई सदा के लिए जा रहा है...💐

कोई जाना पहचाना चेहरा सफेद कफ़न में लिपटा हुआ लगता है। उसे चंदन का लेप लगाया जा रहा है। उसके लिए फूलों का बिस्तर सजाया जा रहा है। कहीं दूर, जिन्हें अपना कहता हूं उनके रोने, बिलखने की आवाज कानों में पड़ रही है। शायद फिर से कोई विदा होने जा रहा है।

जीवन के असह्य पीड़ा से उसकी मुक्ति की खुशियां मनाऊँ या सदा के लिए उसका साथ छूटने का मातम। कभी कभी जिंदगी और जिंदगी देने वाले बड़े निष्ठुर प्रतीत होते हैं। दोनों को कोसने के अलावा कुछ कर भी तो नहीं सकते।

अलविदा दोस्त, तुम्हारा शुक्रिया जिंदगी में आने के लिए...💐

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

दो शब्द तुम्हारे लिए...💐

प्यार तो है और सदा रहेगा। चंद किलोमीटर की दूरियाँ मन के भावों को, जज्बातों को रोक नहीं सकती। क्या हुआ जो उमर भर के लिए साथ न रह सके, क्या हुआ जो मिलकर भी बिछुड़ गए। दिल की गहराई में तो तुम्हारा ही अख़्स है, तुम्हारा ही प्यार है। अब भले ही अपना प्यार जता नहीं सकते, हक जता नहीं सकते, पर प्यार का मौन रूप भी बेहद खूबसूरत है, बिल्कुल तुम्हारी तरह।

उसकी परिस्थितियां शायद बहुत मुश्किल रही होंगी, तभी तो उसने अलग होने का फैसला किया। वरना तुम्हारे कहने पर सब कुछ छोड़ देने का साहस उसमें भी कम न था।

क्या ऐसा हो सकता है कि 10 बसंत जीने वाला प्यार भी कभी मर जाए। वो अब भी जिंदा है। हृदय की परतें खोदो, थोड़ी गहराई में जाओ, वो मिलेगा और अपने ही दिल के अंदर मिलेगा। हमारा प्यार तो सदाबहार है, मोगरे के ताजे फूलों की तरह। उसकी महक हमारे जीवन को हमेशा महकाती रहेंगी।

वो आँगन, वो बाड़ी, वो गलियां, वो तालाब... तुम्हें प्यार का अहसास कराएंगे। शहर की दूरियां, बस और बाइक का सफर, खीर, गोभी और मटर की सब्जी, प्रेम पत्र के रंगीन पन्ने प्यार की गहरी अनुभूति कराएंगे।

अलग होने का दर्द हम दोनों तन्हाई में शिद्द्त से महसूस करते हैं। ये दर्द न तुम्हारा ज्यादा है न मेरा कम। बिछोह की पीड़ा हम दोनों का बराबर है। एक दूसरे के लिए हम दोनों ने ही अपनी जिंदगी फूँक डाली। एक दूसरे को प्यार का प्रमाण देने के लिए वो दस साल कम नहीं हैं।

आज भी उन सदाबहार यादों से हृदय महकता है, आनंदित होता है, उसे फिर से दोहराना और जीना चाहता है। मेरे हृदय में तुम्हारा प्यार अमिट, अमर है, जो अब शरीर के छूटने के बाद भी मेरे लेखों में, मेरे ब्लॉगों में रह जाएंगे प्रेम पत्रों की तरह।

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साहब के साथ सेल्फी...💐

उस महात्मा ने हाथ पकड़कर साहब के रास्ते पर चलना सिखाया। साहब का परिचय कराया, उनके होने का बोध कराया, उनकी वाणियों को जीना सिखाया। वो कहा करते थे साहब तक पहुंचने की अनेकों विधियाँ हैं, लेकिन सबसे सरल विधि साँसों के माध्यम से उनके नाम का सतत स्मरण है, वो भी बिना तारी टूटे, बिना एक भी स्वांस वृथा गवाएं। एक ही मौका ही, एक ही जीवन है। साहब को नहीं जी सके तो क्या जिए?

