गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019
चहुँओर साहब की अनुभूति...💐
बुधवार, 30 अक्टूबर 2019
तर्क कुतर्क...💐
संतों का कठोर जीवन...💐
मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019
28 बरस का वह नवयुवक...💐
प्रियतम से मिलन...💐
सोमवार, 28 अक्टूबर 2019
नशा उतार दिया...💐
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019
चलो दिवाली मनाएं...💐
सिर्फ भाव हैं, ज्ञान नहीं...💐
बुधवार, 23 अक्टूबर 2019
सदगुरु कबीर और धर्मनि आमीन...💐
मेरी पुकार की सार्थकता...💐
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019
उन दिनों की बात है...💐
कोमल भावनाएं...💐
सोमवार, 21 अक्टूबर 2019
साहब से मोहब्बत कर लो...💐
रविवार, 20 अक्टूबर 2019
उनके लिए जीऊं उनके लिए मरूँ...💐
जीवन की अतल गहराई...💐
मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019
सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा के उत्सव पर्व...💐
सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा का माघी मेला, दशहरा पर्व, बसंत पंचमी के इंद्रधनुषी रंग मुझे बचपन से अपनी ओर खींचते रहे हैं। मेरे लिए इन उत्सवों और रंगों के अनेकों गहरे मायने हैं। दामाखेड़ा इन उत्सवों और पर्वों में जीवंत हो उठता है, सत्यनाम की महक से चारों दिशाएँ सुवासित हो उठती है, जनजीवन उल्लासित और प्रफुल्लित हो उठता है। हर पर्व का सीधा संबंध हृदय से है, आस्था से है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का है।
दामाखेड़ा के इन उत्सवों में कोई अपने को खोजने आता है, कोई साहब को खोजने आता है। कोई अपनी मुक्ति के लिए आता है तो कोई साथ छोड़ गए अपने परिजन की मुक्ति के लिए आता है। कोई गुरु की तलाश में आता है तो कोई अपने गुरु, अपने साहब के दर्शन बंदगी और प्रसाद के लिए आता है। कहीं साहब और उनकी वाणियों को लेकर गंभीर चर्चाएं होती है तो कहीं कोई अल्हड़ संत भजन के माध्यम से साहब की अनुभूतियों में डूबा हुआ होता है। कोई सेवा करने आता है, तो कोई आनंद मनाने। कोई दो वक्त का पेट भरने आता है तो कोई बाजार लगाकर अपनों के दो वक्त का पेट भरने आता है। कहीं दोस्तों की टोली चाय के ठेलों के पास मस्ती में लीन रहते हैं, वहीं बच्चों की नजर खिलौने, नए कपड़े, पानीपुरी और चाट की दुकानों पर टिकी होती है, तो कहीं कोई युगल प्रेमी हाथों में हाथ लिए गलियों में उन्मुक्त उड़ान भर रहे होते हैं।
इन्हीं इंद्रधनुषी रंगों से लबरेज दामाखेड़ा की यादें हैं। ये यादें बड़ी गहरी हैं, ये संस्मरण बड़े ताजे हैं, मीठे हैं। एक तरफ तो ये पर्व, ये उत्सव और मेलों की स्मृतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सहज संस्कार के रूप में प्रसारित हो रही है। वहीं दूसरी तरफ साहब की मनभावन वाणियों के माध्यम से, तो कहीं पान परवाना के माध्यम से धरती के कोने कोने तक पहुंच रही है। उत्सव के इन लम्हों को जीने के लिए समाज के हर वर्ग के लोग आते हैं, सामाजिक और धरातलीय सीमाओं को पीछे छोड़कर लोग इसका हिस्सा बनते है, समरसता का प्रसार होता है, लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं, परमात्मा से जुड़ते हैं। दामाखेड़ा के ये पर्व, ये उत्सव, ये मेले जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं, जीवन का सही मायने बताते हैं।
आज साहब के अवतरण दिवस विजयदशमी पर दामाखेड़ा में नहीं हूँ, लेकिन मेरा पूरा परिवार वहां उपस्थित हैं। घर पर अकेले दूर बैठे कल्पनाओं के माध्यम से ही महसूस कर रहा हूँ कि वहां ये हो रहा होगा, वो हो रहा होगा, सबको बड़ा आनंद आ रहा होगा... खासकर दामाखेड़ा के भोजन प्रसाद को याद कर रहा हूँ। वहां की कल्पनाओं के अहसासों से ही मन गदगद है।
