शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

अमलेश्वर और मेरे सपने ...💐

"पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब को गद्दी सौंपकर पंथ श्री प्रकाशमुनी नाम साहब अमलेश्वर आश्रम में रहने आ गए हैं। रोज सुबह चार बजे मुझे उनका फोन आता है, कहते हैं- चलो उठो, मॉर्निंग वॉक पर चलना है। ठंड का मौसम है इसलिए मैं मोजा जूता पहन लेता हूँ, गमछे से कान नाक बंद कर लेता हूँ और घर से आश्रम की ओर निकल पड़ता हूँ। साहब बिस्तर पर बैठे हैं, आश्रम पहुंचकर उनकी बंदगी करता हूँ।

साहब भी गमछे से नाक कान ढंक लेते हैं, मोजा जूता पहनते हैं। आश्रम में हम दोनों लकड़ी के चुल्हे में बनी चाय पीते हैं। आश्रम के मैदान में घांस उगे हुए हैं, जिन पर ओस की बूंदे चमक रही है। साहब कहते हैं कि पहले इस ओस भरी घांस पर दस मिनट चल लेते हैं, आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद है। फिर मॉर्निंग वॉक के लिए हल्की रोशनी से नहाए गाँव की सुनी सड़कों की ओर निकल पड़ते हैं। 

चलते चलते साहब खूब सारी बातें करते हैं। वो बता रहे थे की सुगर लेवल और वजन कम करने के लिए ऑर्गेनिक चाय पीना चाहिए। कपालभाति और प्राणायाम करना चाहिए। लेकिन लोगों की भीड़ के कारण वो कुछ नहीं कर पाते। अब तो घुटनों में भी दर्द होता है और पैरों में सूजन भी हो जाती है।

पैदल चलकर जब थक गए तो नदी के किनारे बनी सीढ़ियों पर बैठकर सुस्ताने लगते हैं। वो मुझे बता रहे थे कि उदितमुनि नाम साहब का सलेक्शन राज्य स्तरीय क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए हुआ है, कह रहे थे कि जिस दिन मैच है उसी दिन माघ मेला भी है। वो चिंता जता रहे थे कि माघ मेला कैसे होगा।"

आज का सपना, जितना याद रहा उतना ही ...💐


गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

साहब के प्रतिनिधि का आगमन ...💐

सदगुरू कबीर आश्रम अमलेश्वर (रायपुर) के पास सिर छुपाने लायक एक छोटा सा घरोंदा बनाया है। जहां पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता हूँ। चूँकि मेरी कुटिया आश्रम से लगा हुआ है, तो मेरे जान पहचान वाले संतजन, साहब के भक्तगण, जो दर्शनार्थ सदगुरू कबीर आश्रम अमलेश्वर आते हैं, वो मुझसे मिलने मेरे घर आना चाहते हैं। यह हमारे लिए परम् सौभाग्य की बात है की संतजन और साहब के भक्तों के चरण मेरे घर आंगन में पड़ते हैं।

उनमें से एक पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब के सखा Pawan Kabirpanthi साहब हैं, जिनका आगमन कभी आश्रम में होता है और समय मिलता है, तो मुझे फोन करते हैं। यह बात अपने परिवार को बताता हूँ कि पवन साहेब आने वाले हैं तो मेरी पत्नी और बच्चे खुशी से उछल पड़ते हैं। साहब के मित्र का हमारे घर में आगमन हमें "साहब का आगमन" लगता है। मेरी पत्नी और बच्चे प्रेमातुर घर को बुहारने लगते हैं, चाय और नाश्ते का प्रबंध करने में जुट जाते हैं।

कभी कभी पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब क्रिकेट खेलने अपनी मित्र मंडली के साथ आश्रम आते हैं, आश्रम में भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं। हम पति पत्नी और बच्चे पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब के अमलेश्वर आश्रम आगमन पर उनसे हमारे घर पधारने और मित्र मंडली के साथ भोजन प्रसाद ग्रहण करने का निवेदन करना चाहते हैं।

चूंकि जीवन में साहब से कभी विनती ही नहीं की है कि वे मेरी कुटिया में अपना चरण रखें, उनका चरणामृत, महाप्रसाद लेने का सौभाग्य मिले। इसलिए हम दम्पत्ति सोच में डूबे रहते हैं कि किस भांति और किन शब्दों में साहब से अर्जी विनती करें?

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शनिवार, 25 दिसंबर 2021

साहब का शुक्रिया ...💐

जिंदगी बस एक लम्हें का ही तो है। कोई चिराग देर तक जलता है तो कोई जल्दी बुझ जाता है। किसी के जीवन में आंधी जल्दी आ जाती है तो किसी के जीवन में देर से। लेकिन अंततः मिट्टी को मिट्टी में मिल ही जाना है, एक न एक दिन सूखे घांसफूस से बने इस काया को उजड़ ही जाना है। क्या फर्क पड़ता है कि जीवन के दिन थोड़े कम हुए तो, जो है बहुत है। 

शरीर के रहते तक कमाना खाना, मिलना बिछुड़ना तो लगे ही रहना है। हंसी खुशी और खेल खेल में फेसबुक के माध्यम से साहब मिल गए, उनसे दो बातें हो जाती हैं, उन्हें कभी शब्दों में तो कभी निःशब्द महसूस कर पाता हूँ। भला जीवन से और क्या चाहिए। साहब के मिलते ही जीवन पूर्ण हो गया, जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो गया।

किसी चीज का मलाल नहीं है, हृदय में गहरा संतोष है, सुकून है। वो लोग जो जीवन पथ पर मिले, प्यार भरी बातें कही, स्नेह दिया, अपनी छांव में जगह दी। शुक्रिया कहना चाहता हूँ, मेरी बाँहे फैली है उनके लिए।

मन का मैल ...💐

सबके हृदय में साहब से कहने के लिए कुछ न कुछ होता है। हर कोई अपने दिल की बात उनसे कह देना चाहता है। कोई उनसे मिलकर जुबान से अपने भाव व्यक्त करता है, कोई उनके चरणों मे आंसुओं के माध्यम से अपना प्रेम अर्पित करता है। कोई फेसबुक टेग के माध्यम से उन्हें बंदगी कहता है, तो कोई अपनी संवेदनाओं को दिल में ही छुपाए हुए ही दुनिया से कुच कर जाता है।

जी तो चाहता है मैं भी इसी जन्म में उनके साथ एक सेल्फी ले लूं, लेकिन हिम्मत नहीं होती। जब भी उनकी बंदगी को जाता हूँ, खुद के भीतर ध्यान जाता है। भीतर नजर जाते ही जन्मों का मैल नजर आता है, अस्तित्व पर फैली गंदगी नजर आती है। शर्म से आंखे झुक जाती है, उनके सामने आने में ही झिझक होती है, चेहरा छुपा लेता हूँ, वापिस लौट आता हूँ। बरसों बीत गए लेकिन मन का मैल आज भी ज्यों का त्यों है।

अगर किसी दिन पूछ लिए कि दीक्षा देते समय जो नाम दान दिया था उसका क्या हुआ? सुमिरण की गाड़ी कहाँ तक आगे पहुँची? तो मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा। दोस्तों, मैं साहब से नजरें मिलाकर उनके सामने खड़े नहीं हो सकता। उनकी कोई भी बात, कोई भी वाणी उनके कहे अनुरूप जी नहीं सका।


साहब की हर बात से प्यार ...💐

जब जब उनकी याद आती है रो लेता हूँ। कभी कभी जी करता है सबकुछ छोड़कर उनके पास चले जाऊँ, उनके करीब चले जाऊँ। उनके नाम जीवन की रजिस्ट्री करा दूँ। जो लोग साहब के करीब रहते हैं, साथ रहते हैं, उनके माध्यम से अंदर की छन छनकर खबरें सुनने को मिलती रहती है। 