कुछ दिनों के प्रयास से नाम का स्मरण भीतर तक समाने लगा। अब तो पैदल चलने के पदचाप में भी "सत्यनाम" की ध्वनि सुनाई देने लगी। कमरे की घड़ी भी टिक-टिक में "सत्यनाम" का स्मरण करने लगी। जो भी व्यक्ति सामने आता, उसके चेहरे में भी "साहब का रूप" दिखाई देने लगा। भाव विह्वल उनके चरण पकड़ लेता। धीरे धीरे उसकी दिनचर्या "सत्यनाम" और "साहब" के रंगो से सराबोर हो गया। अब तो वो पूरी तरह साहब के आगोश में समाता ही चला गया।

कुछ समय बाद तो उसे लोगों की बातें सुनाई देना बंद हो गई, संसार के दृश्य दिखाई देना भी बंद हो गए। न तो खाने पीने का होश, न ही सोने जागने का ख्याल। उसका सबकुछ खो गया, वो बदहवास साहब को पुकारता ही रहा। शरीर कांटे की तरह सूख चुका था, आंखों से आंसू रोके नहीं रुकते थे। उसने अपनी साँसे और जिंदगी फूँक डाली, उसको अब साहब के अलावा जीवन से कुछ और नहीं चाहिए था।

आखिरकार बड़ी प्रतीक्षा के बाद उसे साहब मिल ही गए, और साहब के दर्शन पाकर वो फुट फुटकर रोया, रोता ही गया। वो सबको पकड़ पकड़कर साहब के बारे में बताने की कोशिश करता, कभी रोता, तो कभी झूमता। उसके हृदय में साहब के लिए पागलपन और जुनून उमड़ पड़ता। साहब ने उसके जीवन की डोर थाम ली, और उसने भी साहब के साथ सेल्फी ले ली।

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गुरुवार, 29 नवंबर 2018

मोगरे के फूलों की तरह महकती यादें...💐

कड़कड़ाती ठंड और सर्द रात, नदी के किनारे महीनों बाद वे दोनों मिले थे। ऊपर गहरे आसमान में बिछी चाँदनी से धरती नहाई हुई थी। हवा की धीमी-धीमी लहरों से शरीर का अंग अंग ठिठुर रहा था, धरती पर गिरती ओस की बूंदे सिहरन पैदा कर रही थी। रात की उस गहरी खामोशी में भी गजब सी चंचलता थी, मदमस्त संगीत था, अलहड़ता थी।

पास ही एक झोपड़ी नुमा कच्चे घर में उस दिन जिंदगी से मुलाकात थी। उस रात दोनों एक कम्बल में साथ थे, पूरी रात खामोश ही रहे, लेकिन दोनों की साँसे आपस में बातें करती रही। शहर से दूर किसी अनजाने सफर पर वो एक दूसरे का हाथ थामें निकल पड़े थे।

सुबह होते ही पास के होटल में अलाव के निकट बैठे, चाय की चुस्की लेते, रात की थकान मिटाते रहे। कुछ देर सुस्ताने के बाद वो दोनों फिर से जंगल की ओर वीरान रास्ते के सफर पर निकल पड़े, जहां उनका प्यार परवान चढ़ता गया, आकाश की अनंत ऊचाइयों को छूता गया।

बरसों तक वो दोनों इसी तरह प्यार में जीते रहे, जमाने से बेखबर अपनी मस्ती में मस्त रहे। समय पंख लगातार तेजी से उड़ गया, लेकिन उस रात की अनकही मीठी याद हृदय को आज भी भावविभोर और आनंदित कर देता है। उस रात की महक से आज भी जिंदगी सुवासित है। यादें अब भी ताजी हैं, मोगरे के फूलों की तरह...💐

रविवार, 25 नवंबर 2018

मुक्ति का माया और बंधन में रूपांतरण...💐

रिटायर आईएएस अफसर अपने पैतृक गाँव में 10 एकड़ कृषि भूमि इसलिए खरीदता है कि बाकी का जीवन सुकून से प्रकृति के करीब रहकर बिता सके। लेकिन चार-चार बोर करा लिया, जमीन से पानी ही नहीं निकला। जल देवता तो जैसे उनसे रुठ ही गये। उसे पता चला कि पास ही एक संत रहते हैं जिसे सिद्धि प्राप्त है, वे समस्या जरूर हल कर देंगे।

वह बेहद हल्की उमर के लग रहे, साफ सुथरे चेहरे वाले संत के चरणों में नारियल और पूजा का सामान चढ़ाते हुए प्रणाम कर जमीन पर बैठ जाता है। संत अचानक बोल उठता है- "पानी के लिए आए हो?" अफसर ने "हाँ" में सिर हिला दिया।