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बुधवार, 2 अक्टूबर 2019
इशारों में कहिए...💐
कहते हैं परमात्मा की उपस्थिति तो हर जगह है, जगत के प्रत्येक रूप में है। वो सूक्ष्म में भी है और स्थूल में भी। वो पवन में भी है और निर्वात में, वो जड़ में भी है और चेतन में भी। वो हर अणु में है और हर परमाणु में भी। वो दृश्य में भी है और अदृश्य में भी।
जब वो संसार के हर प्राणी में मौजूद हैं, हर किसी के अस्तित्व में मौजूद है, ब्रम्हांड के हर रूप में उसकी उपस्थिति है, जब वो सार्वभौम हैं तो उनकी बात छुपाकर क्यों की जाती है? उनकी बात धीमी आवाज में क्यों बताई जाती है? उनके बारे में हर कोई इशारों में ही क्यों कहता है? जबकि हर कोई उनके बारे में जानना चाहता, उन्हें हर कोई छूकर देखना चाहता है, रहस्यों के पार झांकना चाहता है, पर्दे के पीछे छुपे राज को जानना चाहता है।
अधिकतर लोग कहते हैं परमात्मा की बात खुलकर सार्वजनिक रूप से नहीं करनी चाहिए, इशारों में बता देना चाहिए और इशारों में समझ लेना चाहिए, राज को राज ही रखना चाहिए। लोग शायद सही कहते हैं।
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वो मेरी दशा पर मुस्कराते हैं...💐
वो कहते हैं "जो हो रहा है उसका आनंद लो।" अब उन्हें कैसे बताऊं कि वहां कोई आनंद नहीं है, कोई मजा नहीं है, बल्कि वहां तो आंसू ही आंसू है, तड़प ही तड़प है, सजा ही सजा है।
भगवान कसम वो मेरा एक मिनट के लिए भी पीछा ही नहीं छोड़ते। मेरे साथ खाते हैं, मेरे साथ सोते हैं, मेरे साथ ऑफिस जाते हैं, मेरा काम भी वही करते हैं। रात रातभर मुझे जगाए रहते हैं, बिना बुलाए वो सपने में भी चले आते हैं, यहां तक कि टॉयलेट में भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। बहुत कोशिश करता हूँ कि उनसे पीछा छूट जाए, वो मेरे पीछे न आएं। लेकिन वो तो मेरी परछाई बनकर मुझसे चिपके हुए हैं, कभी अलग ही नहीं होते।
यार कोई ताबीज बताओ, कोई मंतर बताओ, कोई उपाय बताओ, कोई तो तरीका बताओ कि वो मेरे पीछे न आएं। कम से कम सुकून से चार पल सो तो सकूँ, शरीर सूखकर कांटा हो गया है। उन्हें मेरे ऊपर बिल्कुल भी तरस नहीं आता। ऊपर से मेरी दशा पर वो मुस्कुराते हैं, मजा लेते हैं।
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रविवार, 29 सितंबर 2019
पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब मेरे परमात्मा...💐
अक्सर लोग कहा करते हैं कि हर व्यक्ति के अंदर परमात्मा होता है, लेकिन अज्ञानतावश वह अपने भीतर के परमात्मा से अंजान रहता है। यह भी कहा जाता है आत्मा ही परमात्मा है। अपने आप से जुड़ने पर, अपने आत्मा का साक्षात्कार करने पर खुद के भीतर उपस्थित परमात्मा तत्व से परिचय प्राप्त हो जाता है।
लेकिन मैं लंबे समय से दुविधा में हूँ। मुझे ऐसा नहीं लगता कि आत्मा ही परमात्मा है। अभी तक मैं यही मानता हूं कि परमात्मा कोई और है, कोई और ही तत्व है, जो अपने से अलग है, अपने से जुदा और भिन्न है।
चूंकि जिनकी नाद कानों में पड़ती है, जिनकी मधुर आवाज हृदय में उतरती है, जो इन आँखों से जगत के सतरंगी दृश्य दिखाते हैं, जो हर पल साथ चलते हैं, परछाई बनकर पीछा करते हैं, वो तो साहब ही हैं। इसलिए साहब ही परमात्मा हैं, उनके अलावा किसी और को परमात्मा मानने से मेरा मन इंकार कर देता है। स्वयं के अंदर परमात्मा तत्व के होने की बात मुझे समझ में नहीं आती।
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शनिवार, 28 सितंबर 2019
ताज पर उंगली मत उठाओ...💐
क्या यार... छोटी छोटी बातों में पीढियां गिना देते हो, तलवार निकाल लेते हो। जो बात समझ नहीं आती, या किसी पोस्ट के विषय में आप नहीं जानते तो उस पर कमेंट ही क्यों करते हो?
