मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

समानता का अधिकार...😢

राजनीति विज्ञान मेरा प्रिय विषय रहा है। सन 1998 में 12वीं की परीक्षा में मुझे 100 में से 73 अंक प्राप्त हुए थे। साथ ही कक्षा 12वीं की परीक्षा में अपने क्लास कला समूह में स्कूल टॉपर रहा। लेकिन जैसे जैसे समय आगे बढ़ा आंटे दाल का भाव भी पता चला।

कक्षा 12वीं में राजनीति विज्ञान विषय के मौलिक अधिकार से संबंधित पाठ सदा के लिए कंठस्थ कर लिया था। संविधान द्वारा मौलिक अधिकार के माध्यम से भारतीय नागरिकों को अतिमहत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं। इन मूलभूत अधिकारों में "समानता का अधिकार" भी है जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में वर्णित है। क्या सच में समानता का अधिकार है? क्या भारतीय कानून सभी देशवासियों पर समान रूप से लागू होता है? उत्तर "नहीं" में प्राप्त होता है। लोगों की दलीलें और राय भी इसे लेकर अलग अलग हैं।

एक वर्ग का मानना है कि कुछ नागरिकों को विशेषाधिकार, कुछ राज्यों को विशेषाधिकार, क्षेत्रवाद, सरकारी नौकरियों में जातिगत आरक्षण, सार्वजनिक और निजी संस्थानों में समान काम का आसमान मजदूरी दर, महिलाओं और पुरुषों की लैंगिक आधार पर आसमान मजदूरी दर, समाज में व्याप्त आर्थिक शोषण जिसमें निचले तबके का व्यक्ति कुचला जाता, छुआछूत जैसी कुप्रथा का अब तक अंत न हो पाना, विपक्षियों द्वारा विरोध के लिए विरोध करना, नेताओं के राजनैतिक दुर्भावना के कारण जनता का पीसा जाना, साम्प्रदायिक कट्टरता, न्याय व्यवस्था में देरी, प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा शासन की शक्तियों का दुरुपयोग अपने या किसी विशेष वर्ग की महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किया जाना, वोट बैंक की राजनीति, देशी व विदेशी दबाव समूह जैसे आतंकवाद और चरमपंथी ताकतें, विदेशों से व्यावसायिक संबंध और प्रतियोगिता आदि के समानता के कानून के मार्ग की बाधाएं हैं।

दूसरा वर्ग यह भी कहता है कि भारत एक विशाल देश है। इसकी विशाल जनसंख्या, भौगोलिक विभिन्ताओं, विभिन्न सांस्कृतिक जीवन शैली और मान्यताओं, अलग अलग सम्प्रदाय और धार्मिक विचारधाराओं के बीच समानता का अधिकार का बराबर पालन नहीं किया जा सकता। अतः विशेष लोगों, समुदाय, जाति वर्गों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, राज्य की भौगोलिक सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति के अनुसार उनके संरक्षण के लिए उन्हें विशेषाधिकार प्रदान किया जाना आवश्यक है।

एक तीसरा वर्ग भी है जो कहता है कि समानता के कानून के पक्ष और विपक्ष में अनेकों दलीलें दी जा सकती हैं, अनेकों तर्क दिए जा सकते हैं। उनके अनुसार वर्तमान अंतराष्ट्रीय परिदृश्य में जाति, सम्प्रदाय, व्यक्तिगत लाभ, क्षेत्रवाद की कुंठित भावनाओं से ऊपर उठकर देशहित सर्वोपरि होना चाहिए और ऐसे पुराने और जर्जर कानूनों में संशोधन अवश्य होना चाहिए जो देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने में मदद करे।

अतेकन लिखे के कतेक नम्बर मिलहि जी?? संगवारी मन उत्तर पुस्तिका ल जांच के जरूर बताहु। आउ लिखे के मन रिहिसे, फेर जादा हो जहि। एकठन बाग मोरो घर तीर हावय, भीड़ लग जाहि त मुश्किल हो जहि। फेर काय करबे संझाकुन भात खावत खावत टीवी देख लेबे त जी कटकटा जथे। अतेक पढ़े लिखे अउ डिग्री धरे के कोनो मतलब नई हे साले ल... 😢😢

