शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

जीवन गुजर जाए...💐

आपके शब्दों का हर अल्पविराम, हर पूर्णविराम, हरेक मात्रा, शब्दों में निहित भाव, संवेदनाएं, मनोविचार और उसकी गहराई उसी रूप में ग्रहण होती है जिस रूप में आप कहना चाहते हैं।

बात सार्वजनिक हो या व्यक्तिगत, धरती की हो या अम्बर की, तारों की हो या नक्षत्रों की... जो आप कहते हैं सब समझ में आता है। आपके सिवाय कुछ और समझ नहीं आता।

कभी सपने में भी भान नहीं था की आप इस एक जीवन में मिल जाएंगे। लेकिन अब जीवन की सार्थकता का भान होता है, आहोभाग्य का अहसास होता है। आपने हाथ नहीं थामा होता तो न जाने कहाँ जाते, न जाने किस दशा में होते, न जाने किस गर्त की ओर निकल पड़ते।

जिंदगी के रास्ते बड़े कटीले हैं, फिसलन भरे हैं, निःठुर हैं। न तो दसों इन्द्रियों का भरोसा है, न ही खुद के कर्मों का। न जाने कब रास्ते से भटक जाएं, न जाने कब फिसल जाएं। इसलिए ऐसे ही सदा हाथ थामें रहिएगा, ये जीवन आपके गीत गुनगुनाते यूँ ही गुजर जाए।

शुक्रिया आपका...💐

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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

मेरे परमात्मा...💐

क्या तुम नहीं जानते परमात्मा किसे कहते हैं? साध्वी ने पूछा।

नवयुवक ने "नहीं" में सिर हिलाते हुए पूछा-
"आपने देखा है उन्हें? मुझे भी उनका दर्शन करा दीजिए, जीवन भर आपका ऋणी रहूँगा।"

साध्वी ने नवयुवक के उल्टे-पुल्टे सवालों से खीझते हुए कहा-
"परमात्मा को लड्डू समझ लिए हो... कि तुम्हारे हाथ में थमा दूँ और तुम खा जाओ..? उन तक पहुँचना है, उनका दीदार करना है तो उनके नाम की डोर पकड़ लो, नाम की चाबी से ही सत्यलोक का दरवाजा खुलेगा, परमात्मा मिलेंगे।"

नवयुवक ने फिर से प्रश्न दागा-
"परमात्मा दिखते कैसे हैं?"

साध्वी ने दीवार पर लगे "प्रकाशमुनि नाम साहब" की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा- "ऐसे ही दिखते हैं।"

नवयुवक ने फिर प्रश्न किया- "क्या परमात्मा के भी हाथ पाँव होते हैं साहब की तरह?"

साध्वी ने पुनः खीझते हुए गुस्से से कहा-
"अरे बुद्धू साहब ही परमात्मा हैं, साहब ही भगवान हैं, साहब ही सतपुरुष हैं।"

इस बार साध्वी के गुस्से को भांपते हुए नवयुवक और प्रश्न करने की हिम्मत नहीं जुटा सका, लेकिन बड़े दिनों तक "साहब" और "परमात्मा" शब्दों में ही उलझा रहा। परमात्मा के चार हाथ वाली छवि उसके जेहन में थी, और उसके लिए "परमात्मा" और "साहब" दोनों भिन्न थे।



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भाव बड़े गहरे हैं...💐

हर बात की शुरुआत उन्हीं से होती है, हृदय के भाव और सारे मनोविचार भी उन्हीं पर आकर टिक जाते हैं। कुछ कहने सुनने का उद्देश्य और सार भी वही हैं। हर ध्वनि में उनकी ही आवाज होती है, हर दृश्य में उनका ही रूप होता है। वो जीवन के हर क्रियाकलापों में रचे बसे हैं। उनका सुरूर जेहन से उतरता ही नहीं है।

हर सुबह हल्के स्पर्श के साथ जगाते हैं, तैयार करते हैं जीवन के एक और नूतन दिवस के लिए। वो अनेक ध्वनि और दृश्य के संकेतों से अनहद की बात बताते हैं, अपने अनुपम रूप की झलक दिखाते हैं, साथ होने का अहसास कराते हैं। उनके नाम की चादर से जिंदगी ढकी सी है, और उनके आलोक से जीवनपथ प्रकाशित है।

