"ज्ञान का घमंड हो गया है।"
भक्ति की बात कहता हूं तो कहते हैं-
"भक्ति का ढोंग कर रहे हो।"
जब प्रेम की बात कहता हूँ तो कहते हैं-
"आशिक बने फिरते हो।"
सामाजिक मुद्दों पर कुछ कहता हूँ तो कहते हैं-
"तू अपना घर देख, फालतू का भाषण मत दे।"
राजनीति की बात करता हूँ तो कहते हैं-
"सरकारी नौकर हो, किसी दिन नौकरी चली जाएगी।"
इन सब बातों से भला क्या फर्क पड़ता है। लोग तो कहेंगे ही, कुछ न कुछ कहते ही हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें