रविवार, 10 मई 2020

कुछ विराम लूँ...💐

जी चाहता है कुछ विराम लूँ। विचार जो बेलों की तरह यहाँ वहाँ फैले हैं उन्हें छंटाई कर लूँ, बुहार लूं, समेट लूँ, अपने को जरा संभाल लूं। एकांत के सरोवर में थोड़ी और गहरी डुबकी लगा लूं, खुद को करीब से और निहार लूं, खुद को खुद से जोड़ लूँ। 

चाहतों के बादल बरसने लगे हैं, कामनाओं की झड़ी लगी हुई है। इन्हें सही दिशा दे लूँ, सुरति को संवार लूँ, नाम के चादर में अस्तित्व ढंक लूँ, समा लूँ। जी चाहता है विराम लूँ।

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मुक्ति का पंथ...💐

गले में कंठी के साथ साथ छुपाकर दिखाई न देने वाला ताबीज बांह में भी धारण किया हुआ है। रोज संध्यापाठ तो करता ही है, साथ ही साथ मन ही मन सबसे छुपाकर महामृत्युंजय का जाप भी करता है। दिवाली के दिन पहले साहब की आरती गाता है फिर महालक्ष्मी का पाठ भी करता है। अच्छी बात है कि कम से कम तेरी उपासना पद्धति में हिंसा तो नहीं, वरना कई तो कंठी धारण करने के बाद भी मासूम जानवरों की बलि देते हैं।

जब मुसीबतें आती है तो आदमी क्या क्या नहीं करता। बेशक प्राण बचाने के लिए सबकुछ करो। लेकिन पहले अपने गुरु, अपने सद्गुरु को तो टटोल लो, उनके चरणामृत, उनके प्रसाद पर तो दृढ़ विश्वास करके देख लो। 

अक्सर लोग भौतिक विकास के लिए अन्य उपासना पद्धति की ओर आकृष्ट होते हैं, और मुक्ति के लिए कबीरपंथ का सहारा लेते हैं।

मेरी तन्हाई 💐💐💐

तन्हाई केवल एक एहसास नहीं, बल्कि एक ऐसी गहरी दुनिया है जहाँ कोई और नहीं, बस आप और आपकी सोच होती है। यह एक खाली कमरा नहीं, बल्कि एक भरी हुई क...