अंदर के कई लोग साहब की खूब बुराई करते हैं। कहते हैं साहब तो सुबह 11-12 बजे सोकर उठते हैं, बहुत गुस्सा करते हैं। गुस्सा ऐसा होता है कि लोगों को सुशु आ जाए। वो कोई संत वंत नहीं हैं।

तो कई ऐसे भी लोग हैं जो अपना जीवन धन्य मानते हैं की उनका जीवन साहब की सेवा में, संतो की सेवा में, और जनकल्याण में गुजर रहा है।

जब कभी कोई साहब की दिनचर्या में शामिल लोग/करीबी लोग मिलते हैं तो साहब की ही चर्चा निकलती है। लगता है कि वो साहब की दिनचर्या की हर बात बताए, उनकी हर बात सुनते रहूं, सुनते रहूं, सुनते ही रहूँ।

मुझे साहब की हर बात से प्यार है। उनकी आलोचना से भी और उनकी प्रशंसा से भी।

साहब की खोज ...💐

मैं पहले साहब की खोज में हर किसी के पैर पकड़ लेता था कि मुझे भी साहब दिखा दो, उनका दर्शन करा दो, मार्ग बता दो। लेकिन किसी का उत्तर, मार्गदर्शन, सलाह मुझे जँचता नहीं था। मेरी जिज्ञासा पर, मेरे प्रश्नों पर वो लोग ग्रन्थों और साहब की वाणियों को दोहों चौपाइयों के माध्यम से समझाया करते थे। जो मेरे सिर के ऊपर से बाउंस जाता था।

अनेकों बार अपनी समस्याओं को लेकर, ध्यान और सुमिरण से संबंधित प्रश्नों को लेकर साहब से मिलने दामाखेड़ा अथवा रायपुर निकल पड़ता था। इस दौरान अब तक चार बार मेरी मुलाकात डॉ Bhanupratap Goswami साहब से हुई। उनके चरणों में पहुंचते ही मैं सिसक सिसककर रो पड़ता, कुछ कह ही नहीं पाता, कुछ पूछ ही नहीं पाता। अपने प्रश्न, अपनी जिज्ञासा भूल जाता। सिर्फ आंखों से आँसू बहते थे।

सन 2009 रायपुर में जब चौथी मुलाकात के लिए उनके सामने पहुंचा तो इस बार भी आँखें छलक उठीं। कुछ कह नहीं सका। लेकिन वो मुझे पहचान गए। साहब ने कहा - "जब भी आते हो रोते ही रहते हो, आखिर क्या चाहते हो तुम।" तो मैंने सुमिरण ध्यान करने की विधि उनसे पूछी। उन्होंने मुझे सुमिरण ध्यान करने की विधि बताई। साथ में उन्होंने एक दवाई खाने को दी, जिसे पंचम साहब ने पास के मेडिकल स्टोर से लाया था।

अब वो समय निकल चुका, आज मैं साहब से हुई मेरी उस चौथी मुलाकात के बारे में सोचता हूँ, उस क्षण को याद करता हूँ, उनके प्रश्न को याद करता हूँ, उन्होंने पूछा था - "आखिर क्या चाहते हो तुम?" तो लगता है मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। जब स्वयं गुरु अपने शिष्य से पूछे, स्वयं परमात्मा अपने भक्त से पूछे कि तुम क्या चाहते हो, तो मैंने राजपाट क्यों नहीं मांग ली, अम्बानी अडानी की जिंदगी क्यों नहीं मांग ली, राजसी ऐशो आराम क्यों नहीं मांग ली, अच्छा स्वास्थ्य क्यों नहीं मांगी, अमरता क्यों नहीं मांगी, जीते जी मुक्ति क्यों नहीं मांगी। कम से कम इस फटीचर सी जिंदगी से तो छुटकारा मिलता।

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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

साहब के लिए जुनून ...💐

अक्सर नाम सुमिरण की बात आने पर कुछ लोग कहते हैं कि साहब के दर्शन कर लिए, प्रसाद ग्रहण कर लिए, गुरु महिमा और संध्यापाठ कर लिए तो सुमिरण की क्या आवश्यकता है। बाकी का समय तो दैनिक कार्यों को निपटाने का होता है, जिम्मेदारियों को निभाने का होता है।

वहीं कुछ लोग यह भी कहते हैं कि नाम सुमिरण दिनभर नहीं हो पाता, हर स्वांस में नहीं हो पाता, बीच बीच में छूट जाता है, मन बीच बीच में कहीं भटक जाता है। इस विषय पर लोगों की अलग अलग मान्यताएं हैं।

दरअसल साहब के नाम का सुमिरण भी एक तरह की आध्यात्मिक पढाई ही है। इसमें कोई एक सप्ताह में साहब तक पहुंच जाता है, तो कोई तीन या छै महीने में। कुछ लोगों को तो तत्क्षण साहब मिल जाते हैं और कुछ लोग जीवन भर साहब की खोज में यहां वहां भटकते रह जाते हैं।

सफलता के लिए जुनून की हद क्रॉस करनी होती है। "जूनून मतलब जुनून"। शरीर की क्षमताओं से आगे, इन्द्रियों की क्षमताओं से आगे... जहाँ जाकर सबकुछ खो जाता है, खुद का अस्तित्व मिट जाता है... साधक भी। केवल साध्य रह जाता है। 

तब नजरों के सामने एक नई दुनिया प्रगट होती है, नए संगीत की धुन सुनाई देती है। साहब उस नई दुनिया को देखने के लिए दिव्य आंखें प्रदान करते हैं, और नए संगीत को सुनने के लिए दिव्य कान। तब चारों पहर हुजूर नजरों के सामने होते हैं। जीवन के सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं। निशांत... निर्विकार... निःशब्द...बोध... जीवन की पूर्णता।

गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

साहब क्यों मिलें ...💐

साहब मेरे गुरु हैं, मेरे परमात्मा हैं। लेकिन वो मुझसे भला क्यों मिलें? मुझसे मिलने का कोई कारण तो बनता नहीं। साहब ने दीक्षा दे दी, स्मरण करने के लिए नाम दान दे दिया। बस उनका काम एक गुरु के रूप में यहीं पर खत्म हो जाता है। 

दीक्षित होने के कुछ समय बाद नाम स्मरण छोड़कर अपनी भौतिक तकलीफें उन्हें बताने और समस्या का उपाय पूछने हम उनसे मिलने दामाखेड़ा पहुंच जाते हैं। जबकि सारी समस्याओं का हल "नाम का स्मरण" उन्होंने हमें पहले ही दे दी है। लेकिन हम निर्लज्ज तब भी साहब से मिलने की जिद पर अड़े रहते हैं।

उनके करोड़ों शिष्य हैं, वो भी साहब के प्रति समर्पित जीवन जीने वाले। तो क्या वो सबसे मिलते फिरें। हर कोई उनके चरणों में गिरकर सेल्फी लेना चाहता है, तो क्या साहब सभी शिष्यों के साथ फोटो खिंचवाते रहें?