बड़े गुरुर से अपने को उसी एक बरगद की शाखा समझते थे, परिवार का हिस्सा समझते थे। जिसकी छांव में अब तक जिंदगी गुजारी, पीढियां गुजारी। आज उसी बरगद की जड़ों को खोदना चाहते हो, उसी परिवार से अलग होने की बात करते हो।
एक बात समझ लो कि परिवार का मुखिया हमेशा परिवार को एकसूत्र में जोड़े रखना चाहता है, सबको खुश देखना चाहता है। वो तो हर डाली, हर फूल और हर पत्तों को अपने शरीर का अंग समझकर खून से सींचता है। जब वो कुछ कहता है तो किसी एक के लिए नहीं कहता, बल्कि सबकी बात कहता है, सबके भले के लिए कहता है। मुखिया को हर जायज और नाजायज बात पर नाराज होने का हक़ है, डांटने का हक़ है। उनकी हर बात परिवार के सभी सदस्यों के लिए शिरोधार्य होनी चाहिए।
एक बात और समझ लो कि ताज पर उँगली उठाने वाले कितनों आए और कितनों खाक हो गए। लेकिन ताज को हिला भी न सके। वो तो रूहानी है, पारलौकिक है।
शुक्रवार, 27 सितंबर 2019
सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन...💐
सद्गुरु के चरण जब आमिन माता और धनी धर्मदास साहब के आँगन में पड़ते हैं तो उनके हृदय के भाव आँसुओ के रूप में छलक पड़ते हैं। न जाने वह कैसा समर्पण रहा होगा, न जाने उनकी भक्ति की पराकाष्ठा कैसी रही होगी। सद्गुरु से ऐसा प्रेम आमिन माता साहिबा और धनी धर्मदास साहब जैसे गृहस्थ ही कर सकते हैं।
सद्गुरु के प्रति उनके गहरे भाव, उनका अनुराग, उनका समर्पण शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जब भी सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन के गहरे आत्मीय संबंधों की कल्पना करता हूँ, सिहर उठता हूँ, तिलमिला जाता हूँ।
उनका सद्गुरु के प्रति भाव, उनका सद्गुरु के प्रति आश्रित जीवन सोचने पर विवश कर देता है कि मेरा जीवन कहाँ है? क्या मैं उनके मार्ग पर चल रहा हूँ? क्या मैं उनकी तरह सद्गुरु के चरणों में जीवन रख सकता हूँ? और मेरा उत्तर "न" में आता है।
चूँकि हम सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन की परंपरा को अपना आदर्श मानते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, तो अपने साहब की छोटी छोटी बातों को शिरोधार्य करने में क्यों हिचकिचाते हैं? जबकि वो हमें जीवन के बंधनों से मुक्त कर अपने लोक "सत्यलोक" ले जाने के लिए ही इस धरा में अवतरित हुए हैं।
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रविवार, 22 सितंबर 2019
कथनी और करनी में भेद...💐
कहने और करने में बड़ा फर्क होता है भैया। ज्ञान तो अथाह है, और ज्ञानी शब्दों की खिचड़ी बनाकर सबको परोसते रहता है, डींगे हांकते रहता है। लेकिन जिसे उस ज्ञान के अनुसार जीना है, उस ज्ञान को जीवन में उतारना है, उसके लिए आसान नहीं होता, बेचारे का तेल निकल जाता है, भर्ता बन जाता है।
कहने वाला कुछ भी कह देता है, कुछ भी सलाह दे देता है। लेकिन जिसे उस सलाह के अनुसार ज्ञान को धारण करके जीना है, उसके लिए बहुत कठिन है मेरे भैया। वैसे भी धर्म और अध्यात्म अब बाजार की वस्तु बन गई। कुछ लोग इसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग भी करते हैं। इसलिए ऐरे-गैरे आदमी की बात मानकर उसके जाल में नहीं फँसना चाहिए।
पनघट का रास्ता बड़ा कठिन है, बेहद दुर्गम है। रास्ते से भटकाने वालों की लंबी फेहरिस्त है। जिसे देखो वही गुरूवाई करने पर उतारू है। इसलिए सावधानी से आगे बढ़ो, कदम फूंक-फूंककर कदम बढ़ाओ। मार्ग में कोई भी बाधा आए या कोई भी रुकावट आए तो सीधे ताज से मार्ग पूछो, सीधे उनके शरणागत हो जाओ, वो हाथ थाम लेंगे...।
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शनिवार, 31 अगस्त 2019
साहब की खोज...💐
मन में हजारों प्रश्न थे, अनेकों जिज्ञासाएं थी। एक ही घण्टे में सारे प्रश्नों के उत्तर जान लेना चाहता था। जो मिलता उसी के पैर पकड़ लेता, पूछता... क्या आपने परमात्मा को देखा है? मुझे भी परमात्मा से मिला दो, मुझे भी उनके दर्शन करा दो भले ही ये जीवन ले लो। लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला जो मेरा हाथ परमात्मा के हाथ में थमा दे।
न जाने कितने ही किताबों और ग्रंथों के पन्ने पलटे, न जाने कितने ही मंदिरों की घंटियां बजाई, न जाने कितने ही आंसू बहाए। परमात्मा की खोज में दर दर की ठोकरें खाई, रात रात भर भूखे प्यासे तन्हाई में गुजारी। उनकी खोज में जिंदगी का कतरा कतरा तिनका तिनका झोंक दिया, फिर एक दिन होश हवास भी खो बैठा। खोज ऐसी, लगन ऐसी की परमात्मा के बदले हर कीमत चुकाने को तैयार...।
धीरे धीरे उदासी और हताशा हावी होने लगी, सारी आशाएं निराशा में बदलने लगी। अश्रु धारा रोके नहीं रुकते...। कुछ समझ नहीं आता, परमात्मा तक पहुंचने का कोई मार्ग नहीं सूझता। तंग आकर सबकुछ छोड़ दिया, अपने को कमरे में बंद कर लिया। साहब की तस्वीर बांहों में लेकर कई दिनों तक रोता रहा। प्रण था कि जब तक साहब तस्वीर से बाहर नहीं निकलते तब तक मैं कमरे से बाहर नहीं निकलूंगा।
आज पीछे पलटकर देखता हूँ, सफर की यादें....। सांसे महक उठी हैं, वीरान जिंदगी में उन्होंने अपनी लालिमा भर दी है, पतझड़ और रेगिस्तान में रंग बिरंगे फूल खिला दिए, अपने उजले और विहंगम स्वरूप से परिचय करा दिए। जी चाहता है उन्हीं के लिए जिऊँ और उन्हीं के लिए मरूँ...
