बोध हो जाना ही ज्ञान है।
लेकिन किसका बोध...???
परमात्मा का बोध होना या खुद का बोध होना?
साहब को परमात्मा के रूप पहचान लेना, साहब को परम् सत्ता के रूप में निहार पाना ही बोध और ज्ञान है, अथवा स्वयं में परमात्मा की मौजूदगी का बोध होना ज्ञान है?
दरअसल स्वयं की उपस्थिति तो कहीं महसूस ही नहीं होती, कहीं अहसास ही नहीं होता। घट के भीतर और घट के बाहर जहां भी नयन जाते हैं, इन्द्रियाँ जाती हैं वहाँ वहाँ तो साहब ही होते हैं। फिर खुद का बोध किस चिड़िया का नाम है...???
बड़ा कन्फ्यूजन है।