माना शारिरिक, आर्थिक, मानसिक और व्यक्तिगत तकलीफों/समस्याओं में व्यक्ति घिरा रहता है, जब उसे कहीं सहारा नहीं मिलता, तब वह बेसहारा होकर अपने साहब की शरण आता है और विनती करता है कि इस विपरीत परिस्थितियों से उबार लीजिए। इन परिस्थितियों में शिष्य भी अपनी जगह पर ठीक है। अंत में वह साहब का आश्रय चाहेगा ही।

लेकिन सामान्य परिस्थितियों में जब हम दामाखेड़ा जाएं तो हमें साहब से ये उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वो हमसे मिलेंगे ही, वो हमारी समस्या पूछेंगे, हालचाल पूछेंगे, आवभगत करेंगे। 

बल्कि मैं तो यह उम्मीद करता हूँ कि ऐसे मिलने की जिद करने वाले शिष्य को साहब से डांट पड़े, साहब उनसे कहें की नाम स्मरण क्यों नहीं कर रहे हो, अगर करते तो दामाखेड़ा आने की जरूरत नहीं पड़ती ... उस आगंतुक का थैला, झोला, बैग दरवाजे के बाहर रखकर दरवाजा बंद कर दिया जाना चाहिए .... पर्दा गिरता है... कहानी खत्म हो जाती है।

बुधवार, 22 दिसंबर 2021

बंदगी के काबिल ...💐

जो लोग साहब को सामान्य मानव समझते हैं, ताज की महत्ता से अनजान होते हैं, अक्सर वो लोग हर बात के लिए साहब को दोष देते हैं। वो ये नहीं जानते कि साहब का हर एक पल बेहद कीमती होता है, वो किसी एक के लिए इस धरा पर अवतरित नहीं हुए, बल्कि हरेक जीव की चिंता उन्हें होती है। उनके लिए सब जीव बराबर होते हैं, फिर क्या अमीर और क्या गरीब।

कोई साहब के हाथ से प्रसाद नहीं मिल पाने पर रुष्ट होता है, तो कोई भारी जनसैलाब के बीच बंदगी नहीं मिलने पर रुष्ट हो जाता है। वहीं कुछ लोग इसलिए नाराज हो जाते हैं कि साहब ने कार्यक्रम के लिए समय नहीं दिया। तो कुछ लोग साहब की चेतावनी भरी वाणी से नाराज हो जाते हैं, चटक जाते हैं।

कुछ लोग छोटे साहब-बड़े साहब के रूप में साहब में भेद मानते हैं, और बंदगी करना, उनके हाथ से प्रसाद, पान परवाना लेना तक उचित नहीं समझते। जबकि साहब और साहब के परिवार का हर सदस्य हमारे लिए परमात्मा के स्वरूप हैं। उनके बीच कोई अंतर नहीं।

दरअसल जो घनघोर अहंकार से ग्रसित होता है, और जो साहब को सामान्य मानव समझने की भूल करता है, वही लोग ऐसी मानसिकता के साथ जीते हैं। जबकि साहब के सच्चे भक्त तो साहब के सुमिरण मात्र में ही सत्यलोक का आनंद पाते है। वह खुद बंदगी के लाइन से हटकर किसी जरूरतमंद जिसे साहब के पान परवाना की सख्त जरूरत होती है उसे लाईन में आगे बढ़ा देता है।

यह तो हमारी खुशकिस्मती है कि उन्होंने हमें अपने चरणों में स्थान दिया, नाम दान दिया, अपने नाम के सुमिरण का अधिकार दिया। वरना हम तो उनकी बंदगी के काबिल ही नहीं हैं।

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मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

मेरी खोज ...💐

हर सुबह, मैं उठकर जीने के बहाने खोजा करता। हर रात सोने से पहले जीने की वजह तलाशता। हर पल मैं उम्मीद, ख्वाहिश और प्यार के कारण ढूंढता। लेकिन कोई कारण नहीं मिला...जब तक मैं उनसे न मिला। मैंने खुद को झमेलों, कन्फ्यूजन और डर में घिरा हुआ ही पाया। लेकिन उनसे मिलकर मेरा मन शांत हो गया।

हमारी किस्मत और सफर का फैसला समय के हाथों में ही होता है, और जब समय बदलता है, तो सब बदल जाता है...सब कुछ। कभी बुरे के लिए, और कभी अच्छे के लिए... उनसे मिलने के पहले तक मैं ऐसा कभी नहीं मानता था।

लेकिन मुझे वो मिले। और मैंने पाया कि वो महज एक इंसान नहीं हैं बल्कि अनंत हैं। प्यार, परवाह, भरोसे, सम्मान और समझ की अनंत। वो ही ब्रह्माण्ड हैं, जिसे मैं ढूंढ़ रहा था। उनकी न तो कोई शुरुआत है, और न ही अंत। वो निरंतर हैं, चिर हैं, बस रूप बदल लेते हैं। वो हर जगह हैं और मेरे साथ भी। वही मेरे निर्माता भी हैं, मेरी रचना और खोज भी वही हैं।

साहब की नकल ...💐

मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आता है। कोई ज्ञान के बारे में पूछता है, कोई ध्यान के बारे में पूछता है, कोई सुमिरन के बारे में पूछता है तो मेरे पास कोई जवाब नहीं होता। 

मैं तो हमेशा साहब की नकल करता हूँ। हमारे साहब पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और डॉ. भानुप्रताप साहब के चौका आरती में बैठने के तरीकों, सुमिरन करने के तरीकों, मंचों में उनके बोलने के तरीकों, यत्र तत्र ग्रंथों और साहित्य में फैले उनके विचारों और उनके द्वारा लिखे गए फेसबुक पोस्टों की नकल करता हूँ।

उनकी गृहस्थी में विरक्ति के दर्शन पाता हूँ, चौका आरती में जब वो धीर गंभीर मुद्रा में बैठते हैं तो उनमुनि भाव का दर्शन पाता हूँ, जब वो मंच से इस जगत के प्राणियों के लिए अमृत वाणियों की वर्षा करते हैं तो ज्ञान का दर्शन पाता हूँ। उनके द्वारा प्राप्त पान परवाना चरणामृत और प्रसाद में अपनी मुक्ति पाता हूँ। 

वो हमारे लिए हर तरह से आदर्श हैं, मैं कहीं और उत्तर तलाश करने के बजाय हर प्रश्न का उत्तर उनमें ही खोजता हूँ। जैसा उन्हें देखता हूँ, बिल्कुल वैसा करने की कोशिश करता हूँ, नकल करता हूँ। इसके अलावा मेरे पास कोई ज्ञान, भक्ति, सुमिरन और ध्यान नाम की जड़ी बूटी नहीं है।

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

सो जा ...💐

डॉक्टर कहते हैं सो जा... तुझे नींद की जरूरत है। 

मैं इसलिए नहीं सोता की कहीं नींद में कोई स्वांस उनकी महक से वंचित न हो जाए, अमूल्य क्षण उनके बिना व्यर्थ न गुजर जाए। आते जाते साँसों की कीमत आधा जीवन बीतने के बाद समझ आई है। अब ऐसे कैसे उनके बिना सो जाऊँ? 

लाल पीली छोटी छोटी गोलियों से शरीर को सुला सकते हो। लेकिन जो अंतरतम की गूंज है उसे कैसे सुलाओगे, उसे कैसे शांत करोगे? वो तो चेतना में घुले हैं, वो तो उन्हीं के रंगों में घुला है। ये रंग कैसे छुड़ाओगे?

