रिटायर आईएएस अफसर अपने पैतृक गाँव में 10 एकड़ कृषि भूमि इसलिए खरीदता है कि बाकी का जीवन सुकून से प्रकृति के करीब रहकर बिता सके। लेकिन चार-चार बोर करा लिया, जमीन से पानी ही नहीं निकला। जल देवता तो जैसे उनसे रुठ ही गये। उसे पता चला कि पास ही एक संत रहते हैं जिसे सिद्धि प्राप्त है, वे समस्या जरूर हल कर देंगे।
वह बेहद हल्की उमर के लग रहे, साफ सुथरे चेहरे वाले संत के चरणों में नारियल और पूजा का सामान चढ़ाते हुए प्रणाम कर जमीन पर बैठ जाता है। संत अचानक बोल उठता है- "पानी के लिए आए हो?" अफसर ने "हाँ" में सिर हिला दिया।
संत ने अफसर से कहा- "चलो अभी अपनी जमीन पर ले चलो, जहाँ कहूं वही बोर खुदवाना।" जमीन के चारों तरफ घूमने के बाद संत ने एक जगह बताई जहाँ दूसरे दिन बोर खुदवाई गई, बोर सफल रहा, पानी का भरपूर स्रोत मिल गया।
बोर से पानी निकलने की चर्चा आसपास के पूरे गाँव में फैल गई। देखते ही देखते बड़ी बड़ी गाड़ियां उसके झोपड़ी के बाहर खड़ी होने लगी, बोरियों में "लक्ष्मी" भरी जाने लगी, और वो संत अब "भगवान" कहलाने लगा। मुक्ति का माया और बंधन में रूपांतरण हो चुका था
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