गुरुवार, 14 मार्च 2019

सरकारी आदमी और राजनीति...💐

वर्तमान में निष्पक्ष होकर राजनीतिक विषयों पर अपनी राय सोशल मीडिया में व्यक्त करना किसी चुनौती से कम नहीं है। लोग डंडा लेकर घर पहुँच जाते हैं। सरकारी आदमी तो बेचारा दबा कुचला, डरा घबराया सा रहता है और अक्सर इन विषयों पर अपने विचार रात को खाना खाते समय टीवी खोलकर केवल अपनी बीबी से व्यक्त कर पाता है, वो भी बेहद धीमी आवाज में।

उस पर पाबंदी होती है, सरकारी व्यवस्थाओं पर कुछ कहने की मनाही होती है। सरकारी नौकर होकर सरकार की ही नीतियों या राजनीतिक मामलों पर कुठाराघात नहीं कर सकता, जिस डाली पर बैठा है उसी डाली को नहीं काट सकता। अरे भाई नौकरी जाने और पापी पेट का सवाल है।

वो तो बस सबके विचार पढ़ता है, चटकारे लेता है। मन ही मन चुनिंदा नेताओं को गालियाँ देकर अपनी भड़ास निकालता है, बड़े साहब से रोज डांट खाता है और सुबह दस से शाम छः बजे की ड्यूटी बजाता है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...