बाहर से ऐसे लोग घोर आध्यात्मिक दिखाई देते हैं लेकिन अंदर ही अंदर अहंकार पल रहा होता है। उनकी आंतरिक भावना यही होती है कि आज तक जिन लोगों ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया उन सबको अब सिद्धियों के द्वारा अपना मूल्य दिखा सकता हूँ। यह सोच केवल अंहकार प्रतिबिंबित करता है। सिद्धियों के मार्ग पर चलते हुए ऐसी सोच रखना असली अध्यात्मिकता नहीं है।
आज के सामाजिक ढांचे में लोग बाहरी वेशभूषा और दिखावे के आधार पर तय करते हैं कि सामने वाला व्यक्ति आध्यात्मिक है या नहीं। किंतु यह आध्यात्मिकता का गलत आधार है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें