उनका आकर्षक ही कुछ ऐसा है कि मन नहीं भरता। उनके दमकते ओजमयी चेहरे से नजर हटाने का मन नहीं करता। मैं जब भी उनके दर्शन बंदगी करके लौटा, हर बार प्यास बढ़ती ही गई, मन की प्यास कभी बुझी ही नहीं। बल्कि और... और... और बढ़ती ही गई। हर बार लगता है दर्शन में कुछ कमी रह गई, कुछ बाकी रह गया। एक अनजाना अव्यक्त अहसास, एक रिक्तता का बोध सदैव दिल में रह जाया करता है।
कहने को बहुत कुछ है, लेकिन जब वो सामने आते हैं हृदय गहरी चूप्पी से भर जाता है, नयन रो पड़ते हैं, होंठ लड़खड़ाने लगते हैं। दिल का दर्द लिए वापिस घर की ओर लौट पड़ता हूँ।
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