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

बोरिंग ज्ञान चर्चा...💐

रोज रोज ज्ञान चर्चा बहुत बोरिंग लगता है। अधिकतर चर्चा करने वाले लोग चर्चा के माध्यम से अपनी बात थोपने में लगे रहते हैं, अपने अहं की तुष्टि करना चाहते हैं। ऐसे अधिकतर लोग चर्चित विषय का अंतिम उत्तर भी जानते हैं, और सबकुछ जानते हुए भी अपनी लम्बी लम्बी तर्कों के माध्यम से दूसरों का समय बर्बाद करते हैं। अगर विषय इंफोर्मेटिक हो, नया और नूतन हो जिसके बारे में अक्सर लोग नहीं जानते तो ऐसी चर्चाओं की सच में सार्थकता है।

आप किसी किताब को कितनी बार पढ़ सकते हैं? दो बार, चार बार, दस या सौ बार... क्या हर बार किताब के शब्द या भाव बदल जाते हैं जिसकी वजह से आपको बार बार पढ़ना पड़े? नहीं न...। मेरे घर में भी एक ही किताब को हर रोज पढा जाता है, रोज शब्दों को दुहराया जाता है... बड़ा बोरिंग लगता है। आए दिन अपनों से ही उलझ पड़ता हूँ।

अगर किताब के भाव भलीभांति समझ आ गए, जिस मार्ग की तलाश थी वो मार्ग किताब से मिल गया, तो उसी दिन वो किताब आपके लिए व्यर्थ हो जाता है। हाँ, चूंकि उस किताब ने आपको रास्ता दिखाया, प्रश्नों के उत्तर दिए, जीवन को रोशनी से भर दिया, इसलिए उस किताब के प्रति हृदय में श्रद्धा उमड़ पड़ना स्वाभाविक है, वो किताब सच में ताउम्र आपके लिए प्रणम्य है।

लेकिन मेरे अपने जो ताउम्र उस किताब को रटने के बाद भी उसके भावों को अंगीकृत नहीं कर सके, और ज्ञान चर्चा का नाम देकर उस किताब के शब्दों पर अपना एकाधिकार समझता है, अपनी दकियानूसी कुतर्कों से दूसरों का माथा खराब करते हैं... चिढ़ होती है, झल्लाहट होती है।

कभी कभी लगता है मेरे अपने जो जीवन भर हर रोज एक ही किताब को रटते रहते हैं, उन्हें उसी किताब के साथ गंगा में विसर्जित करते हुए राम नाम सत्य कह दूँ।


आदिपुरुष कौन...💐

क्या करें...!!! ऊपर वाले ने खोपडिया में कोटकोटले ज्ञान भरकर इस धरती पर अवतरित किया है...☺️☺️ इसलिए कभी कभी न चाहते हुए भी ज्ञान ओवरफ्लो हो जाया करता है, छलक जाता है। लेकिन आदिपुरुष नामक व्यक्ति के ज्ञान के आगे मोर सब्बो ज्ञान अउ डिग्री फेल हो गया। उन आदिपुरुष से विनय है मुझे भी अपने चरणों मे स्थान देकर अपना कल्याण करें।

कुछ लोग पूरा रायता फैला देते हैं यार। लोगों को दिग्भ्रमित करते हैं, अपना झोला भरते हैं। उन्हें दंड तो नहीं दे सकता, चार चप्पल भी नहीं मार सकता। लेकिन मेरे ताज पर उंगली उठाने वालों और मर्यादा लांघने वालों को निःशब्द में कुछ न कुछ जरूर देता हूँ।

मेरे निःशब्द उनकी जिंदगी को कभी न कभी अवश्य छुएँगे, तिलमिला उठेंगे... एक न एक दिन आदिपुरुष कौन हैं समझ जाएंगे... तब तक देर हो जाए... #@$%




बोध की अनुभूति...💐

कहते हैं नाम के निरंतर सुमिरन से बोध प्राप्त होता है। यह भी कहते हैं कि एक बार बोध होने पर इसकी अनुभूति जीवन भर रहता है, भले ही सुमिरन बंद कर दिया जाए।

ऐसे कैसे होगा भला?

