बुधवार, 7 अगस्त 2019

गुस्सा...💐

कभी कभी मन करता है भक्ति और प्रेम रस से भीगे शब्दों को त्यागकर वीर रस, वीभत्स रस की स्याही अपनी कलम में भर लूँ। शब्दों में कोमलता, सुकुनता समाहित कर सकता हूँ तो कठोरता और चुभन भी उड़ेल सकता हूँ।

मन में बेपनाह उद्वेग है, गुस्सा है, नफरत है उनके लिए जो वातावरण में जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद का जहर घोल रहे हैं, और माहौल खराब कर रहे हैं।

सोचता हूँ उनकी जिंदगी हमेशा के लिए शापित कर दूँ, उजाड़ दूँ और उनके रक्त से रंजित नए शब्द उकेर दूँ।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...