सांसारिक जीवन मे संतों को देखने का तरीका बड़ा अजीब है। लोग संत तो खोजते हैं, लेकिन उनकी खोज किसी पूर्वाग्रह से प्रभावित होता है। किसी खास रंग के वस्त्र, चेहरे पर सफेद दाढ़ी, गले में किसी खास किस्म की धातु अथवा चंदन की माला, पैरों में खड़ाऊ, हाथ में कमंडल की छवि पारंपरिक संतों को परिभाषित करती है।
वर्तमान में सामाजिक और वैचारिक बदलाओं के दौर में जहां संतों की प्रतिष्ठा घटी है, वहीं समाज में शांति के व्यक्तिगत व पारस्परिक उपायों की खोज भी बढ़ी है।
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में अनेकों पुरानी धार्मिक परंपराएं तोड़ी जा रही है और संतों के नए रूप, संतों के नए स्वरूप, उनको देखने का नजरिए में नित नूतन बदलाव हो रहे हैं। समय के अनुरूप अब संतों को पहचानने का तरीका भी बदल चुका है। जिसे बेहद सरलतम शब्दों में साहब की वाणी से समझा जा सकता है:-
दया गरीबी बंदगी समता शील उपकार।
इतने लक्षण साधू के कहे कबीर विचार।।