शनिवार, 20 जुलाई 2019

भले ही जिंदगी छूट जाए...💐

जब भी खेलते हुए गिर पड़ता तब उन्हें ही याद करता, जब भी परीक्षा में कम नम्बर आते उन्हें ही याद करता, जब भी डर लगता उन्हें ही याद करता। जब अस्पताल की बिस्तर पर जिंदगी की अंतिम सांसे ले रहा था तब भी उन्होंने ही सहारा दिया, बिस्तर से उठने की प्रेरणा दी, चंद सांसे और दी, जीने के लिए थोड़ी मुहलत और दी।

उन्होंने जागृति दी, जीना सिखाया, मानव होने का बोध कराया, खुद का बोध कराया, जीवन की अतल गहराइयों को छूना सिखाया। अकेलेपन की स्थिति में हाथ थामा, रेगिस्तान से मेरे जीवन को अपने अमृत बूंदों से सींचा, मेरे ऊबड़ खाबड़ रास्तों को उन्होंने फूलों से सजाया, मेरे सपनों और ख्वाहिशों को पंख दिए, सही पथ दिखलाया, पग-पग पर मुझे सँवारा और संभाला, इंसान बनाया, संसार और प्रकृति के मनमोहक दृश्य दिखाए।

जब उन्होंने मुझे एक पल के लिए भी बेसहारा नहीं छोड़ा तो मैं उन्हें कैसे छोड़ दूं? जो नस-नस में रचा बसा है भला उसे कैसे छोड़ दूं? अब तो वो खुद ही सांस बनकर मुझमें जीता है। अब तो मेरे लाख चाहने से भी उसका साथ नहीं छूटता, भले ही जिंदगी छूट जाए...

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...