दामाखेड़ा शोभायात्रा के समय साहब का दूर से दर्शन करते हैं, उन्हें साहेब बंदगी साहेब कहते हैं। जैसे सबको लगता है कि साहब ने उसे दूर से, विशाल भीड़ के बीच भी देख लिया और उसकी बंदगी स्वीकार कर ली है।
आज मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि साहब ने उस विशाल भीड़ में भी मुझे देख लिया, उनकी नजरें मुझ पर पड़ी और मेरी बंदगी स्वीकार कर ली। मन गदगद हो उठा है, लगता है आज खुशी के मारे नींद नहीं आएगी।
जो जो आज दामाखेड़ा आएं हैं, शायद सबकी यही मनःस्थिति होगी। है न दोस्तों?
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सच में ऐसा ही होता है, जब तक साहब हमे नहीं देखते ऐसा लगता है कि सब व्यर्थ है, मन में जो आनंद होता है, उत्साह होता है सब मिट जाता है, लेकिन जैसे ही साहब की नजरे हम पर पड़ती है, बहुत उत्साह आ जाता है, मन ही मन नाचने लग जाते है🎉
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