मेरा छोटा भाई ओशो का परम भक्त है, जिससे खूब आध्यात्मिक चर्चा होती है, बहस होती है। वो निर्गुण उपासक है तो मैं सगुन उपासक। वो सुबह चार बजे ओशो का ध्यान धरता है, तो मैं रोज सबके सोने के बाद रात एक-दो बजे साहब को याद करता हूँ।
जितनी बार दामाखेड़ा नहीं गया उतनी बार तो ब्रम्हकुमारी ध्यान केंद्र गया, गायत्री मंदिर गया, हवन में शामिल हुआ, ओशो को सुनने और पढ़ने गया। गीता के अनेकों पन्ने पलटे, बुद्ध और महावीर को पढ़ा और सुना। प्रश्नों के उत्तर जानने, दुखों से बचने के लिए हर किसी का दरवाजा खटखटाया।
मेरी आध्यात्मिक यात्रा पूरी खिचड़ी है यार।
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