रविवार, 11 फ़रवरी 2018

बाहरी हवा...💐

वो कल फिर झोलाछाप बाबा के पास जा रहा है। उसकी पत्नी और परिवार के लोगों को लगता है कि उसे बाहरी हवा लगी है। उसके पास वेतन के पैसे बचते ही नहीं, सबेरे तो जेब में भरकर हरे नोट ले जाता है, लेकिन शाम को खाली हाथ लौटता है। पिछले दिनों बाबाजी ने जन्म कुंडली देखकर कहा था की दरिद्री योग है, इस दुर्योग को दूर करने के लिए गुप्त मत्रों का पचास हजार जाप कराना होगा, पूरे इक्कीस सौ एक रुपये उसे दक्षिणा भी देना होगा। फिर पैसे बचने शुरू हो जाएंगे, बैंक बैलेंस भी बढ़ेगा।
उसने सबेरे पत्नी से हर रोज की तरह झगड़ा मोल ले लिया और समझाया की किसी बाबा के झाड़फूंक और टोटकों से जिंदगी नही बदलती, जिंदगी बदलने के लिए जिंदगी में जागना होता है...। वो बड़बड़ाती रही, कहती रही- "और कैसे जागेंगे?" सुबह पांच बजे से तो जाग जाते हैं, नहा धोकर साहब का पाठ पूजा कर ही लेते हैं...।
आज शाम को भी उसने पहले की तरह अलमारी से 100 रुपये के कुछ नोट पत्नी से छुपाते हुए निकाले और मेकाहारा अस्पताल की ओर चल पड़ा। सामने मैला कुचैला कपड़ों से लिपटा एक जर्जर शरीर खड़ा था, "पहले से कैसे हो?" पूछते हुए को दो नोट उसे थमा दिया। बचे रुपयों से सब्जी भाजी लेकर घर आ गया।
वो कल बाबाजी के पास जाएगा, बाहरी हवा के इलाज के लिये...

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...