अहसास बड़े गहरे हैं लेकिन शब्द उन्हें छू नहीं पाते। अहसासों को बताते हुए नयन छलक उठते हैं और शब्द मौन हो जाते हैं। सागर किनारे रेत पर लिखे नाम की तरह हृदय पटल पर उनकी अभिव्यक्ति उभरती और मिटती है।

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शनिवार, 15 दिसंबर 2018

ब्रम्हचारी का जीवन...💐

वो ब्रम्हचारी उमर भर लोगों को शिक्षाएं देते रहे। समाज को धर्म, अध्यात्म और परमात्मा की बात बताते रहे। उनकी रहनी गहनी भी ठीक थी। मर्यादित और संयमित जीवन जीते थे।

लेकिन ढ़लती उमर में विपरीत परिस्थितियों का एक झोंका आया, जमकर बीमार पड़ गए। परिवार तो पहले ही छोड़ आए थे, अब वापिस जाना मुश्किल जान पड़ा। अपनी सेहत के लिए अब दूसरों पर निर्भर रहने लगे, भक्तों पर निर्भरता बढ़ने लगी। दो वक्त की रोटी भी अब बड़ी मुश्किल से मिल पाती थी।

समय बीतने के साथ लोग और भक्त उस सन्त को दुत्कारने लगे, उनसे पीछा छुड़ाने लगे। वो बहुत विचलित हो उठे, और एक दिन अपने आश्रम के मैले कुचैले बिस्तर पर लौट आए। काँपते हाथों से चूल्हे में अपने लिए खाना बनाते, और नाम स्मरण में लीन रहते।

नवयुवक शिष्य को उनके गिरते स्वास्थ्य का पता चला तो उस संत को मिलने चले गए। अपने शिष्य को सामने देखकर संत की आंखों से आंसू छलछला उठे, गला भर आया। शिष्य को गले लगाते और सिसकते हुए बोले-
"गृहस्थ आश्रम में रहते हुए ही साहब की भक्ति करना बेटा। जिंदगी बेरहम है, लोग बेरहम हैं और शरीर जर्जर है।"

जो संत जनसमुदाय के लिए जीता है, समाज के लिए अपना जीवन देता है, उनकी ऐसी दयनीय स्थिति देखकर वह नवयुवक सहम गया, फट पड़ा।

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प्रेम का सही रूप...💐

प्रेम का अर्थ है दूसरे को अपने से अधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान मानना। प्रेम का अर्थ है मेरा सुख गौण है, तुच्छ है, लघु है तथा जरुरत पड़े तो मैं अपने को मिटा दूँ ताकि जिससे प्रेम करते हैं वो बच सके, उसका अस्तित्व बच सके। इस तरह दूसरे के अस्तित्व के लिए अपने अस्तित्व को मिटा देना प्रेम की पराकाष्ठा है।
प्रेम में व्यक्ति अपना रूप, अपनी पहचान, अपना अहं खो देता है तथा दूसरे के लिए जी रहा होता है। इस गहरे प्रेम की दिशा को परमात्मा की तरफ, साहब की तरफ मोड़ दिया जाए, चराचर जगत कल्याण की तरफ मोड़ दिया जाए, तभी उस प्रेम की सार्थकता है। गहरे प्रेम का यह रूप ही प्रेमी को परमात्मा की ओर ले जाता है।

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सोमवार, 10 दिसंबर 2018

आदमी की फितरत...💐

उस वक्त जब तुम असहाय से थे, तकलीफों और पीड़ाओं से घिरे थे, नैय्या डूब रही थी, तब हाथ थामने का प्रणय निवेदन किया था, भरोसा दिलाया था कि साथ रहोगे। समय थोड़ा आगे क्या बढ़ा, पीठ दिखा दिए, मजबूरियां गिनाकर दामन छुड़ा लिए।

हमनें तो तुम्हें हृदय से लगाया था, बराबर की कुर्सी पर बिठाया था, हमकदम बनाया था, तुम्हारी तकलीफ़ पर हमने भी आँसू बहाया था, अपने हिस्से की रोटी भी तुम्हारे साथ बांट ली थी।

