शनिवार, 17 अगस्त 2019

साहब की सहजता...💐

सामान्यतः किसी रिश्तेदार के घर जाते हैं तो चाय ऑफर किया जाता है। अक्सर हम झिझकते हुए चाय पीने से मना करते हैं। जिद होने पर आखिरकार चाय की प्याली उठा ही लेते हैं। अपने घर में रोज कई बार चाय पीते हैं तब मना नहीं करते। परिस्थिति जरा सी क्या बदली हम हिचकने लगते हैं, हम असहज हो जाते है।

किसी संत ने कहा था कि सहजता तब होती है जब हम बिना हिचके, बिना शर्माए, बिना तिरस्कार के, बिना कुछ सोचे विचारे ऑफर की गई चाय पी लेते हैं। चूंकि हम रोज चाय पीते ही हैं तो रिश्तेदार के घर मना क्यों करने लग जाते हैं।

ऐसे छोटे छोटे सहजता के उदाहरण हमारे दैनिक जीवन में रोज सामने आते हैं। सहजता में स्वतः परिस्थिति को स्वीकार लिया है। इस स्वीकारोक्ति में जरा भी बुद्धि लगाने की जरूरत नहीं होती।

इसके उलट अगर हम चाय पीने के आदि होने के बाद भी ऑफर की गई चाय लेने से मना करते हैं तो यह असहजता और अहंकार का द्योतक होता है। दरअसल अहंकार के रूप बेहद महीन होते हैं, जो आसानी से समझ नहीं आते।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...