सोमवार, 5 जुलाई 2021

शुक्रिया साहब ...💐

एक वो ही तो होते हैं जब मैं नहीं होता। एकांत के उस पल में अस्तित्व पर छाए होते हैं। उस घड़ी, उस पल उनके आने की आहट से हृदय जोरों से धड़क उठता है, गला भर जाता है, आंखें छलक उठती हैं। वीरान और मरुस्थल जीवन में उनकी अमृत बूंदें अंतःकरण को सींच जाती हैं। इस अनुभूति से हृदय का कोना कोना हरित हो उठता है, जाग उठता है। विरह के बाद के इस मिलन में जीवन को ताजगी मिलती है, उनका एहसास मिलता है, उनकी छुअन मिलती है।

जब कभी भीतर गहरी चुप्पी में उतरकर उन्हें देखता हूँ, हर बार वो कोई न कोई नई बात बता जाते हैं, कानों में धीरे से कोई नई कहानी कह जाते हैं। ये उनकी कृपा रूपी अमृत वर्षा मुझे और गहरे उतरने की प्रेरणा देते हैं।

आंखें खुली हो या बंद, बस उन्हें देखना चाहता हूं, उन्हें जीना चाहता हूँ। उनके बगैर जीना व्यर्थ लगता है। वो हैं तो मैं हूँ, वो हैं तो जीवन में नुतनपन है, वो हैं तभी जीवन में रवानगी है। उनसे अलग हो पाना अब संभव ही नहीं है। मेरे इस वीरान से जीवन को अपनी अनुभूति से सराबोर करने के लिए, सफर पर मेरे साथ साथ चलने के लिए और अनजानी राहों में मेरा हाथ थामने के लिए शुक्रिया। शुक्रिया साहब ...💐

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