विपरीत परिस्थिति थी, सांसे उखड़ रही थी। अस्पताल के बिस्तर पर निढाल पड़े आंसू छलक रहे थे। मन ने स्वीकार कर लिया था कि अब यह देश छोड़ जाना है। शादी को एक सप्ताह हुए थे, नई नवेली पत्नी घूंघट में पास बैठे फफक रही थी। परिवार के लोग भी हार मान चुके थे। सब लोग समय की नाजुकता समझ चुके थे।
समाचार सुनकर सफेद लिबाश में दो संतों का अस्पताल के बिस्तर पर आगमन हुआ। पान परवाना और नारियल प्रसाद देते हुए बताया कि ये उस नारियल का प्रसाद है जिसे साहब ने अपने गुरु पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब को समाधि मंदिर में भेंट किया था।
उन्होंने बताया कि हम अपने साहब को बड़ी गहराई और श्रद्धा से नारियल भेंट करते हैं। तो सोचो साहब अपने पिता को, अपने गुरु को, अपने साहब को किस गहराई और किस शिखर से नारियल भेंट करते होंगे। सोचो उस नारियल की क्या महिमा होगी जिसे साहब अपने साहब को भेंट करते होंगे। और वो नारियल हमें मिल जाए, उस नारियल का प्रसाद हमें मिल जाए तो जीवन बदल जाता है। अस्पताल में उसने साहब का चरणामृत और प्रसाद लिया, संतों को दंडवत बंदगी किया। तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी हो गई।
तब से वो जब भी दामाखेड़ा जाता है समाधि मंदिर में साहब द्वारा पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब को भेंट किए गए नारियल की चुपके से चोरी करता है।
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