किस तरह अपना जीवन सार्थक करें? धनी सोचता है कि निर्धन सुखी है क्योंकि उसे अपना धन बचाने की चिंता नहीं है। निर्धन अपने अल्पधन के अभाव को दूर करने के लिये संघर्ष करता हैं। जिनके पास धन है उनके पास रोग भी है जो उनकी निद्रा का हरण कर जाता हैं। निर्धन स्वस्थ है पर उसे भी पेट पालने के लिए चिंताओं से भरी नींद नसीब होती है। निर्धन सोचता है कि वह धन कहां से लाये तो धनी उसे खर्च करने के मार्ग ढूंढता है। हर कोई सोचता है कि क्या करें क्या न करें?
संतजन, सिद्धपुरूष लोग परमात्मा तथा संसार को अनंत कहकर चुप हो जाते हैं और वही लोग इस संसार को आनंद से जी पाते हैं। प्रश्न यह है कि जीवन में आनंद कैसे प्राप्त किया जाये? इसका उत्तर यह है कि सुख या आनंद प्राप्त करने के भाव को ही त्याग दिया जाये। निष्काम कर्म ही इसका श्रेष्ठ उपाय है। पाने की इच्छा कभी सुख नहीं देती। कोई वस्तु पाने का जब मोह मन में आये तब यह अनुभव करें कि उसके बिना भी हम सुखी हैं। किसी से कोई वस्तु पाकर प्रसन्नता अनुभव करने की बजाय किसी को कुछ देकर अपने हृदय में अनुभव करें कि हमने अच्छा काम किया।
इस संसार में पेट किसी का नहीं भरा। अभी खाना खाओ फिर थोड़ी देर बाद भूख लग आती है। दिन में अनेक बार खाने पर भी अगले दिन पेट खाली लगता है। संतजन, साधकगण रोटी को भूख शांत करने के लिये नहीं वरन देह को चलाने वाली दवा की तरह खाते हैं। काश जीवन किसी साधक की तरह गुुुजरता ...!