शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

नितांत अकेला ...💐

बहुत ऊँचें ... बहुत ही ऊँचें पर्वत की चोटी पर नितांत अकेले बैठा हूँ। आस पास कोई मौजूद नहीं है। मैं सबकी आवाज, सबकी चीख पुकार स्पष्ट सुन सकता हूँ, देख सकता हूँ। लेकिन मेरी सिसकियों को, मेरे रुदन को सुनने और देखने वाला कोई नहीं है।

मुझसे पहले जो लोग इस शिखर तक आएं हैं, वो लोग बताते हैं कि इस धरातल पर जो भी आया ... रो पड़ा ... दहाड़ मारकर रो पड़ा। दरअसल यह स्थिति ही बड़ी भयंकर है, विचित्र है। इस स्थिति में व्यक्ति न तो जीता है और न ही मरता है। न उसे धूप लगती है और न ही छाँव की अनुभूति होती है। कुछ ठगा ठगा सा महसूस करता है।

इस ऊँचें शिखर की चोटी से व्यक्ति जब भवसागर को निहारता है, तब वह पाता है कि चीख पुकार मचाते लोगों की एक भीड़ चली आ रही है। जिसका कोई मकसद नहीं, जिसका कोई अंत नहीं। उनकी पीड़ा, उनके चीत्कार हृदय को बेधती है। लगता है किस किस की मदद करूँ, किस किस के आँसूं पोंछु, किस किस के दर्द में मरहम पट्टी करूँ।

इस ऊँचे शिखर से सब देखता हूँ, सब सुनता हूँ और दहाड़ मारकर रोता हूँ।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...