कौन भला घण्टों भर ऐसी चर्चाओं में माथा खराब करे? हमें तो पका पकाया भोजन खाने की आदत है, रेडीमेड और ब्रांडेड ज्ञान की आदत है। हम तो शॉर्टकट रास्ता पकड़ते हैं और ऐसी चर्चाओं के बीच अपना बोरिया बिस्तर समेटकर पतली गली से कल्टी मार लेते हैं।
बुधवार, 30 अक्तूबर 2019
तर्क कुतर्क...💐
दो लोग मिले नहीं कि शुरू हो जाता है बुराइयों का दौर, तुलना का दौर। मेरा ज्ञान बड़ा, मेरा भगवान बड़ा, मेरी श्रद्धा बड़ी, मेरी भक्ति बड़ी, मेरे सुमिरन में ज्यादा शक्ति, मेरी उपासना पद्धति में ज्यादा ताकत, इस किताब में ऐसा लिखा है, उस किताब में वैसा लिखा है...!!!
संतों का कठोर जीवन...💐
दो रोटी के लिए हाथ फैलाते देखा है, शारीरिक तकलीफों से कराहते देखा है, मदद के लिए गुहार लगाते देखा है, लोगों द्वारा उन्हें दुत्कारते देखा है, अंतिम समय में जीर्णशीर्ण अवस्था में पल पल मरते देखा है। बुढ़ापे में उनकी कठोर जिंदगी की कल्पना मात्र से ही हालत पतली हो जाती है, रूह काँप उठती है।
कभी मैं भी घर द्वार छोड़कर उसी रास्ते पर चलने को आतुर था जिस रास्ते पर गृह त्यागी गुजरे थे। युवावस्था में संतों का जीवन बड़ा लुभावना लगता था, उनका ओजपूर्ण व्यक्तित्व आकर्षित करता था। उनकी वाणी बड़ी मीठी लगती थी, उर्जा से भर देती थी।
बहुत सोच विचार और सलाह मशविरे के बाद रास्ते से लौट आया, शादी करके घर बसा लिया, पेट पालने लायक रोटी कमा लिया। आज अहसास होता है कि मेरा निर्णय सही था। शादी, परिवार, बच्चे, नौकरी, व्यवसाय आदि साहब के मार्ग में कभी बाधा नहीं बनते बल्कि सहयोगी ही होते हैं।
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