गुरुवार, 29 मार्च 2018

सत्य की खोज, संतो की शरण...💐💐💐

कहते हैं सत्य को जानना बहुत आसान है, लेकिन उस तक पहुँच इसलिए नहीं पाते क्योंकि अक्सर हम उसे मनोरंजन की तरह ले रहे होते हैं। जानने की ललक में तीव्रता नहीं होती है, गहरी प्यास नहीं होती है, लगन नहीं होता है। सत्य की भूख में जब तक जलकर राख न हो जाएं, तब तक वह पहुँच से दूर ही रहता है।
मुक्ति की राह संतो की संगति से आसान हो जाती है।

"बुद्धं शरणम् गच्छामि का सामान्य अर्थ यही लगाया जाता है, कि बुद्ध की शरण लेता हूँ या जाता हूँ, किन्तु इसका वास्तविक अर्थ है, किसी भी अच्छे संत या जागे हुए व्यक्ति के समीप जाना ! वही मोक्ष के अनुभव का सर्वोत्तम साधन बन जाते हैं !”
कहते हैं-
”आत्मा भी अंदर है,
परमात्मा भी अंदर है,
आत्मा के परमात्मा से मिलने का,
रास्ता भी अंदर है”

जिस दिन परमात्मा को याद करते करते अपने में डूब मरते हैं, इक्छाएँ और चाहनाएँ जलकर राख हो जाती है, उस दिन अंतर्मन में प्रकाश होता है, अंतरात्मा में फूल खिलते हैं, हृदय परमात्मा की दिव्य सुगंध से भर उठता है, वो मिलते हैं, परम् सत्ता का मौन स्पर्श महसूस होता है।

मंगलवार, 20 मार्च 2018

अतृप्त प्यास...💐💐💐

जब मौन होता हूँ महसूस होते हैं आप। खुले नयनों से नजर आते है, और बंद आँखों से भी चहुँ ओर आपकी ही छवि नजर आती है। गहरे मौन में भी और जोर की कोलाहल में भी, हृदय की हर धड़कन में भी, नींद में भी, जाग्रत में भी, चेतनता और जड़ता में भी बस आप ही आप हैं। जीवन के इस पार और उस पार भी आप ही हैं, प्रकृति के हर रूप में, हर रंग में, आकाश के अनंत फैलाव में और सुक्ष्म परमाणु में भी आप ही हैं, आप ही जीवन पर छाए हैं।

उठते बैठते, सोते जागते आप सदा नजरों में रहते हैं। आप ही सुनाई देते हैं, आप ही दिखाई देते हैं। साँसों से भी आपकी ही सुबास आती है। हर ध्वनि, हर आवाज आपकी होती है। जब मौन होता हूँ आपकी धड़कन सुनता हूँ, आपको अपने मे जीता हूँ।

फिर भी न जाने कैसी प्यास है, मिलकर भी न मिल पाने का अहसास है, अतृप्त सी प्यास है...

रविवार, 18 मार्च 2018

यादों के पन्ने...💐💐💐


याद है..???  पहली बार जब हम मिले थे, आमने सामने बैठे थे। मैं शादी के लिए तुम्हारी रजामंदी लेने तुम्हारे घर गया था...। तब हमने एक दूसरे से वादा किया था। हम एक दूसरे का हाथ थामें सदैव उस रास्ते पर आगे बढ़ेंगे, जिस राह तीन करोड़ लोग चल रहे हैं। उस भीड़ में सबसे आगे रहने का वादा था। थककर न रुकने का वादा था, अंत समय तक साथ देने का वादा था, उस रास्ते शीश देने का वादा था, जिंदगी बलिदान करने का वादा था।
मुझे याद है वो दिन, शहनाई बजने को थी, दो हृदय मिलने को थे, सिंदूरी शाम सजने को थी, तुम्हारे द्वार बारात लेकर आने को था। सात फेरों और उन सात वचनों के साथ ही जिंदगी में तुम्हारा पदार्पण होने को था।
उन फेरों के वक्त हमने फिर से एक दूसरे को याद दिलाया और वादा लिया कि जीवन का लक्ष्य उसी रास्ते पर सदैव चलना होगा जो रास्ता संतो की शरण में जाता है, सत्संग की ओर जाता है, साहब की ओर जाता है।
शुक्रिया, मेरे हमसफ़र। शुक्रिया मेरे साथ अंतहीन रास्ते पर चलने के लिए, मेरा साथ देने के लिए, मेरे जीवन को थामने के लिए, मुझे अपनाने के लिए।

उस पहली मुलाकात की तरह आज फिर से हारमोनियम निकालो, मुझे मेरा सबसे पसंदीदा भजन सुनाओ "आमिन विनती..."

