शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

उनमुनि अवस्था...💐

कहते हैं जो संतजन होते हैं वो सुख, दुख, माया, मोह, तृष्णा, अहंकार, आशा, निराशा, अंधकार और प्रकाश आदि के बंधनों से ऊपर उठ जाते हैं। उनका जीवन एक निश्चित ऊँचाई पर पहुंचकर स्थिर हो जाता है। वो सतत साहब के नाम स्मरण की साधना और तप के बल पर तन, मन और इन्द्रियों से अपनी आत्मा को अप्रभावित बना लेते हैं। उनका जीवन हर परिस्थिति में एकरस परमात्मा के इर्दगिर्द, अनहद के संगीत तले, उनमुनि अवस्था में प्रतिक्षण गुंजित होकर चलता रहता है। जिसे सामान्यतः मुक्ति की अवस्था कहा जाता है, मोक्ष की अवस्था कहा जाता है। 

इस अवस्था में सामान्य मानव में परमात्मा तत्व का अवतरण, मिलन होता है तथा उसका जीवन दिव्यता की अलौकिक महक से सुवासित हो उठता है। यह परम् चेतना की अवस्था होती है, एक अनकहे गहरे बोध की अवस्था होती है, अनूठी और दिव्य जागृति की अवस्था होती है। वह परमात्मा को नितप्रति, प्रतिक्षण अपने आसपास साए की तरह महसूस करता है। वह अपना जीवन परमात्मा के चरणों में अर्पित कर देता है। 

धन्य हैं ऐसे लोग जिनके जीवन में परमात्मा का अवतरण हुआ, जिन्हें साहब का परिचय प्राप्त हुआ, उनका बोध हुआ। जो साहब की राह में आगे बढ़ गए, जो साहब की राह में आगे बढ़ रहे हैं, और जो साहब की राह में आगे बढ़ने की चाह रखते हैं, उनकी राहों में सादर प्रेम पुष्प अर्पित...💐💐💐

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प्रेम पत्र ... साहब के नाम 💐💐💐

वर्ष 2008 संस्मरण...💐

गंभीर पेटदर्द और अनिद्रा से परेशान था। मेकाहारा अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डॉ. मनोज की देखरेख में भर्ती था। लगता था जिंदगी के दिन बहुत थोड़े बचे हैं। दर्द भरे जीवन से ऊब चुका था और अब जीवन का साथ छोड़ मृत्यु को सहर्ष स्वीकार करना चाहता था। आँसू सुख चुके थे, हृदय पथरा सा गया था, गला सुख रहा था। उस पल बस एक ही इक्छा बार बार हो रही थी कि बस अंतिम बार साहब के दर्शन कर लूं, उन्हें कह दूं कि मुझे इस दर्दभरे संसार के बंधनों को छुड़ाकर अपने लोक ले जाएं और मेरे जाने के बाद अपने करकमलों से मेरी चौका कर देवें।

डॉ. मनोज के चरणों मे विनती कर दो घण्टे के लिए मेकाहारा अस्पताल से छुट्टी ली और दर्द से कराहते ऑटो में बैठकर साहब के आवास प्रकाश कुंज कटोरा तालाब पहुंच गया। वहां किसी संत ने मुझे बताया कि साहब अभी नहीं हैं, उनसे मुकालात नहीं हो पाएगी। लेकिन उन्होंने मुझे साहब का प्रसाद और चरणामृत दिया, उनके चरणों में माथा टेककर वापिस अस्पताल लौट आया। चरणामृत और प्रसाद पाकर मुझे गहरी तृप्ति की अनुभूति हुई, लगा जैसे साहब ही मुझे मिल गए हों।

रात को रोते हुए अस्पताल की बिस्तर पर साहब के नाम प्रेम पत्र लिखा। जिसमें मन के भाव, उनके लिए तड़प, बेचैनी लिखी। लिखा कि जब जीवन की शाम हो तो उनके चरणों में हो। उन्हें लिखते लिखते कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला।

मैं बारह दिन अस्पताल में रहा, रोज साहब को प्रेम पत्र लिखता रहा। उन्हें लिखते लिखते अपनी पीड़ा भूल जाता, साहब में लीन हो जाया करता। समय के साथ मेरी बीमारी ठीक होने लगा, लेकिन अफसोस कि वो प्रेम पत्र कभी साहब तक पहुंच नहीं पाए। हाँ, पर आज फेसबुक के माध्यम से साहब को प्रेम पत्र लिखता हूँ, और वो मेरे प्यार भरे खत, मेरी तड़प, बेचैनी पढ़ते हैं।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...