संत ने अफसर से कहा- "चलो अभी अपनी जमीन पर ले चलो, जहाँ कहूं वही बोर खुदवाना।" जमीन के चारों तरफ घूमने के बाद संत ने एक जगह बताई जहाँ दूसरे दिन बोर खुदवाई गई, बोर सफल रहा, पानी का भरपूर स्रोत मिल गया।

बोर से पानी निकलने की चर्चा आसपास के पूरे गाँव में फैल गई। देखते ही देखते बड़ी बड़ी गाड़ियां उसके झोपड़ी के बाहर खड़ी होने लगी, बोरियों में "लक्ष्मी" भरी जाने लगी, और वो संत अब "भगवान" कहलाने लगा। मुक्ति का माया और बंधन में रूपांतरण हो चुका था

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साहब का सच्चा भक्त...💐

रात करीब दो बजे घुमंतु लोगों का एक झुंड कमरे में सत्संग कर रहा था। कहते हैं जिनमें से कुछ लोग साहब तक पहुँच चुके थे और कुछ लोग मार्ग में थे।

कहते हैं लाखों और करोड़ों में कोई एक साहब का सच्चा भक्त होता है जो साहब को जीता है। मैं तो हर छै महीने में दामाखेड़ा का मेला जाता हूँ, साहब का प्रवचन सुनता हूँ, हर रोज गुरु महिमा और संध्या पाठ करता हूँ, ध्यान करता हूँ। मुझे तो अनहद नाद भी सुनाई देता है। फिर चूक कहाँ हो रही है? लाखों और करोड़ों की भीड़ में, साहब के भक्तों की सूची में मेरा नाम क्यों नहीं है? क्या मैं साहब का सच्चा भक्त नहीं हूँ? साहब की ओर मार्ग में बढ़ रहे एक नन्हें जिज्ञासु ने प्रश्न किया।

सद्गुरु कबीर साहब के अनन्य भक्त हुए धनी धर्मदास साहब और आमिन माता साहिबा। क्या उनकी तरह तुम भी अपना जीवन हथेली पर रखकर साहब को भेंट कर सकते हो और कह सकते हो कि साहब आज से मेरे जीवन पर आपका सर्वाधिकार है। क्या साहब के नाम का दीपक पल पल हृदय में प्रज्वलित करने का साहस रखते हो? क्या उनके जैसी दृढ़ता है तुम्हारे भीतर? अगर तुम उनका अनुसरण कर सके तो अवश्य ही लाखों और करोड़ों की भीड़ में साहब के सच्चे भक्त के रूप में पहचाने जाओगे। संत के कथन से कमरे में खामोशी फैल गई।

खामोशी तोड़ते हुए संत ने पुनः कहा- "धर्मनि-आमिन सा चरम त्याग और बलिदान कहाँ से लाओगे? हमारी भक्ति उनके प्रेमाश्रु के एक बूंद के बराबर भी नहीं है।" लाखों और करोड़ों की भीड़ में कोई विरला ही साहब को जीने वाला होता है, वही साहब का सच्चा भक्त और प्रेमी होता है।

दो दल आन जुरै जब सन्मुख, शूरा लेत लड़ाई।

टूक टूक होय गिरे धरणी पै, खेत छांड़ि नहि जाई।।

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शनिवार, 24 नवंबर 2018

काबिलियत...💐

स्वाभाविक रूप से हर मानव में कुछ न कुछ कमियां होती ही है। लेकिन पूजनीय और जिम्मेदारी के पदों को धारण करने वाले लोग, हमें साहब का मार्ग बताने वाले लोग, साहब से हमें जोड़ने वाले महंत लोग कम से कम बंदगी करने के काबिल तो हों, उनका बाहरी आचरण तो कम से कम साफ सुथरा हो।

ऐसा नहीं है कि सब लोग बुरे हैं। हमारे आसपास बहुत से अच्छे लोग भी हैं, जो बेदाग और मर्यादित जीवन जीते हैं, साफ छवि रखते हैं। उनका साहब के प्रति समर्पण सहज ही दिख पड़ता है, और जिन्हें देखते ही मन में श्रद्धा उमड़ पड़ता है।

