सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

बोरिंग ज्ञान चर्चा...💐

रोज रोज ज्ञान चर्चा बहुत बोरिंग लगता है। अधिकतर चर्चा करने वाले लोग चर्चा के माध्यम से अपनी बात थोपने में लगे रहते हैं, अपने अहं की तुष्टि करना चाहते हैं। ऐसे अधिकतर लोग चर्चित विषय का अंतिम उत्तर भी जानते हैं, और सबकुछ जानते हुए भी अपनी लम्बी लम्बी तर्कों के माध्यम से दूसरों का समय बर्बाद करते हैं। अगर विषय इंफोर्मेटिक हो, नया और नूतन हो जिसके बारे में अक्सर लोग नहीं जानते तो ऐसी चर्चाओं की सच में सार्थकता है।

आप किसी किताब को कितनी बार पढ़ सकते हैं? दो बार, चार बार, दस या सौ बार... क्या हर बार किताब के शब्द या भाव बदल जाते हैं जिसकी वजह से आपको बार बार पढ़ना पड़े? नहीं न...। मेरे घर में भी एक ही किताब को हर रोज पढा जाता है, रोज शब्दों को दुहराया जाता है... बड़ा बोरिंग लगता है। आए दिन अपनों से ही उलझ पड़ता हूँ।

अगर किताब के भाव भलीभांति समझ आ गए, जिस मार्ग की तलाश थी वो मार्ग किताब से मिल गया, तो उसी दिन वो किताब आपके लिए व्यर्थ हो जाता है। हाँ, चूंकि उस किताब ने आपको रास्ता दिखाया, प्रश्नों के उत्तर दिए, जीवन को रोशनी से भर दिया, इसलिए उस किताब के प्रति हृदय में श्रद्धा उमड़ पड़ना स्वाभाविक है, वो किताब सच में ताउम्र आपके लिए प्रणम्य है।

लेकिन मेरे अपने जो ताउम्र उस किताब को रटने के बाद भी उसके भावों को अंगीकृत नहीं कर सके, और ज्ञान चर्चा का नाम देकर उस किताब के शब्दों पर अपना एकाधिकार समझता है, अपनी दकियानूसी कुतर्कों से दूसरों का माथा खराब करते हैं... चिढ़ होती है, झल्लाहट होती है।

कभी कभी लगता है मेरे अपने जो जीवन भर हर रोज एक ही किताब को रटते रहते हैं, उन्हें उसी किताब के साथ गंगा में विसर्जित करते हुए राम नाम सत्य कह दूँ।


आदिपुरुष कौन...💐

क्या करें...!!! ऊपर वाले ने खोपडिया में कोटकोटले ज्ञान भरकर इस धरती पर अवतरित किया है...☺️☺️ इसलिए कभी कभी न चाहते हुए भी ज्ञान ओवरफ्लो हो जाया करता है, छलक जाता है। लेकिन आदिपुरुष नामक व्यक्ति के ज्ञान के आगे मोर सब्बो ज्ञान अउ डिग्री फेल हो गया। उन आदिपुरुष से विनय है मुझे भी अपने चरणों मे स्थान देकर अपना कल्याण करें।

कुछ लोग पूरा रायता फैला देते हैं यार। लोगों को दिग्भ्रमित करते हैं, अपना झोला भरते हैं। उन्हें दंड तो नहीं दे सकता, चार चप्पल भी नहीं मार सकता। लेकिन मेरे ताज पर उंगली उठाने वालों और मर्यादा लांघने वालों को निःशब्द में कुछ न कुछ जरूर देता हूँ।

मेरे निःशब्द उनकी जिंदगी को कभी न कभी अवश्य छुएँगे, तिलमिला उठेंगे... एक न एक दिन आदिपुरुष कौन हैं समझ जाएंगे... तब तक देर हो जाए... #@$%




बोध की अनुभूति...💐

कहते हैं नाम के निरंतर सुमिरन से बोध प्राप्त होता है। यह भी कहते हैं कि एक बार बोध होने पर इसकी अनुभूति जीवन भर रहता है, भले ही सुमिरन बंद कर दिया जाए।

ऐसे कैसे होगा भला?

जब तक मिठाई खाते रहोगे तब तक ही मुँह मीठा रहेगा, लेकिन खाना बंद करने के कुछ समय बाद मुँह फिर से सिट्ठा हो जाता है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...