दोपहर दो बजे से लेकर रात के दस बजे तक का समय चौका स्थल में साहब की प्रतीक्षा में बीता। उस प्रतीक्षा में बरसों को प्यास थी। उस दिव्य सत्ता के दर्शनों के बाद, उनकी बंदगी के बाद रातभर आँखों से आंसू छलकते रहे। चौका स्थल के पास के मैदान में लेटे हुए, पूर्णिमा के चांद में उनकी अनुपम छवि निहारते हुए रात गुजरी।
उस पल की याद में अब तक खुशी से निढाल हूँ, आँसू अनवरत बहते हैं।
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