सुबह भोर होने के पहले, आसमान की लालिमा युक्त आभा के पहले बिस्तर छोड़ देना, शाम की गोधूलि बेला में गांव के तालाब के पास दोस्तों के साथ बैठकर ठहाके लगाना, एकांत में बैठकर दुनियादारी, राजनीति, अध्यात्म की चर्चा करना... वो दिन याद आते हैं।
वो लोग जो सफर में पीछे छूट गए, कहीं रह गए, परिस्थितियों ने जिन्हें दूर कर दिया, याद आ रहे हैं। कई चेहरे जिन्हें भुला दिया और कई जिन्हें हृदय में बसा लिया, याद आ रहे हैं।
वक्त का पहिया किसी की प्रतिक्षा नहीं करता, किसी के लिए नहीं रुकता। चाहे व्यक्ति धनाढ्य हो या दरिद्र, जो लम्हा बीत गया वो वापस नहीं आता, जो सफर पर छूट गया वो फिर नहीं मिलता। इसलिए चंद साँसे जो बाकी हैं उन्हें भरपूर जी लेना ही बुद्धिमत्ता है।
आज बीते दिनों की बड़ी याद आ रही है।
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