जब तक मिठाई खाते रहोगे तब तक ही मुँह मीठा रहेगा, लेकिन खाना बंद करने के कुछ समय बाद मुँह फिर से सिट्ठा हो जाता है।

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

उससे कहना...💐

जब तुम वहाँ जाओगे... 
एक साँवली सी लड़की मिलेगी, जो हर साल अक्सर गर्मियों में आया करती थी। बहुत बोलती थी... शुरू होती तो खत्म ही नहीं होती थी। अपने घर के चौरा में बैठकर क्रिकेट खेलते लड़कों को देखकर कमेन्ट्री किया करती। 

जब तुम वहाँ जाओगे...
एक साँवली सी लड़की मिलेगी, जो पहली बार जब गाँव आई तो सफेद और जामुनिया रंग के लिबास में नजर आई थी। किसी स्कूटर की आवाज से समझ आ जाता था कि गाँव पहुंच चुकी है। गांव की हवाओं में उसकी मदमस्त खुशबू बिखर जाती, नजरें उसे ढूंढने लगती।

जब तुम वहाँ जाओगे...
एक साँवली सी लड़की मिलेगी, जिससे मन कुछ यूं बंध गया कि उसी में अपने जीवन का अक्स पाया करता, उसमें ही डूब जाया करता। धीमे धीमे जिंदगी उसकी ओर बढ़ चली थी। न जाने कब जीने का मकसद वो ही बन गई। उससे लगाव हो गया, प्यार हो गया।

जब तुम वहाँ जाओगे...
एक साँवली सी लड़की मिलेगी, तालाब के किनारे के सदियों पुराने पीपल पेड़ के पत्ते बरसों बाद भी उसकी छुअन महसूस करते हैं। उसके आने की आहट से आज भी सरसरा उठते हैं। पास में एक बाड़ी भी है, जहां लड़कपन में उसके होंठों ने मेरे गाल और माथे को चूमा था।

जब तुम वहाँ जाओगे...
एक साँवली सी लड़की मिलेगी, जर्रे जर्रे को उनके बीते हुए मनमोहक यादों से सना पाओगे, जमीन के कण कण में उनके खुशनुमा और सदाहरित प्रेम के निःशब्द पदचिन्ह पाओगे। उनके रंगीन और प्यार भरे लम्हों की दास्तान लोग आज भी दुहराते हैं। किसी पेड़ पर दोनों के नाम दिल बनाकर किसी ने उकेरे हुए हैं, जो बरसों बाद भी ज्यूँ का त्युं गुदा हुआ है।

जब वहाँ जाओगे...
एक साँवली सी लड़की मिलेगी, कहना उससे- वो आज भी कागज के रंगीन पन्नों को दिल की गहराइयों में लिए जी रहा है, उन यादों को आज भी वह सहेज रखा है। वो न होती तो जीवन की इतनी समझ नहीं होती, प्रेम का बोध न होता, जीवन अधूरा ही छूट जाता, कमी रह जाती। उसके होने से ही इस जीवन की पूर्णता है। 

जब वहाँ जाओगे...
साँवली सी लड़की मिलेगी, कहना उसे- मोगरे के फूल उसे अब भी बहुत पसंद है... और खीर भी।

💐💐💐

सबकुछ पहले जैसा ही है...💐

सबकुछ पहले जैसा ही है। धरती, आकाश, तालाब, खेत, बाड़ी, नदी, लोग, गांव, घर, मुहल्ले, गलियां... बस वो अब साथ नहीं हैं। लेकिन मैं उन्हें हमेशा साथ ही देखता हूँ। विचारों, भावनाओं और स्मृतियों में वो हमेशा साथ ही रहते हैं। 

जीवन में हर कोई उमर भर का साथी नहीं होता। कोई पहले छोड़ जाता है, तो कोई बाद में। किसी का साथ एक महीने का होता है तो किसी का एक साल, और किसी का 99 साल। क्या फर्क पड़ता की अब वो साथ नहीं हैं। कुछ लोग तो बस हवा के झोंके की तरह जिंदगी में आते हैं, अपनी खुशबू से जीवन महकाते हैं, यादों के रंगीन और खुशनुमा अहसास छोड़ जाते हैं... आत्मा तक अपनी छाप छोड़ जाते हैं...मोगरे के फूलों की तरह। 

जिंदगी बस इत्ती सी है, कागज के छोटे से गुलाबी पन्ने की तरह, और इस छोटे से पन्ने में अपनी कहानी लिख जानी होती है, और वो अपनी कहानी लिख गए।

💐💐💐

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...