जिस दिन किसी व्यक्ति को साहब से महंती पंजा प्राप्त होता है उस दिन से ही वह व्यक्ति समाज में साहब के प्रतिनिधि के रूप में पहचाना जाने लगता है। तब उसका जीवन उसका नहीं रह जाता, साहब का हो जाता है। वह महंत, साहब के जीव कल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, अपना जीवन देता है।

बदले में समाज उसे क्या नहीं देता? समाज उसे सम्मान देता है, आदर देता है, धन देता है, जगत कल्याण के लिए जीने का मकसद देता है, अपने घर और हृदय में स्थान देता है, चरणों में शीश नवाता है।

ऐसे में उनसे कम से कम पारदर्शिता, निष्पक्षता, अच्छे आचरण और मानवीय गुणों की अपेक्षा तो होती ही है।

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साहब का साथ...💐

अस्पताल की बिस्तर पर जब मौत से जंग हो थी तब जान बचाने के लिए न तो कोई कांग्रेस का नेता आया था, न भाजपा का नेता आया था, न ही जनता कांग्रेस का, और न ही समाज और जातिवाद के ठेकेदार। तब सिर्फ साहब थे, तब सिर्फ साहब ने हाथ बढ़ाया था और जान बचाई थी, साँसे दी थी। उनके नाम की डोर थामें ही मृत्यु पर विजय मिली थी।

मैं पूछता हूँ कहाँ थी तुम्हारी राजनीति जब मेरी तीन साल की नन्ही सी बेटी पांच दिन अस्पताल में दर्द से तड़पती रही, कहाँ थे तुम जब हाथ जोड़कर उस डॉक्टर से जान बचाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा। फीस कम करने के लिए पैरों पर गिरा था। तब भी सिर्फ साहब थे, तब भी उन्होंने ही हाथ थामकर हमें जिंदगी दी।

मेरे मासूम प्यार को छिनने वाले, जिंदगी भर का दर्द देने वाले राजनीति और लोकतंत्र के ठेकेदार, जातिवाद के ठेकेदार तुमने हर कदम पर धोखे के अलावा कुछ दिया ही क्या है?

आज फिर तुमसे कह रहा हूँ, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है। उस परमात्मा की जरूरत है, साहब की जरूरत है, जिन्होंने ये साँसे दी, खूबसूरत संसार को निहारने के लिए हमें जिंदगी दी।

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

पैंक्रिटाइटिस (Pancreatitis) अथवा अग्नाशय शोथ...😢

बचपन से ही मैं असहनीय पेट दर्द से परेशान हूँ। बहुत इलाज करवाया लेकिन डॉक्टर समझ ही नहीं पा रहे थे कि समस्या क्या है। बरसों बाद मेरे पेट दर्द की समस्या पैंक्रिटाइटिस के रूप में सामने आई। इस समस्या ने मुझे जिंदगी के हर कदम पर पछाड़ा, पीछे छोड़ दिया, सामान्य जीवन जीने ही नहीं दिया। आए दिन असहनीय दर्द और पीड़ा मेरे साथ मेरे अपनों को भी झेलना पड़ता है। चूँकि यह समस्या मुझे जन्मजात हो सकती है, और ताउम्र यह मेरे साथ बना रह सकता है, इसलिए मुझे इसके साथ तालमेल बनाकर जीना सीखना होगा। यह गंभीर किस्म की बीमारी है, और इसके सही कारणों के बारे में डॉक्टर भी नहीं बता पाते हैं। इस पर अभी भी शोध चल रहा है।

मेरे डॉक्टर ने इस विषय पर मेरा अनुभव लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया, अतः पैंक्रिटाइटिस पर मेरे अनुभवों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ, जिसे समय समय पर अपडेट भी करता रहूंगा, शायद किसी के काम आ जाए जो इस समस्या से पीड़ित हो और जिन्हें इससे उबरने का मार्ग नहीं मिल रहा हो।

पेट का दर्द लंबे समय से बना हुआ हो। चाय पीने, तेल में तली चीजें खाने, भारी खाना खाने से दर्द बढ़ जाता हो, सोनोग्राफी और एंडोस्कोपी की जांच में कुछ पता न चलता हो, खून की जांच में सुगर का स्तर अकस्मात बढ़ा हुआ हो, दिन प्रतिदिन वजन कम हो रहा हो, तो यह पेनक्रियाज से संबंधित गंभीर समस्या हो सकती है। यह समस्या कई मरीजों में पैंक्रिटाइटिस कैंसर के रूप में भी सामने आ सकती है। इसकी जांच के लिए डॉक्टर पेट का सीटी स्कैन, एमआरआई, बायोप्सी आदि कराने की सलाह देते हैं।