नाराज नहीं हूँ लेकिन "आदमी" की फितरत से हैरान जरूर हूं।

रविवार, 9 दिसंबर 2018

परमात्मा का स्पर्श...💐

कुछ छूट सा रहा है, कुछ खो सा रहा है, कुछ विस्मृत सा हो रहा है। जो भीतर द्वंद्व है, अंधकार है, किसी तेज पुंज से मिट रहा है, उज्जवलित हो रहा है। किसी दिव्य सुबास से अंतर्मन महक रहा है। कतरे कतरे में बिखरी जिंदगी को कोई नया मुकाम हासिल हो रहा है। जो रास्ते घुप्प अंधेरो से ढके थे अब रोशनी से नहाए हैं।हृदय की किवाड़ खुल चुकी है, सबको अपने में स्वीकार करने की सदइक्छा सी जाग रही है।

वो जो तन्हाई का आभास था, तिरोहित सा हो रहा है। उत्सुकतावश गहरे, और गहरे उतरने की उत्कंठा हो रही है, थाह लेने को मन मचल रहा है। पर्दे के पीछे जो अनसुना, अनकहा, छुपा और ढका सा है, उसका अनुमान अब ज्यादा अच्छे से हो रहा है। जिसे अब तक नहीं देखा उसके रूप का एक अंश नजर सा आ रहा है।

कोई उजला आभामंडल अस्तित्व और जिंदगी को चारों तरफ घेरे हुए है। उसके दिव्य स्पर्श से जीवन सुवासित और पुलकित हो उठा है। शरीर का रोम-रोम, हृदय का कोना कोना, समय का क्षण-क्षण उस प्रकाशपुंज को अहोभाग्य से निहार रहा है...।

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अस्तित्व तुझमें ही कहीं खो गया...💐

तुझे याद करते करते तो सबकुछ खो गया। सारी की सारी साँसे खप गईं, जिंदगी का कतरा कतरा कुर्बान हो गया। जिसे रूह कहते हैं, आत्मा कहते, जीवन का अस्तित्व कहते हैं, अपने भीतर से निकालकर तुम्हें उसी पल सौंप दिया था जिस पल हृदय के आईने में अपनी सूरत की जगह तुम्हारा चेहरा देखा, अपने भीतर तुम्हारा अख़्स देखा, अपनी परछाई में तुम्हारा रूप देखा।
कहने को तो बस अब ये माटी का तन ही रह गया है, जिसे अहंकार वश अपना कह लेता हूँ। लेकिन अब तन भी जर्जर होने को है, किसी तूफ़ान के एक थपेड़े से यह भी किसी दिन झरझराकर गिर पड़ेगा, ढह जाएगा।
जैसे हरी घास पर बिखरी ओस की बूंदे जो भोर की पहली किरण पड़ते ही मोतियों की तरह चमकती हैं, पैर पड़ते ही अपना रूप खो जाती हैं। रात के आकाश में हीरों की भांति टिमटिमाते तारे सूरज की रोशनी के आते ही अपना रूप खोकर प्रकाश में विलीन हो जाते हैं। ठीक उसी तरह मेरा भी वजूद तुम्हीं में कहीं खो गया है, विलीन हो गया है।
जिंदगी में अब तेरे और मेरे की बात नहीं है, दूरियों और फासलों की बात नहीं है, गहराई और उथलेपन की बात नहीं है, समतल और ढलान की बात भी नहीं है। अब तो बस मौन अभिव्यक्ति की बात है, निःशब्द की बात है।
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बुधवार, 5 दिसंबर 2018

प्रेम का सही रूप...💐

कक्षा छठवीं में पढ़ रही अबोध बच्ची के स्कूल बैग से प्रेम पत्र मिलता है। पिता उस पर टूट पड़ता है, खूब खरी खोटी सुनाता है, मारता-पीटता है। जब भी पिता डंडे से उसे पीटता, वो बच्ची किसी फ़िल्म की हीरोइन की तरह चिल्ला चिल्लाकर डायलॉग बोलती-
"प्यार किया तो डरना क्या" "प्यार किया तो डरना क्या"

