हे मालिक, हे साहब, जब भी आपका कुछ तोड़ने का मन करे तो मेरा अहंकार तोड़ देना। जब भी आपका कुछ जलाने का मन करे तो मेरा गुस्सा जला देना। जब भी आपका कुछ बुझाने का मन करे तो मेरे अंदर के नफ़रत को बुझा देना। जब भी आपका कुछ मारने का मन करे तो मेरी बेतरतीब इक्छाओं को मार देना।
आपके जीव जगत के मुक्ति के मार्ग में मुझे भी उपयोगी बना लीजिए। मुझमें भी अपने दिव्य स्वरूप और विराट सत्ता का छोटा सा अंश उड़ेल दीजिए। मेरा ये जीवन आपके चरणों में बिछा है, तराशकर हीरे सा चमका दीजिए।
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