पेनक्रियाज मानव शरीर की एक बड़ी ग्रंथि होती है, जो हमारी छोटी आँत में कई तरह के हार्मोन का स्राव करता है। इसके मुख्य हार्मोन होते हैं- लिपासे (Lipase), अमिलिज (Amylase) और प्रोटीज (Protise)। ये हार्मोन हमारे आहार के प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट को पचाने में सहायक होते है। इसके अलावा यह इंसुलिन (Insulin) का उत्पादन भी करता है, जो हमारे शरीर के सुगर लेवल को नियंत्रित करता है। पेंक्रिटाइटिस में आहार के साथ लिए जाने वाले पोषक तत्वों (प्रोटीन, वसा कार्बोहाइड्रेट) को शरीर पचा पाने में असमर्थ हो जाता है। जिससे शरीर कमजोर हो जाता है।

डॉक्टरों का मत है कि अत्यधिक शराब के सेवन, नशे का लत, स्टेरॉइड का लंबे समय तक सेवन करना, संक्रमित और दूषित भोजन, अग्नाशय की पथरी, लंबे डिप्रेशन के कारण एवं जन्मजात रूप में भी पेनक्रियाज से संबंधित बीमारी होती है।

यह गंभीर और दर्दनाक बीमारी है। इसमें पेनक्रियाज में सूजन हो जाती है, जिसके कारण उल्टी, दस्त के साथ पेट के बीचों बीच, पेट के बाईं ओर, पीठ की ओर तथा कंधो में बहुत तेज दर्द हो सकता है, यह दर्द कभी कभी झटके (Pancreatic Attack) के रूप में भी होता है। समस्या बढ़ने पर खून की उल्टी और दस्त भी हो सकती है। ऐसे में मरीज को खून चढ़ाने की आवश्यकता और अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ सकती है। अतः लंबे समय से चले आ रहे पेट के दर्द को गंभीरता से लेते हुए समय पर चिकित्सकीय परामर्श जरूर लेना चाहिए।

वर्तमान में मेरे डॉक्टर ने डाईट में प्रोटीन से भरपूर आहार, दाल, हरी सब्जियां, सभी प्रकार के फल लेने को कहा है। साथ ही सुगर और तले हुए खाद्य पदार्थों से दूर रहने की सलाह के साथ निम्न दवाइयाँ दी है:-

(1) Panlipase 25000
(2) Antoxipan
(3) Razo 20
(4) Pregabalamin

पेंक्रिटाइटिस से संबंधित में अनेक जानकारियां विभिन्न लेखों और वीडियो के माध्यम से ऑनलाइन हिंदी भाषा में भी अब उपलब्ध है।

https://www.myupchar.com/disease/pancreatitis#medicine

शनिवार, 3 नवंबर 2018

चुनाव और गोपाल का घर...💐

मतदान के कुछ दिन पहले ही गोपाल की झोपड़ी में नेताजी के खास आदमी की मार्शल गाड़ी आकर रूकती है। सफेदपोश खास आदमी कहता है- "पूरा इंतेजाम कर लिए हैं, गाड़ी सुबह 7 बजे तुम्हारे घर पहुँच जाएगी, वोटिंग के बाद प्लेन, मसाला, टंगड़ी की पूरी व्यवस्था है। साथ ही भैयाजी आपको कुछ लिफाफे के पैकेट भी भेंट करेंगे।"

चुनाव आते ही सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, कर्मचारी संगठन अपने हित साधने में एड़ी-चोटी एक कर देते हैं। ऐसे में बेचारे गोपाल की आंखों में भी एक खोली के पट्टे वाले घर का सपना तैरना बड़ी बात नहीं है।

वो नेताजी के खास आदमी से पहले की भांति ही डील पक्की करता है। घर के चार सदस्यों के वोट के बदले एक खोली का पक्का घर।

मतदान होता है, नेताजी चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन फिर पांच साल बीतने को आए, वादा अब तक पूरा नहीं हुआ। गोपाल अब भी माता-पिता, पति-पत्नी और दो बच्चों के साथ उसी कच्चे मकान में रहता है। अब गोपाल नेताओं को अच्छी तरह से समझने लगा है, और अपनी नियति भी।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...