पिता ने बेटी को मारकर, डराकर उसकी आवाज बंद तो कर दी। लेकिन वह सोच में पड़ गया कि इतनी छोटी, इतनी अबोध बच्ची कैसे प्रेम का मतलब समझ सकती है और कैसे किसी से प्रेम कर सकती है? वह कारणों का पता लगाना चाहता है।

दरअसल प्रेम सभी मानव के लिए अति आवश्यक है। लेकिन बच्चे और किशोर प्रेम के जिस रूप को सबकुछ मान बैठते हैं वह प्रेम उन्हें गर्त की ओर खींच लेता है। उन्हें प्रेम का सही रूप, सही ढंग से समय रहते समझने और समझाने की जरूरत है।

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

साहब और शिष्य का मिलन...💐

पीढ़ी बीत गयी, घर में संतों के चरण नहीं पड़े। संतु बड़े आस से इस पूर्णिमा अपने घर में चौका आरती कराने जा रहा है। वह मिट्टी के टूटे फूटे और कच्चे घर में बड़े ही संकोच के साथ संतो और रिश्तेदारों को आमंत्रित करता है।

साल भर गांव में मजदूरी की। पाई पाई जोड़कर बड़े ही प्रेम भाव से वह चौका आरती और भोजन भंडारे की सारी व्यवस्थाएं करता है। उसके साथ पूरा परिवार बेहद खुश है कि आज बरसों बाद संतों के माध्यम से साहब के कदम घर आँगन में पड़ेंगे, साहब के चौका आरती से जन्मों का मैल धूल जाएगा। संतु ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। वो चौका का कोई विधि विधान नहीं जानता, सिर्फ बंदगी जानता है, समर्पण जानता है।

अश्रुपूरित नेत्रों से आरती करते हुए पूरा परिवार महंत साहब के रूप में "साहब" की आगवानी करता है। चौका शुरू होता है, संतु अपने परिवार के साथ साहब को नारियल, फूल, पान, सुपारी, द्रव्य भेंट करता है। वह और उसका परिवार महंत साहब के चरणों में, बरसों की प्रतीक्षा और जीवन का भार अश्रु धारा के रूप में अर्पित कर देता है।

चौका के समापन तक संतु बैठे बैठे महंत साहब को निहारता रहता है, रोता और सिसकता रहता है। दीनता से भरे उसके भाव देखकर महंत साहब भी अपने को रोक न पाए, चौका के आसन में बैठे बैठे वो भी रो पड़े।

"साहब" और "साहब के भक्त" का चौका के बीच सुखमनी लगन में निःशब्द मिलन हो रहा था।

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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

कोई सदा के लिए जा रहा है...💐

कोई जाना पहचाना चेहरा सफेद कफ़न में लिपटा हुआ लगता है। उसे चंदन का लेप लगाया जा रहा है। उसके लिए फूलों का बिस्तर सजाया जा रहा है। कहीं दूर, जिन्हें अपना कहता हूं उनके रोने, बिलखने की आवाज कानों में पड़ रही है। शायद फिर से कोई विदा होने जा रहा है।

जीवन के असह्य पीड़ा से उसकी मुक्ति की खुशियां मनाऊँ या सदा के लिए उसका साथ छूटने का मातम। कभी कभी जिंदगी और जिंदगी देने वाले बड़े निष्ठुर प्रतीत होते हैं। दोनों को कोसने के अलावा कुछ कर भी तो नहीं सकते।

अलविदा दोस्त, तुम्हारा शुक्रिया जिंदगी में आने के लिए...💐

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

दो शब्द तुम्हारे लिए...💐

प्यार तो है और सदा रहेगा। चंद किलोमीटर की दूरियाँ मन के भावों को, जज्बातों को रोक नहीं सकती। क्या हुआ जो उमर भर के लिए साथ न रह सके, क्या हुआ जो मिलकर भी बिछुड़ गए। दिल की गहराई में तो तुम्हारा ही अख़्स है, तुम्हारा ही प्यार है। अब भले ही अपना प्यार जता नहीं सकते, हक जता नहीं सकते, पर प्यार का मौन रूप भी बेहद खूबसूरत है, बिल्कुल तुम्हारी तरह।

उसकी परिस्थितियां शायद बहुत मुश्किल रही होंगी, तभी तो उसने अलग होने का फैसला किया। वरना तुम्हारे कहने पर सब कुछ छोड़ देने का साहस उसमें भी कम न था।

