अनुभव की पृष्टभूमि पर जीवन के सारे उधेड़बुन स्वतः ही समाप्त हो जाते है। एक सुकून, एक खुमारी, एक भीनी सुगंध, स्निग्धता रह जाती है। हृदय का रोम रोम साहब के नाम से उत्प्लावित रहता है, जीवन को पूर्णता प्राप्त होती है। एक परा शक्ति, एक जीवनी शक्ति सदैव नितप्रति अपने भीतर महसूस होता है।
आध्यात्मिक अनुभव की कोई सीमा नहीं होती है। इस सागर में जितने गहरे उतरते हैं उतने ही मोती मिलते हैं। यह आध्यात्मिक अनुभव साधक को जीने की राह सिखाते हैं, उसके लक्ष्य को प्रकाशित करते हैं। मानव को महामानव बनाते हैं।