सोमवार, 20 दिसंबर 2021

साहब की छाँव में जी लें ...💐

जीवन जैसा भी हो चलता ही रहता है, समय किसी के लिए रूकता नहीं। जीवन के इस सफर में कई अपनों से हमारा साथ छूट जाता है। कुछ का साथ आज छूटता है तो कुछ का कल और कुछ का परसों। मेरी भी बारी आएगी एक दिन, मैं भी नहीं रहूंगा। जिन्हें मैं अपना कहता हूं उनसे बिछड़कर कहीं दूर साहब के देश अनजाने सफर पर निकल जाऊंगा।

करीब 16 बरस की उमर से ही जिंदगी दर्द से आबाद रही है। हर महीने लगभग चार पांच दिन अस्पताल में बिताते हुए जिंदगी गुजरी है। बिना दर्द के एक दिन भी नहीं गुजरता। आज भी दिनभर में 15 गोलियां, 2 इंजेक्शन के सहारे सांसे चल रही है। अनेकों बार मृत्यु मुझे करीब से छूकर निकली है। लेकिन बार बार मैं बच जाऊँ, ये संभव नहीं है। कभी न कभी मैं भी उसकी चपेट में आऊंगा ही।

मेरा उद्देश्य आप सब को अपनी पीड़ा, स्वास्थ्यगत समस्या बताना नहीं है। मेरा उद्देश्य केवल जीवन की सत्यता का बोध कराना मात्र है। ये जीवन मानो रेत की दीवार है, जो न जाने कब एक हलकी सी हवा के झोंके से भरभराकर गिर जाए। इसलिए समय रहते जाग जाएं, परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस मानव जीवन को साहब की छाँव में भरपूर जी लें।

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