क्या ऐसा हो सकता है कि 10 बसंत जीने वाला प्यार भी कभी मर जाए। वो अब भी जिंदा है। हृदय की परतें खोदो, थोड़ी गहराई में जाओ, वो मिलेगा और अपने ही दिल के अंदर मिलेगा। हमारा प्यार तो सदाबहार है, मोगरे के ताजे फूलों की तरह। उसकी महक हमारे जीवन को हमेशा महकाती रहेंगी।

वो आँगन, वो बाड़ी, वो गलियां, वो तालाब... तुम्हें प्यार का अहसास कराएंगे। शहर की दूरियां, बस और बाइक का सफर, खीर, गोभी और मटर की सब्जी, प्रेम पत्र के रंगीन पन्ने प्यार की गहरी अनुभूति कराएंगे।

अलग होने का दर्द हम दोनों तन्हाई में शिद्द्त से महसूस करते हैं। ये दर्द न तुम्हारा ज्यादा है न मेरा कम। बिछोह की पीड़ा हम दोनों का बराबर है। एक दूसरे के लिए हम दोनों ने ही अपनी जिंदगी फूँक डाली। एक दूसरे को प्यार का प्रमाण देने के लिए वो दस साल कम नहीं हैं।

आज भी उन सदाबहार यादों से हृदय महकता है, आनंदित होता है, उसे फिर से दोहराना और जीना चाहता है। मेरे हृदय में तुम्हारा प्यार अमिट, अमर है, जो अब शरीर के छूटने के बाद भी मेरे लेखों में, मेरे ब्लॉगों में रह जाएंगे प्रेम पत्रों की तरह।

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साहब के साथ सेल्फी...💐

उस महात्मा ने हाथ पकड़कर साहब के रास्ते पर चलना सिखाया। साहब का परिचय कराया, उनके होने का बोध कराया, उनकी वाणियों को जीना सिखाया। वो कहा करते थे साहब तक पहुंचने की अनेकों विधियाँ हैं, लेकिन सबसे सरल विधि साँसों के माध्यम से उनके नाम का सतत स्मरण है, वो भी बिना तारी टूटे, बिना एक भी स्वांस वृथा गवाएं। एक ही मौका ही, एक ही जीवन है। साहब को नहीं जी सके तो क्या जिए?

कुछ दिनों के प्रयास से नाम का स्मरण भीतर तक समाने लगा। अब तो पैदल चलने के पदचाप में भी "सत्यनाम" की ध्वनि सुनाई देने लगी। कमरे की घड़ी भी टिक-टिक में "सत्यनाम" का स्मरण करने लगी। जो भी व्यक्ति सामने आता, उसके चेहरे में भी "साहब का रूप" दिखाई देने लगा। भाव विह्वल उनके चरण पकड़ लेता। धीरे धीरे उसकी दिनचर्या "सत्यनाम" और "साहब" के रंगो से सराबोर हो गया। अब तो वो पूरी तरह साहब के आगोश में समाता ही चला गया।

कुछ समय बाद तो उसे लोगों की बातें सुनाई देना बंद हो गई, संसार के दृश्य दिखाई देना भी बंद हो गए। न तो खाने पीने का होश, न ही सोने जागने का ख्याल। उसका सबकुछ खो गया, वो बदहवास साहब को पुकारता ही रहा। शरीर कांटे की तरह सूख चुका था, आंखों से आंसू रोके नहीं रुकते थे। उसने अपनी साँसे और जिंदगी फूँक डाली, उसको अब साहब के अलावा जीवन से कुछ और नहीं चाहिए था।

आखिरकार बड़ी प्रतीक्षा के बाद उसे साहब मिल ही गए, और साहब के दर्शन पाकर वो फुट फुटकर रोया, रोता ही गया। वो सबको पकड़ पकड़कर साहब के बारे में बताने की कोशिश करता, कभी रोता, तो कभी झूमता। उसके हृदय में साहब के लिए पागलपन और जुनून उमड़ पड़ता। साहब ने उसके जीवन की डोर थाम ली, और उसने भी साहब के साथ सेल्फी ले ली।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...