दूर तक अकेलेपन का अहसास फैला हुआ है। उस एकाकीपन में भी सुकुनियत है, सुंदरता है, संगीत है। इस अहसास में न कुछ पाने की चाह है, न ही कुछ खोने का गम। न कुछ कम है, और न ही कुछ ज्यादा है। एक पूर्णता का आभास है, अपने होने का अहसास है।
धड़कनें अपनी गति से निर्बाध चल रही है, सांसे भी अपनी लय में है, निःअक्षर से शब्द रूपी नाम की तारी जुड़ी हुई है। आसपास के कोलाहल के बावजूद भीतर शांति है, स्निग्धता है, शीतलता है, एक रस है, नाम की तन्मयता और खुमारी है।
जीवन के कर्म इंद्रियों पर गिद्ध नजर रखे, हर पल चौकस, नाम के हर बून्द का रसपान करते हुए वो अपने जिंदगी का रूपांतरण करने में लगा है। अपने प्रियतम से, अपने साहब से मिलने को आतुर है, मिलन की बेला भी करीब है, कई जिंदगी बीत गई इंतजार में, प्रतीक्षा की घड़ी बहुत लंबी है। इस बार टूटी फूटी बंदगी तो करना ही है, चूकना बिल्कुल भी नही है। काम जारी है, अस्तित्व पर फैले कचरे की सफ़ाई जारी है, स्मरण जारी है...
तन थिर मन थिर वचन थिर
सुरति निरति थिर होय...