Deepakdas Deepakdas साहब और Manohar Das Konari साहब के चरणों में सादर बंदगी, जिन्होंने हमें आशीष दिया, सतमार्ग पर प्रेरित किया।

गुरुवार, 15 मार्च 2018

ग़ुलाल उत्सव...💐💐💐


गुलाल उत्सव के दिन दामाखेड़ा चलने की सुबह से तैयारियां चल रही थी। कुछ लोगों का झुंड पास के ही गांव बुचिपार में ही ठहरा हुआ था। बसंत पंचमी की उस ऐतिहासिक दिन सूर्योदय के साथ ही पंथ श्री उदित मुनिनाम साहब के प्रकट होने की भाव विभोर और हृदय को पुलकित करने वाली खबर मिली।

एक दिन पहले ही आरती के वक्त साहब Manohar Das Konari ने सोलहवाँ वंशाचार्य के प्रकट होने की खबर दे दी थी। लोगों के उस घुमंतू झुंड ने बसंत पंचमी और गुलाल उत्सव एक दिन पहले ही मना लिया था। प्रकट उत्सव की शुभ बेला में उस गाँव के घर की नींव रखी गई थी, जहां वो अद्भुत लोग ठहरे हुए थे। देर रात तक भावी वंशाचार्य के जीवन पर चर्चाएँ होती रही।

दिन चढ़ने के साथ सब लोग दामाखेड़ा पहुँच चुके थे, त्यौहार मनाया गया, बरसों की प्रतीक्षा फलीभूत हुई, परमात्मा का इस प्यासे धरती पर अवतरण हुआ था। मानव तन में उनकी मुखाकृति, बालपन, मासूमियत और ओज देखते ही बनता है। जब सामने आते हैं, नजरें हटती ही नही हैं।

वो ऐतिहासिक दिन अब भी स्मृति में है। साहब के चरणों का गुलाल उस दिन माथे पर लगा लिया था, तब से माथे की लकीरें और किस्मत बदल गयी।

रविवार, 11 मार्च 2018

राधा...💐💐💐


वो क़िस्मत के धनी होते हैं जिन्हें चुनाव का अवसर मिलता है, जीवनसाथी चुनने का अवसर मिलता है। वरना लोग तो रिश्ते का सौदा ही करते हैं। उन्हें प्यार तो था, लेकिन पारिवारिक, सामाजिक और पारंपरिक मर्यादा की दहलीज़ पार करने की हिम्मत वो नहीं जुटा पाए। लेकिन सच तो यही है कि जब जीवन आगे बढ़ता है तो सारे रिश्ते, सामाजिक लोग और परंपरा पैरों की बेड़ियाँ ही बनती है। क़ब्र तक पहुँचते तक शरीर के साथ सारे लोग भी साथ छोड़ जाते हैं।

मिलन की दहलीज से एक बस कदम की दूरी पर आकर उसने सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को अहमियत देते हुए दस बसंत प्यार के रिश्ते को तोड़ना उचित समझा। जबकि सच्चा प्यार तो बलिदान मांगता है, त्याग मांगता है, सर्वस्व समर्पण की अभिलाषा रखता है।

अब एक होकर भी वे दोनों अलग अलग हैं, और अलग होकर भी एक हैं। जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वक्त उसी के साथ बीता, इसलिए वो जिंदगी में रची बसी सी है। हृदय ने एक कोने में उसके लिए घरौंदा बना रखा है, और सदा उसके लिए प्रतीक्षारत रहता है, उसने भी राधा बनना स्वीकार कर लिया...

बुधवार, 7 मार्च 2018

संतजन... अमृत घट...💐💐💐

बहुत से दर्दों की दवा इंसानी हाथों में नहीं हुआ करती। प्रकृति का अपना अलग ही नियम होता है। प्रकृति का नियम सबके लिए बराबर होता है, अपने आप में सर्वोपरि होता है। जिसे न चाहकर भी मूर्त और अमूर्त जीव जगत स्वीकार करने के लिए बाध्य होता है।

कहते हैं संतों के पास जीवन और जीवन के पार का भी बोध होता है, और वे प्रकृति के नियमों को भी प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। कहते हैं दैहिक, दैविक और भौतिक घटनाओं में से मृत्यु एक ऐसी घटना है जिसका रास्ता भी संतजन मोड़ देते हैं या स्थगित कर देते हैं।

प्राचीन समय से ही अबूझ समस्याओं के निवारण के लिए लोग संतों के पास जाया करते हैं। संतों के पास दिव्य ज्ञान का भंडार होता है, अमृत घट होता है, स्वाति बून्द होता है। जिसका पान कर लोग जीवन की अतृप्त प्यास बुझाया करते हैं।

मंगलवार, 6 मार्च 2018

एक अवसर...💐💐💐

जिंदगी सिर्फ एक मौका देती है। इस बार भी बस एक ही अवसर है। हर बार चुकता रहा, करीब पहुँचकर फिसलता रहा। कभी किसी की मोहरा बनता रहा तो कभी किस्मत के हाथों हारता रहा। इस बार ठान ले, चुकेगा नहीं, रुकेगा नहीं, टूटेगा नहीं।

चलना तो अकेले ही है, फिर किसी और से उम्मीद भला क्यों? उस रास्ते अकेले ही चला था, और अकेले ही चलना होगा। हिम्मत तो कर।

सीमाएँ तो तुम्हीं ने बांधी हुई है। सीमाओं से पार जाना है तो बंधन तोड़ दे, बेड़ियाँ खोल दे, उड़ान भर। अकथ की ओर उड़ान, अथाह की ओर उड़ान, अगम्य की ओर उड़ान, निःशब्द की ओर उड़ान, विराट की ओर उड़ान...

साहब का घर...💐💐💐

बालपन से उसे पेट में दर्द है, जब से होश संभाला दर्द के सिवाय कुछ और याद नही है। दादा दादी गाँव में झाड़ फूंक, बैगा से उसका इलाज कराते हुए सत्यलोक सिधार गए। माता पिता ने बहुत सारी पूंजी अपने बेटे के इलाज में फूंक डाली, राजधानी के किसी भी डॉक्टर को दर्द का कोई कारण समझ नहीं आया। 38 बरस की उमर हो गयी, बरसों से दर्द से बेहाल उसकी जिंदगी अब छुटकारा पाना चाहती है, वो अब सदा के लिए चले जाना चाहता है। वो दर्द के कारण कभी ठीक से हंस भी नहीं सका, बस सारी उमर रोता ही रहा, रोता ही रहा, रोता ही रहा।
किस्मत ऐसी की जिस चीज को उसने छुआ मिट्टी बन गया। घर के लोग अपनी किस्मत को कोसते हैं कहते हैं "पैदा ही क्यों हुआ, मर क्यों नही गया।" उसकी जिंदगी और उसे लोग कोसते हैं। सांसारिक रिश्ते अब कहने के रह गए, सबने एक एक करके साथ छोड़ दिया।

डॉक्टर कहते हैं उसकी बीमारी का कोई इलाज नही है। वो डॉक्टर के कहने का मतलब समझ चुका है, जान चुका है कि समय जरा कम है, और काम बहुत सारे।

आज शाम को भी आँगन में चटाई बिछाकर चांदनी को ताकते अकेले तन्हाई में दर्द से रो रहा था। बिटिया की आवाज आई- "पापा, क्या कर रहे हो आँगन में?" सकपकाते हुए आंसू पोछे और बनावटी हंसी से उसे गोद में बिठाते हुए बोला- साहेब जी का घर देख रहा हूँ, वो दूर जो सबसे ज्यादा चमकीला सितारा है न... वही है साहब का घर है, सत्यलोक है... वहीं घर बनाएंगे।

शनिवार, 3 मार्च 2018

रास्ते के फूल...💐💐💐

साहब को एकटक, एकसार ताकता ही रहा। घंटो बीत गए, कई दिन बीत गए, कई रातें बीत गई। दृढ़ निश्चय था- तस्वीर से बाहर निकलकर साहब बात करेंगे तभी चैन की सांस लूंगा।

अगरबत्ती और दीपक जलाया, कलशे की स्थापना की, पान, सुपारी, नारियल, लौंग, इलायची आदि मंगाया। स्वासों में नाम की माला फेरते सफर पर निकल गया।

एक दिन वो तस्वीर से बाहर निकल ही आये, मैजिक हो गया...। कमरे में आकाशवाणी और दूरदर्शन का प्रसारण हो रहा था। जिस रास्ते वो चला था, उस रास्ते पर हर पग परीक्षा होती है। सूक्ष्मता से हर पोल की, हर आवरण की, हर दुर्गुण और हर सगुण की, दसों इंद्रियों की, सिर अलग करके चरणों मे धर देने के हिम्मत की, अहंकार की, चरम समर्पण की परीक्षा होती है।

उस रास्ते में "मैं" खो गया, अब बस "वो ही वो" हैं।

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

यादों के पन्ने...💐

वो पहला प्यार, पहली मुलाकात, पहला स्पर्श, सावन की वो पहली बारिश, छतरी ताने पेड़ के नीचे बिताए लम्हों की यादें...

वो बात अब कहाँ?
चंद लम्हों की वो मुलाकात यूँ आई और यूँ चली गयी। स्मृति बनकर रह गयी। अतीत की परछाई पीछा नही छोड़ती। मेरे अक्स का कोई टुकड़ा खो गया है...।

जिंदगी के सारे रंग बेहद रंगीन थे, जब तुम थी। आज तुम नहीं हो, सारे रंग फीके लगते हैं। अब सफेद रंग की चादर से जिंदगी ओढ़ ली है, सफेद रंग में कोई भी रंग चढ़ा लो, और भी निखर उठता है।

अभी तो तुम्हें ठीक से देखा भी नहीं था, ठीक से जाना भी नहीं था। बहुत कुछ कहना बाकी था, बहुत कुछ सुनना बाकी था। बात ही पूरी नही हुई थी अभी, आस ही पूरी नही हुई थी अभी।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...