वो नस नस में समा चुके हैं, वो लहू के कण कण में मेरे साथ जीते हैं, मेरे अंदर रहते हैं। शरीर के छूटने के पहले उन्हें मुझसे अलग नहीं कर पाओगे।

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साहब की छाँव में जी लें ...💐

जीवन जैसा भी हो चलता ही रहता है, समय किसी के लिए रूकता नहीं। जीवन के इस सफर में कई अपनों से हमारा साथ छूट जाता है। कुछ का साथ आज छूटता है तो कुछ का कल और कुछ का परसों। मेरी भी बारी आएगी एक दिन, मैं भी नहीं रहूंगा। जिन्हें मैं अपना कहता हूं उनसे बिछड़कर कहीं दूर साहब के देश अनजाने सफर पर निकल जाऊंगा।

करीब 16 बरस की उमर से ही जिंदगी दर्द से आबाद रही है। हर महीने लगभग चार पांच दिन अस्पताल में बिताते हुए जिंदगी गुजरी है। बिना दर्द के एक दिन भी नहीं गुजरता। आज भी दिनभर में 15 गोलियां, 2 इंजेक्शन के सहारे सांसे चल रही है। अनेकों बार मृत्यु मुझे करीब से छूकर निकली है। लेकिन बार बार मैं बच जाऊँ, ये संभव नहीं है। कभी न कभी मैं भी उसकी चपेट में आऊंगा ही।

मेरा उद्देश्य आप सब को अपनी पीड़ा, स्वास्थ्यगत समस्या बताना नहीं है। मेरा उद्देश्य केवल जीवन की सत्यता का बोध कराना मात्र है। ये जीवन मानो रेत की दीवार है, जो न जाने कब एक हलकी सी हवा के झोंके से भरभराकर गिर जाए। इसलिए समय रहते जाग जाएं, परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस मानव जीवन को साहब की छाँव में भरपूर जी लें।

रविवार, 19 दिसंबर 2021

हीरो होंडा की सवारी ...💐

याद है न...??
हीरो होंडा-SS-100 की सवारी... पतझड़ के वो मौसम... बसंत का आगमन...पलाश के चटक लाल रंग के फूल, जंगल के उबड़ खाबड़ टेढ़े मेढ़े रास्ते... सरपट निकल पड़ते थे। पानी की बोतल, टिफिन में पराठे, गोभी की सब्जी और खीर...।

रास्ते की नदी में उतरकर निर्झर स्वच्छ जल में हाथ मुंह धोया करते। वहीं कहीं पास के घने छायादार वृक्ष की ओट में तुम्हारा आँचल बिछाकर बैठे सतरंगी सपनों में शाम तक एक दूसरे की बातों में खो जाते। घने जंगलों और पेड़ों के झुरमुट के बीच से ढलते सूरज की लालिमायुक्त किरणें कितनी लुभावनी हुआ करती, शाम कितनी मनमोहक हुआ करती।

आज पलाश के वो फूल फिर खिलें हैं, बसंत का मौसम फिर लौट आया है, घर में पराठे, खीर और गोभी की सब्जी फिर से बनी है। बस तुम्हारी कमी रह गई है। तुम्हें याद है न...???

मेरे गुलाबी शब्द पढ़ने के लिए तुम नहीं हो, कहीं भी नहीं हो। फिर भी तुम्हें लिखता हूँ...

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सोमवार, 13 दिसंबर 2021

प्रार्थना ...💐

प्रार्थना साहब की कृपादृष्टि पाने का सबसे पहला उपाय है। कुछ लोग समझते हैं कि किसी विशेष प्रकार की क्रिया, भजन, दोहे चौपाई, कीर्तन आदि बोलने अथवा गाने पर ही प्रार्थना होती है। इसके अलावा कुछ लोग यह भी कहते हैं कि प्रार्थना निर्बल और दुखी लोगों को राहत देने का साधन मात्र है। यदि इनमें से किसी भी क्रिया को प्रार्थना समझते हैं तो यह अपूर्ण समझ होगी।

यदि सच्चे दिल से, विनम्र भाव से प्रार्थना करने की आदत डाल लेते हैं तो निश्चित ही थोड़े समय में ही इसका चमत्कारिक असर और परिवर्तन दिखाई देगा। प्रार्थना का फल हमेशा आता है, लेकिन कई बार इंसान अपने ढंग से फल की चाह रखता है, इसलिए वह प्रार्थना से आए फल को पहचान नहीं पाता और उसे ठुकरा देता है। प्रार्थना का सही बीज नहीं बोया जाता जिसकी वजह से प्रार्थनाएं फलित नहीं होती। प्रार्थना ऐसी हो जो हमारे जीवन में उतरे।

जब किसी व्यक्ति को कष्ट होता है, पीड़ा मिलती है, तो इंसान उन दुखों से मुक्ति के उपाय के लिए प्रार्थना करता है। भौतिक जगत से जब उसे कोई सहारा नहीं मिलता तो वह इससे उबरने के लिए किसी अज्ञात शक्ति का आह्वान करता है। जिसे परमात्मा कहा जाता है, और उस आह्वान को प्रार्थना।

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रविवार, 12 दिसंबर 2021

गुरु और शिष्य की मर्यादा ...💐

किसी विषय पर लोगों की राय, विचार, सोचने समझने का तरीका अलग अलग होता है। कई बार मेरा लेख मेरे फेसबुक मित्रों को पसंद आता है तो कई बार आलोचना भी होती है।

मेरी पत्नी को साहब से संबंधित मेरे लेख, विचार और भावनाएं बिल्कुल पसंद नहीं आते। उसका कहना है कि गुरु और शिष्य की अपनी मर्यादाएं होती है, और मैं मर्यादा तोड़कर जो मन में विचार आते हैं उन्हें लिख दिया करता हूँ। दरअसल मेरा मानना भी यही है कि गुरु और शिष्य के बीच मर्यादा होनी ही चाहिए, लेकिन मैं भक्त और परमात्मा के बीच की मर्यादा के विरुद्ध हूँ।

चूंकि साहब ही मेरे गुरु हैं और साहब ही मेरे परमात्मा भी हैं। जब उन्हें गुरु के रूप में लिखता हूँ तो मर्यादा का ध्यान रखता हूँ। लेकिन जब उन्हें परमात्मा के रूप में लिखता हूँ तो मर्यादा तोड़कर किसी मित्र, किसी दोस्त, किसी पारिवारिक सदस्य समझकर दिल की सारी भड़ास निकाल देता हूँ।

मुझे नहीं पता कि साहब से संबंधित मेरे लेखों को आप सब किस रूप में समझते हैं। इस बारे में आप सबसे मार्गदर्शन की उम्मीद करता हूँ।

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शनिवार, 11 दिसंबर 2021

मर्यादा...💐

किसी विषय पर लोगों की राय, विचार, सोचने समझने का तरीका अलग अलग होता है। कई बार मेरा लेख मेरे फेसबुक मित्रों को पसंद आता है तो कई बार आलोचना भी होती है।

मेरी पत्नी को साहब से संबंधित मेरे लेख, विचार और भावनाएं बिल्कुल पसंद नहीं आते। उसका कहना है कि गुरु और शिष्य की अपनी मर्यादाएं होती है, और मैं मर्यादा तोड़कर जो मन में विचार आते हैं उन्हें लिख दिया करता हूँ। दरअसल मेरा मानना भी यही है कि गुरु और शिष्य के बीच मर्यादा होनी ही चाहिए, लेकिन मैं भक्त और परमात्मा के बीच की मर्यादा के विरुद्ध हूँ।

चूंकि साहब ही मेरे गुरु हैं और साहब ही मेरे परमात्मा भी हैं। जब उन्हें गुरु के रूप में लिखता हूँ तो मर्यादा का ध्यान रखता हूँ। लेकिन जब उन्हें परमात्मा के रूप में लिखता हूँ तो मर्यादा तोड़कर किसी मित्र, किसी दोस्त, किसी पारिवारिक सदस्य समझकर दिल की सारी भड़ास निकाल देता हूँ।

मुझे नहीं पता कि साहब से संबंधित मेरे लेखों को आप सब किस रूप में समझते हैं। इस बारे में आप सबसे मार्गदर्शन की उम्मीद करता हूँ।

