मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा के उत्सव पर्व...💐

सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा का माघी मेला, दशहरा पर्व, बसंत पंचमी के इंद्रधनुषी रंग मुझे बचपन से अपनी ओर खींचते रहे हैं। मेरे लिए इन उत्सवों और रंगों के अनेकों गहरे मायने हैं। दामाखेड़ा इन उत्सवों और पर्वों में जीवंत हो उठता है, सत्यनाम की महक से चारों दिशाएँ सुवासित हो उठती है, जनजीवन उल्लासित और प्रफुल्लित हो उठता है। हर पर्व का सीधा संबंध हृदय से है, आस्था से है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का है।

दामाखेड़ा के इन उत्सवों में कोई अपने को खोजने आता है, कोई साहब को खोजने आता है। कोई अपनी मुक्ति के लिए आता है तो कोई साथ छोड़ गए अपने परिजन की मुक्ति के लिए आता है। कोई गुरु की तलाश में आता है तो कोई अपने गुरु, अपने साहब के दर्शन बंदगी और प्रसाद के लिए आता है। कहीं साहब और उनकी वाणियों को लेकर गंभीर चर्चाएं होती है तो कहीं कोई अल्हड़ संत भजन के माध्यम से साहब की अनुभूतियों में डूबा हुआ होता है। कोई सेवा करने आता है, तो कोई आनंद मनाने। कोई दो वक्त का पेट भरने आता है तो कोई बाजार लगाकर अपनों के दो वक्त का पेट भरने आता है। कहीं दोस्तों की टोली चाय के ठेलों के पास मस्ती में लीन रहते हैं, वहीं बच्चों की नजर खिलौने, नए कपड़े, पानीपुरी और चाट की दुकानों पर टिकी होती है, तो कहीं कोई युगल प्रेमी हाथों में हाथ लिए गलियों में उन्मुक्त उड़ान भर रहे होते हैं।

इन्हीं इंद्रधनुषी रंगों से लबरेज दामाखेड़ा की यादें हैं। ये यादें बड़ी गहरी हैं, ये संस्मरण बड़े ताजे हैं, मीठे हैं। एक तरफ तो ये पर्व, ये उत्सव और मेलों की स्मृतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सहज संस्कार के रूप में प्रसारित हो रही है। वहीं दूसरी तरफ साहब की मनभावन वाणियों के माध्यम से, तो कहीं पान परवाना के माध्यम से धरती के कोने कोने तक पहुंच रही है। उत्सव के इन लम्हों को जीने के लिए समाज के हर वर्ग के लोग आते हैं, सामाजिक और धरातलीय सीमाओं को पीछे छोड़कर लोग इसका हिस्सा बनते है, समरसता का प्रसार होता है, लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं, परमात्मा से जुड़ते हैं। दामाखेड़ा के ये पर्व, ये उत्सव, ये मेले जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं, जीवन का सही मायने बताते हैं।

आज साहब के अवतरण दिवस विजयदशमी पर दामाखेड़ा में नहीं हूँ, लेकिन मेरा पूरा परिवार वहां उपस्थित हैं। घर पर अकेले दूर बैठे कल्पनाओं के माध्यम से ही महसूस कर रहा हूँ कि वहां ये हो रहा होगा, वो हो रहा होगा, सबको बड़ा आनंद आ रहा होगा... खासकर दामाखेड़ा के भोजन प्रसाद को याद कर रहा हूँ। वहां की कल्पनाओं के अहसासों से ही मन गदगद है।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...