शनिवार, 25 दिसंबर 2021

साहब की खोज ...💐

मैं पहले साहब की खोज में हर किसी के पैर पकड़ लेता था कि मुझे भी साहब दिखा दो, उनका दर्शन करा दो, मार्ग बता दो। लेकिन किसी का उत्तर, मार्गदर्शन, सलाह मुझे जँचता नहीं था। मेरी जिज्ञासा पर, मेरे प्रश्नों पर वो लोग ग्रन्थों और साहब की वाणियों को दोहों चौपाइयों के माध्यम से समझाया करते थे। जो मेरे सिर के ऊपर से बाउंस जाता था।

अनेकों बार अपनी समस्याओं को लेकर, ध्यान और सुमिरण से संबंधित प्रश्नों को लेकर साहब से मिलने दामाखेड़ा अथवा रायपुर निकल पड़ता था। इस दौरान अब तक चार बार मेरी मुलाकात डॉ Bhanupratap Goswami साहब से हुई। उनके चरणों में पहुंचते ही मैं सिसक सिसककर रो पड़ता, कुछ कह ही नहीं पाता, कुछ पूछ ही नहीं पाता। अपने प्रश्न, अपनी जिज्ञासा भूल जाता। सिर्फ आंखों से आँसू बहते थे।

सन 2009 रायपुर में जब चौथी मुलाकात के लिए उनके सामने पहुंचा तो इस बार भी आँखें छलक उठीं। कुछ कह नहीं सका। लेकिन वो मुझे पहचान गए। साहब ने कहा - "जब भी आते हो रोते ही रहते हो, आखिर क्या चाहते हो तुम।" तो मैंने सुमिरण ध्यान करने की विधि उनसे पूछी। उन्होंने मुझे सुमिरण ध्यान करने की विधि बताई। साथ में उन्होंने एक दवाई खाने को दी, जिसे पंचम साहब ने पास के मेडिकल स्टोर से लाया था।

अब वो समय निकल चुका, आज मैं साहब से हुई मेरी उस चौथी मुलाकात के बारे में सोचता हूँ, उस क्षण को याद करता हूँ, उनके प्रश्न को याद करता हूँ, उन्होंने पूछा था - "आखिर क्या चाहते हो तुम?" तो लगता है मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। जब स्वयं गुरु अपने शिष्य से पूछे, स्वयं परमात्मा अपने भक्त से पूछे कि तुम क्या चाहते हो, तो मैंने राजपाट क्यों नहीं मांग ली, अम्बानी अडानी की जिंदगी क्यों नहीं मांग ली, राजसी ऐशो आराम क्यों नहीं मांग ली, अच्छा स्वास्थ्य क्यों नहीं मांगी, अमरता क्यों नहीं मांगी, जीते जी मुक्ति क्यों नहीं मांगी। कम से कम इस फटीचर सी जिंदगी से तो छुटकारा मिलता।

💐💐💐

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरी तन्हाई 💐💐💐

तन्हाई केवल एक एहसास नहीं, बल्कि एक ऐसी गहरी दुनिया है जहाँ कोई और नहीं, बस आप और आपकी सोच होती है। यह एक खाली कमरा नहीं, बल्कि एक भरी हुई क...