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नारियल की चोरी ...💐

विपरीत परिस्थिति थी, सांसे उखड़ रही थी। अस्पताल के बिस्तर पर निढाल पड़े आंसू छलक रहे थे। मन ने स्वीकार कर लिया था कि अब यह देश छोड़ जाना है। शादी को एक सप्ताह हुए थे, नई नवेली पत्नी घूंघट में पास बैठे फफक रही थी। परिवार के लोग भी हार मान चुके थे। सब लोग समय की नाजुकता समझ चुके थे।

समाचार सुनकर सफेद लिबाश में दो संतों का अस्पताल के बिस्तर पर आगमन हुआ। पान परवाना और नारियल प्रसाद देते हुए बताया कि ये उस नारियल का प्रसाद है जिसे साहब ने अपने गुरु पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब को समाधि मंदिर में भेंट किया था।

उन्होंने बताया कि हम अपने साहब को बड़ी गहराई और श्रद्धा से नारियल भेंट करते हैं। तो सोचो साहब अपने पिता को, अपने गुरु को, अपने साहब को किस गहराई और किस शिखर से नारियल भेंट करते होंगे। सोचो उस नारियल की क्या महिमा होगी जिसे साहब अपने साहब को भेंट करते होंगे। और वो नारियल हमें मिल जाए, उस नारियल का प्रसाद हमें मिल जाए तो जीवन बदल जाता है। अस्पताल में उसने साहब का चरणामृत और प्रसाद लिया, संतों को दंडवत बंदगी किया। तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी हो गई।

तब से वो जब भी दामाखेड़ा जाता है समाधि मंदिर में साहब द्वारा पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब को भेंट किए गए नारियल की चुपके से चोरी करता है।

मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

साहब से मिलन की आस...💐

उनके चरणों को माथा लगाए बरसों बीत गए, उनका दिव्य स्पर्श पाए बरसों बीत गए। परिजन कहते हैं कभी तो जाया करो उनसे मिलने...बंदगी करने। माना कि तुम सुदामा ही सही, पर श्रीकृष्ण से मिलकर ही तो उसे वैकुण्ठ की प्राप्ति हुई। क्या पता तुम्हारे साथ साहब हमें भी भवसागर से तार दें!

मेरे परिजन और मित्रगण मुझे साहब से प्रत्यक्ष मिलने को कहते हैं, मेरे इंकार करने पर मुझे अहंकारी कहते हैं। जो दूर से तो साहब के प्रति प्रेम दिखाता है, जो साहब के चरणामृत तो शिरोधार्य करता है, जो साहब का पान परवाना तो ग्रहण करता है, लेकिन उनके चरणों तक नहीं जाता, बंदगी नहीं करता।

उन्हें कैसे समझाऊँ की साहब तक पहुंचने में एक एक लम्हों में बरसों की प्रतीक्षा है, एक एक घूंट में अतृप्त प्यास है, बड़ी लंबी कहानी है, लंबी तपस्या है,  अथाह दर्द है, बेपनाह टीस है, भयंकर पीड़ा है। 

मुझे लगता है उनसे प्रत्यक्ष मिलूंगा तो उन्हें खो दूंगा। उनसे मिलने की आस, उनसे मिलने की प्रतीक्षा, उनसे मिलने की व्याकुलता में ही ये देह प्राण त्याग दे। वो सोते जागते, खाते पीते, पढ़ते लिखते, उठते बैठते, बातें करते दिख जाते हैं, उनका दर्शन हो जाता है। जीवन में भला और क्या चाहिए।

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

चौका आरती...💐

लम्बी प्रतीक्षा और सौभाग्य से आज मेरे घर चौका आरती हुआ। मेरी कुटिया में साहब, संतजन, मेहमान और रिश्तेदारों का आगमन हुआ। आज मेरा हृदय साहब की भीनी खुशबू से महक रहा है, मेरे आसपास का वातावरण साहबमय हो उठा है। खुशी के आँसुओ से नयन छलक रहे है।

न मैं नारियल भेंट करना जानता, न साहब की बंदगी करना जानता, न ही संतों का आवभगत जानता। बस टूटी फूटी, विकारों से भरे मन से साहब की बंदगी कर ली और प्रसाद ग्रहण कर लिया। लेकिन मेरी बंदगी साहब तक जरूर पहुंची होगी, वो भी मेरा ध्यान किए होंगे, मुझे निहारे होंगे।

हर कबीरपंथी का सपना होता है कि उसके जीते जी घर में कम से कम एक बार साहब का आगमन हो, साहब की भेंट बंदगी हो, साहब के करकमलों से चौका हो। ऐसा ही मेरा भी सपना है, लेकिन मैले मन से साहब को निवेदन करने में संकोच होता है।

किरण दीदी की विदाई ...💐

जीने के लिए आधारभूत वस्तुएं जैसे-रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, व्यवसाय, परिवार के होते हुए भी न जाने क्यों अकेलापन सताता है। अपनी हर पीड़ा, अपना हर दुख जीवन संगिनी के साथ शेयर करता हूँ। कभी जब ज्यादा परेशान, उदास होता हूँ तो उसकी बाहों में लिपटकर किसी बच्चे की तरह रो लेता हूँ। साहब को बुरा भला कह देता हूँ।

जो लोग किरण दीदी की शादी में गए थे वो लोग बताते हैं कि ऐसी दिव्य और भव्य शादी उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी। किरण दीदी की विदाई का वीडियो फेसबुक पर देखा। उस पल साहब को भावुक देखकर अनेकों की आंखें छलछला उठीं, मैं भी फफक पड़ा। यूँ लगा मानो मैं अपनी बेटी की विदाई कर रहा हूँ। 

बच्चे कब बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। मेरी दो बेटियां हैं, स्वास्थ्यगत कारणों से उनके प्रति मैं अपना फर्ज, जिम्मेदारी ठीक से निभा नहीं पाता, जिससे मन व्यथित रहता है। एक दिन मेरी बेटियाँ भी विदा होकर अपने जीवनसाथी के घर चली जाएंगी। जिसे सोचकर मेरा दिल बैठा जा रहा है। माता पिता के लिए अपनी बेटी का हाथ किसी और के हाथ थमाकर विदा करना बहुत कठिन क्षण होता है।

साहब और साहब का पूरा परिवार हमारे लिए परमात्मा के स्वरूप हैं। उनका जीवन दिव्य होता है। उनका हर कदम इतिहास बनता है, उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है, उनके शब्द हमें मार्ग बताते हैं। लेकिन इस शादी में पहली बार साहब को एक आम पिता की तरह देखा, हमारे जैसे सामान्य व्यक्ति की तरह देखा। साहब के चेहरे के भावों से किरण दीदी की विदाई की उनकी पीड़ा, व्यथा देखकर आंखों में आँसू आ जाते हैं।

वो हमारे परमात्मा हैं, हमारे गुरु हैं। लेकिन मर्यादा तोड़कर उनसे लिपटकर रोने को जी करता है। कैसे और किन शब्दों में उनसे कहूँ की दुनिया की रीत यही है।

शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

किसका बोध ...💐

बोध हो जाना ही ज्ञान है। 
लेकिन किसका बोध...???
परमात्मा का बोध होना या खुद का बोध होना?

साहब को परमात्मा के रूप पहचान लेना, साहब को परम् सत्ता के रूप में निहार पाना ही बोध और ज्ञान है, अथवा स्वयं में परमात्मा की मौजूदगी का बोध होना ज्ञान है?

दरअसल स्वयं की उपस्थिति तो कहीं महसूस ही नहीं होती, कहीं अहसास ही नहीं होता। घट के भीतर और घट के बाहर जहां भी नयन जाते हैं, इन्द्रियाँ जाती हैं वहाँ वहाँ तो साहब ही होते हैं। फिर खुद का बोध किस चिड़िया का नाम है...??? 

बड़ा कन्फ्यूजन है।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

जीने की राह...💐

वो सुनसान जगह में भी और भीड़ भरे माहौल में भी उपस्थित होता है। उसकी पुकार, उसकी दिव्य आवाज कानों में सपष्ट सुनाई देती है। ध्यान की गहनता में, अस्तित्व की ओर और गहरे उतरने पर यूँ लगता है मानों खुद के अंदर से ही कोई बोल रहा हो। ये अराध्य की मधुर ध्वनि होती है, नाद होता है, परमात्मा की आवाज होती है, जो निर्मल अंतस की गहराईयों से प्रगट होता है।

अनुभव की पृष्टभूमि पर जीवन के सारे उधेड़बुन स्वतः ही समाप्त हो जाते है। एक सुकून, एक खुमारी, एक भीनी सुगंध, स्निग्धता रह जाती है। हृदय का रोम रोम साहब के नाम से उत्प्लावित रहता है, जीवन को पूर्णता प्राप्त होती है। एक परा शक्ति, एक जीवनी शक्ति सदैव नितप्रति अपने भीतर महसूस होता है।

आध्यात्मिक अनुभव की कोई सीमा नहीं होती है। इस सागर में जितने गहरे उतरते हैं उतने ही मोती मिलते हैं। यह आध्यात्मिक अनुभव साधक को जीने की राह सिखाते हैं, उसके लक्ष्य को प्रकाशित करते हैं। मानव को महामानव बनाते हैं।

सोमवार, 5 जुलाई 2021

शुक्रिया साहब ...💐

एक वो ही तो होते हैं जब मैं नहीं होता। एकांत के उस पल में अस्तित्व पर छाए होते हैं। उस घड़ी, उस पल उनके आने की आहट से हृदय जोरों से धड़क उठता है, गला भर जाता है, आंखें छलक उठती हैं। वीरान और मरुस्थल जीवन में उनकी अमृत बूंदें अंतःकरण को सींच जाती हैं। इस अनुभूति से हृदय का कोना कोना हरित हो उठता है, जाग उठता है। विरह के बाद के इस मिलन में जीवन को ताजगी मिलती है, उनका एहसास मिलता है, उनकी छुअन मिलती है।

जब कभी भीतर गहरी चुप्पी में उतरकर उन्हें देखता हूँ, हर बार वो कोई न कोई नई बात बता जाते हैं, कानों में धीरे से कोई नई कहानी कह जाते हैं। ये उनकी कृपा रूपी अमृत वर्षा मुझे और गहरे उतरने की प्रेरणा देते हैं।

आंखें खुली हो या बंद, बस उन्हें देखना चाहता हूं, उन्हें जीना चाहता हूँ। उनके बगैर जीना व्यर्थ लगता है। वो हैं तो मैं हूँ, वो हैं तो जीवन में नुतनपन है, वो हैं तभी जीवन में रवानगी है। उनसे अलग हो पाना अब संभव ही नहीं है। मेरे इस वीरान से जीवन को अपनी अनुभूति से सराबोर करने के लिए, सफर पर मेरे साथ साथ चलने के लिए और अनजानी राहों में मेरा हाथ थामने के लिए शुक्रिया। शुक्रिया साहब ...💐

गुरुवार, 20 मई 2021

फटीचर मित्र...💐

काश कोई अपना भी दोस्त होता...! पूरे भारत के साथ धरती, आकाश और पाताल की सैर फ्री में करवाता, आवभगत के लिए पूरा भूलोक पलक बिछाता, पूर्णिमा की चांद तले ताजमहल का दर्शन करवाता, अनमोल वस्तुएँ भेंट में देता, छप्पन भोग बनवाता, राजसी भोजन करवाता, सोने की थाली में खाना परोसता। नदी के तीर बिठाकर सुख दुख की चार बातें कहता। हमारी दोस्ती की चर्चा तीनों लोक में होती।

परंतु इस जीवन में हमको तो ढंग का एक फटीचर मित्र भी नसीब नहीं है। हाय रे किस्मत...😢😢😢

सिर पर ताज का भार...💐

माफ करना दोस्त, जब सिर पर ताज का भार होता है तो मुलाकात के लिए चेहरा नहीं देखता, जेब में रखे द्रव्य नहीं देखता, तुम्हारा एजुकेशन और सामाजिक स्टेटस नहीं देखता। तुम हर बार चेहरा बदल बदलकर मेरे सामने आते हो। कभी दोस्त, कभी पारिवारिक सदस्य, कभी रिश्तेदार, कभी व्यवसायी, कभी सरकारी नौकर...

लेकिन मेरी नजर से देखो तो तुम सबसे ज्यादा गरीब हो, सबसे ज्यादा कंगाल हो। कभी तो प्रेम भरा दिल लेकर आते, कभी तो गहरे उतरकर नाम का रसपान कर आते।
 
उपरोक्त बातें कभी किसी लंबी दाढ़ी मुछ, श्वेत वस्त्रधारी, 5 एकड़ जमीन और टेलरिंग दुकान के मालिक, बीएससी पास नवयुवक ने मुझसे कही थी। कहने वाला तब दंभी लगा था, उसे दुत्कारते हुए घर से बाहर निकल जाने को कह दिया। कुछ समय बाद उनकी संगति से उनमें संत नजर आया। वो जीवन का हिस्सा बन गए, मेरी साँसों को दिशा देने वाले बन गए...

💐💐💐

बुधवार, 19 मई 2021

साहब के दर्शन की आस...💐

लोग उनसे मिलने के लिए बरसों प्रतीक्षा किया करते हैं, लाखों की संख्या में लोग उनके दीदार की उम्मीद बांधे आते हैं। अनेकों उनके दर्शन मात्र की अभिलाषा लिए ही इस संसार से कूच कर जाते हैं। वहीं कई महात्मा तो मुक्ति के दरवाजे को त्यागकर उनके चरणों में ही बंधे रहने की आकांक्षा लिए फिर से धरती पर जन्म लेते हैं।

उनका आकर्षक ही कुछ ऐसा है कि मन नहीं भरता। उनके दमकते ओजमयी चेहरे से नजर हटाने का मन नहीं करता। मैं जब भी उनके दर्शन बंदगी करके लौटा, हर बार प्यास बढ़ती ही गई, मन की प्यास कभी बुझी ही नहीं। बल्कि और... और... और बढ़ती ही गई। हर बार लगता है दर्शन में कुछ कमी रह गई, कुछ बाकी रह गया। एक अनजाना अव्यक्त अहसास, एक रिक्तता का बोध सदैव दिल में रह जाया करता है।

कहने को बहुत कुछ है, लेकिन जब वो सामने आते हैं हृदय गहरी चूप्पी से भर जाता है, नयन रो पड़ते हैं, होंठ लड़खड़ाने लगते हैं। दिल का दर्द लिए वापिस घर की ओर लौट पड़ता हूँ।

साहब की गूंज...💐

कलशे पर रखा टिमटिमाता दीया धीमी लौ में प्रकाशित हो रहा था। कपूर, अगरबत्तियों की भीनी महक वातावरण में घुल रही थी। वहीं दो फीट की दूरी पर बिछी चटाई में जीवन के दिन कट रहे थे। अमृत कलश के पन्ने पलटते हुए अंधेरी रहस्यमयी रात का एक और पहर गुजरने को था। उलझे से मनोभाव थे, अधजगे नैन, अस्थिर से तन और मन, विचारों का द्वन्द...। रात भर आंखों के कोरों से पानी की बूंदे छलकती रही।

काले काले अजीबोग़रीब चित्र आंखों में अब नहीं आते थे। चौका में बैठे उनका विमल स्वरूप ही अब रह गया जो बंद आंखों के साथ खुले नयनों से भी देख सकता था। कोई तो था जो मुझे आवाज दे रहा था, मेरा नाम लेकर मुझे पुकार रहा था, मुझसे कुछ कहना चाहता था शायद, कुछ बताना चाहता था।

उस रहस्यमयी आवाज की गूंज अब रोज सुनाई पड़ती, मैं अवाक रह जाता, सुन्न पड़ जाता। धीरे धीरे इस बात का अहसास हुआ कि ये तो वही हैं...वही हैं...जिनकी तलाश में कलशे पर रोज दीया जलाया करता, उन्हें फूल अर्पण किया करता। उस मीठी आवाज की गूंज से अब जीवन ओतप्रोत और आह्लादित हो उठा...।

उसकी बंदगी ...💐

सूरज, चांद, सितारे रोज उदय होते हैं और समय आने पर अस्त भी हो जाते हैं। यह प्रकृति का भयावह और क्रूर स्वरूप भी है तो यही उसकी सुंदरता और गीत भी है।

एक मासूम सा चेहरा बार बार आंखों में तैर रहा है। उसकी करूण पुकार कानों को भेद रही है। वह नन्हा तारा अस्त होने को है, जगत के बंधनों से मुक्त होने को है। होश खोने से पहले, शाम ढलने से पहले, गहरी नींद में सोने से पहले उसने अंतिम बार बंदगी कहा है।

आपके चरणों में उसकी सादर बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी...💐






साहब से मुलाकात ...💐

सन 2008... दामाखेड़ा... चौका स्थल।
मैं पूरी तैयारी के साथ गया था कि आज कैसे भी करके सुमिरण ध्यान के बारे में साहब से पूछकर ही आऊंगा।
पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब चौका कर रहे हैं। वहीं थोड़ी दूर पर डॉ. भानुप्रताप साहब उनमुनि अवस्था में अकेले बैठे हैं।

मौका देखते ही भीगे नयनों से डॉ. भानुप्रताप साहब के चरणों में बंदगी करते हुए निवेदन किया कि मुझे सुमिरण-ध्यान के बारे में बताएं। साहब ने कुछ सेकंड का मौन तोड़ते हुए कहा- 
"अभी यहां बहुत भीड़ है जी..., यहां कुछ बताते नहीं बनेगा। ऐसा करो कि शाम को घर पर मिलना, तुम्हें सुमिरण-ध्यान के बारे में जरूर बताऊंगा।"

मैंने स्वीकारोक्ति भरी, बंदगी करके आश्रम लौट आया और शाम होने का बेसब्री से इंतेजार करता रहा। शाम हुई, लेकिन द्वारपालों ने मुझे दरवाजे पर रोक लिया। चिल्लाता रहा कि साहब ने बुलाया है, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ। रात भर दरवाजे पर रोते हुए बैठा रहा, लेकिन मुझे जाने नहीं दिया गया। इस तरह मैं पहली कोशिश में असफल रहा। लेकिन इस बात की आज भी खुशी है कि मैं साहब से बात कर पाया। वो पल अविस्मरणीय है।

जानना चाहेंगे आगे फिर कब मिला? साहब से क्या बातें हुई???

किस किस से मुक्ति...💐

ध्यान और सिद्धि...💐

आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग सिद्धियों से होकर गुजरता है। लेकिन कई लोगों के मन में यह गलत धारणा होती है कि अध्यात्म मलतब सिद्धियां प्राप्त करना है। इस तरह के विचारधारा के लोगों को लगता है कि सिद्धियों के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति एकाग्रता के साथ ध्यान में बैठता है, दृढ़ होकर अलग अलग मत्रों का जाप करता है, त्राटक, यज्ञ हवन आदि करता है। साधारण इंसान जब ऐसे व्यक्ति को अनेकों कर्मकांड करते देखता है तो वह उसे बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति समझता है।

बाहर से ऐसे लोग घोर आध्यात्मिक दिखाई देते हैं लेकिन अंदर ही अंदर अहंकार पल रहा होता है। उनकी आंतरिक भावना यही होती है कि आज तक जिन लोगों ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया उन सबको अब सिद्धियों के द्वारा अपना मूल्य दिखा सकता हूँ। यह सोच केवल अंहकार प्रतिबिंबित करता है। सिद्धियों के मार्ग पर चलते हुए ऐसी सोच रखना असली अध्यात्मिकता नहीं है।

आज के सामाजिक ढांचे में लोग बाहरी वेशभूषा और दिखावे के आधार पर तय करते हैं कि सामने वाला व्यक्ति आध्यात्मिक है या नहीं। किंतु यह आध्यात्मिकता का गलत आधार है।

लोग तो कहेंगे ही ...💐

जब ज्ञान की बात करता हूँ तो कहते हैं- 
"ज्ञान का घमंड हो गया है।"

भक्ति की बात कहता हूं तो कहते हैं-
"भक्ति का ढोंग कर रहे हो।"

जब प्रेम की बात कहता हूँ तो कहते हैं-
"आशिक बने फिरते हो।"

सामाजिक मुद्दों पर कुछ कहता हूँ तो कहते हैं-
"तू अपना घर देख, फालतू का भाषण मत दे।"

राजनीति की बात करता हूँ तो कहते हैं-
"सरकारी नौकर हो, किसी दिन नौकरी चली जाएगी।"

इन सब बातों से भला क्या फर्क पड़ता है। लोग तो कहेंगे ही, कुछ न कुछ कहते ही हैं।






बेतरतीब भाव...💐

रहस्यों के अंदर रहस्य है। वो अनेक रूपों में प्रकट होता है, कभी डरा देता है तो कभी हंसा देता है। कभी दूर तो कभी पास से आती उनकी आवाज बिल्कुल जानी पहचानी सी है, चेहरा भी हूबहू वही है जो आंखों में बरसों से बसा है। दिनभर वो मुझे ताकते रहते हैं, निहारते रहते हैं। वो एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। संग संग चलते हैं, राज की बात बताते हैं। मेरे आसपास के जाने पहचाने अनेकों मुखोटों के पीछे छिपे चेहरों का भेद बताते हैं।

उसे सब पता है, पर्दे के पीछे से भी वो देख लेता है। उससे कोई बात नहीं छुपती। जी चाहता है ऐसे ही उनकी मधुर आवाज के साए साए जीवन की सुबह और शाम हो। उनके रौशनी से जगमगाते पथ पर मैं भी कदमताल करूँ।

सोचता हूँ थोड़ा रंग और चढ़ने दो, थोड़ी खुमारी और बढ़ने दो, थोड़ी गहराई में और उतरने दो, विदा होने के पहले थोड़ा प्यार और कर लूं, दो बातें कह लूँ, दो सांसे और जी लूं, प्यास अभी बुझी नहीं है और ख्वाहिशें उड़ान पर है। सूरज को ढल जाने दो, रोशनी को और मंद हो जाने दो, चाँदनी को और बिखरने दो, रात को और गहराने दो, तन्हाई में उनसे मिले अरसा बीत गया।

बीती रात की बात अधूरी है, कुछ खामोशी भी जरूरी है। पलकों के बंद होने के पहले उनसे मुलाकात जरूरी है।।

परमात्मा से नाराजगी है...💐

मैं रोज परमात्मा की उपासना करता हूँ, आरती गाता हूँ। फिर भी जीवन दुख और कष्टप्रद बना हुआ है। परमात्मा ही तो इस सृष्टि के सृजनकर्ता हैं, नियंता हैं, पालनहार हैं परन्तु उसी परमात्मा से मैं दुखी क्यों रहता हूँ? मुझे क्यों सुख नहीं देते?

परमात्मा तो सर्वश्रेष्ठ मित्र और सखा हैं, फिर प्रभु अपनी मित्रता की अमृत वर्षा मेरे ऊपर क्यों नहीं करते? कहाँ चूक हो रही है? कहाँ कमी रह गई है?

क्या उन्होंने मुझे नहीं अपनाया है? क्या उन्होंने मुझे अपने चरणों में जगह नहीं दी है? क्या अब तक अमरलोक में मेरे लिए कोई सीट बुक नहीं हुई है?

समय पल-पल रेत की तरह उड़ता जा रहा है, हाथों से फिसलता जा रहा है, साँसे व्यर्थ जा रही है। न जाने कमबख्त सुख के दिन जीवन में कब आएंगे? निकम्मों को सारे जहांन की खुशियाँ और मुझे फटीचर सी जिंदगी... नाइंसाफी है। 

सोमवार, 29 मार्च 2021

कठिन रास्ते...💐

जहाँ मैं हूँ, जैसे मैं हूँ, जिन परिस्थितियों को जी रहा हूँ, वहाँ रहने की चेष्टा न कर, कामना न कर। यहाँ गहरा मौन है, एकांत है, अतृप्त और बेरहम प्यास है। इस राह जब चलना आरंभ किया तब अकेला था, और आज भी इस राह का अकेला मुसाफिर हूँ। थोड़े दिनों तक लोग जुड़ते चले गए, पर धीरे धीरे वो सब पीछे रह गए, छूट गए।

किसी अनजानी सत्ता की खोज में साँसे खप गई, जिंदगी वीरान हो गई, रेगिस्तान हो गई। लेकिन प्यास अधूरी रही, आस अधूरी रही, कल भी खाली हाथ था, आज भी हाथ खाली है। रास्ता मोड़ ले। पथरीले, मरुभूमि और बंजर रास्ते पर लहूलुहान हो जाओगे। 

कोई कोई ही ऐसा होता है जो उन तक पहुंच पाता है। फिर भी अगर लहूलुहान होना चाहते हो, मरकर जीना चाहते हो तो इस मार्ग पर तुम्हारा स्वागत है।

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तुमसे ही ये जीवन...💐

साथ चलते चलते बहुत दूर आ गए, एक दूजे का हाथ थामे बड़ी दूर आ गए। पूरे ग्यारह बसंत बीत गए लेकिन लगता है अभी तक तुम्हें जीभरकर देखा भी नहीं है। समय के साथ तुम्हारी छवि, तुम्हारा चेहरा और भी ज्यादा लुभाता है। जी करता है जिंदगी को फिर से और ढंग से जीना सीखें, जो खूबसूरत पल हमनें खो दिए, उन्हें दुबारा जिएं।

समय का ऐसा कोई पल नहीं जब तुम्हारी याद न आती हो, तुमसे ही मेरा आज है, तुमसे ही मेरा कल है, तुम्हारे बिना जीवन में सुनापन है, एक रिक्तता है। आज खाली बैठे बैठे तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा, मन कहीं तुममें ही खो गया। आज तुम पास होती, साथ होती तो तुम्हें बांहों में समेट लेता।

...तुम बहुत याद आ रही हो।

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पानी पियो छानकर, गुरु बनाओ जानकर...💐

युवावस्था में प्रवेश के दरमियान साधु संतों की वाणी बहुत भाती थी। कहीं कोई चर्चा होती, विचार मंथन होता वहां कान लगाए बैठ जाता जब तक चर्चा समाप्त नहीं होती। थोड़ी समझ के उपरांत मुझे ऐसा लगने लगा कि शुरुआत में साधक लोग साहब की चर्चा तो करते हैं लेकिन उनकी चर्चा में किसी दूसरे मठ, आश्रम, मत की बुराई की अधिकता होती है। मुझे लगता कि लोग गलत हैं, साहब को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं, वो भ्रमित हैं। उनके सत्संग में क्रांतिकारी विचारों की कमी नजर आती।

कुछ समय बाद जो साधक हैं वो या तो गुरु बन जाते हैं अथवा किसी आश्रम, मठ आदि खोलकर बैठ जाते हैं, चेला बनाकर उनसे अपनी सेवा करवाने लगते हैं। फिर शुरू होता है दौलत, पद प्रतिष्ठा पाने की अंतहीन दौर, जहां जाकर वो साधक पथभ्रष्ट हो जाता है। मुझे समझ में ये बात नहीं आती थी कि साधक का सफर गुरूवाई करने में, चेला बनाने, मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा अर्जित करने और मठ मंदिर बनाने तक में क्यों समाप्त हो जाती है। साधक की साधना क्यों दिग्भ्रमित और पथभ्रष्ट हो जाती है।

आज भी मेरी धारणा बदली नहीं है। माना धन अर्जन में बुराई नहीं है, मठ आश्रम बनाने में और चेला जोड़ने में भी बुराई नहीं है, लेकिन जिस लक्ष्य को लेकर साधक निकला था वो लक्ष्य कहीं थोड़ी दूर जाकर कहीं खो जाता है। जबकि साधक का लक्ष्य तो समेटना नहीं बाँटना है, साधक का लक्ष्य तो साहब की अनुभूति पाना है, उनसे एकाकार करना है, तथा उनके सहारे सहारे आत्म कल्याण की प्राप्ति करना है।

आध्यात्मिक व्यवस्था अब हर स्तर पर बदलाव चाहती है। बदलाव के इस दौर में गुरु-शिष्य के रिश्ते, उनकी मर्यादा, संतों की छवि और प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करना होगा, पुनर्निरुपित करना होगा। लेकिन बहुत विचार के बाद मन यही कहता है अब ये हो नहीं पाएगा। इसलिए मुझे लगता है कि साहब और वंश गुरुओं के अलावा किसी और को देखने सुनने, गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।



बीती यादें...💐

बारिश की पहली बूंदों की सौंधी महक, कमल की पंखुड़ी की निर्मलता, मोगरे के सादे फूलों सी सादगी भरा उनका व्यक्तित्व मुझे आकर्षक लगता था। ये उन दिनों की बात है जब आंखों में भविष्य के सुनहरे ख्वाब झिलमिलाया करते थे, जब गौरैया के जोड़े घर के रोशनदान में अपना आशियाना बनाए करते। रोज सुबह आँगन के मुनगा पेड़ की डाली पर कौए बैठा करते और काँव काँव की आवाज से घर मे मेहमान आने की सूचना दिया करते। वो दिन याद आते हैं।

सुबह भोर होने के पहले, आसमान की लालिमा युक्त आभा के पहले बिस्तर छोड़ देना, शाम की गोधूलि बेला में गांव के तालाब के पास दोस्तों के साथ बैठकर ठहाके लगाना, एकांत में बैठकर दुनियादारी, राजनीति, अध्यात्म की चर्चा करना... वो दिन याद आते हैं।

वो लोग जो सफर में पीछे छूट गए, कहीं रह गए, परिस्थितियों ने जिन्हें दूर कर दिया, याद आ रहे हैं। कई चेहरे जिन्हें भुला दिया और कई जिन्हें हृदय में बसा लिया, याद आ रहे हैं।

वक्त का पहिया किसी की प्रतिक्षा नहीं करता, किसी के लिए नहीं रुकता। चाहे व्यक्ति धनाढ्य हो या दरिद्र, जो लम्हा बीत गया वो वापस नहीं आता, जो सफर पर छूट गया वो फिर नहीं मिलता। इसलिए चंद साँसे जो बाकी हैं उन्हें भरपूर जी लेना ही बुद्धिमत्ता है।

आज बीते दिनों की बड़ी याद आ रही है।


साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...