गुरुवार, 22 अगस्त 2019
स्वतः संस्कार...
पत्नी रोज शाम होते ही अगरबत्ती जलाकर संध्यापाठ के शब्दों को दुहराती रहती है। विगत दस बरसों से रोज नित्य रूप से यही क्रिया अनवरत जारी है। उसे कुछ समझ आए या न आए लेकिन प्रतिदिन हर हाल में किसी कठोर व्रत की तरह नियमपूर्वक संध्यापाठ और आरती करती ही है।
बड़े लंबे समय से उसके इस नियम का घोर विरोधी रहा हूं। लेकिन एक दिन देखा की मेरे दोनों बच्चे भी संध्या पाठ और आरती में शामिल हो रहे हैं, ग्रंथों को आदर दे रहे हैं, सहजता से संस्कारित हो रहे हैं, स्वतः ही दीक्षित हो रहे हैं। तब से पत्नी के इस कठोर नियम का मैं भी समर्थक हो गया।
लेकिन बड़े दुख की बात है कि पिछले दस बरसों से मेरी गाड़ी संध्यापाठ के पहले पन्ने से ही आगे नहीं बढ़ सकी है।
बुधवार, 21 अगस्त 2019
आँसुओ में व्यक्त...💐
जो इन्द्रियातीत है उसका वर्णन तो प्रतीक चिन्हों से ही हो सकता है, इशारों से ही हो सकता है। क्योंकि हमारी भाषा के पास उन चीजों के लिए शब्द ही नही है, हमारे मस्तिष्क और ज्ञान चक्षुओं के पास इतनी समझ ही नहीं है कि वो इन्द्रियो से परे की बातों को कह सके, जाहिर कर सके।
अब सवाल यह पैदा होता है कि जो उस परम सत्ता परमात्मा का वर्णन कर रहा है, उन्होनें खुद उसकी झलक पाई है या नही। लेकिन इस दुनिया मे जिसे देखो वही ऐसा व्यवहार करता है जैसे की वह सर्वज्ञ हो, जैसे कि वह परमात्मा के बारे में सब कुछ जानता हो, जैसे कि उसे सारी सृष्टि की जानकारी हो।
परमात्मा की बनाई सृष्टि, उनकी हर रचना, उनकी प्रत्येक कृति अबूझ रहस्यों से भरी पड़ी है। वो अज्ञात है, अज्ञेय है, अनादिकाल से परदे के पीछे छिपा है। जो अज्ञेय हो, उनके विषय में क्या कहा जाए और कैसे कहा जाए? जिसने भी उनका हल्का स्पर्श पाया, सिर्फ आँसुओ में व्यक्त कर पाया...
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सोमवार, 19 अगस्त 2019
पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब की छाप...💐
दोस्तों, कभी कभी फेसबुक पर पंडिताई कर लिया करता हूँ। फेसबुक पर लिखकर मन की भड़ास निकाल लिया करता हूँ। मेरे लिखे शब्दों को ज्यादा सीरियस न लिया करें। क्योंकि सिर्फ "लिखना" और "जीकर लिखने" में फर्क होता है, और मैं सिर्फ लिखता हूँ।
कुछ मित्रगण कहते हैं कि मेरे शब्दों में पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब की भीनी खुशबू आती है। दरअसल मेरे लेख में नया कुछ नहीं है। मेरे लेख में जो भी शब्द होते हैं, जो भी भाव होते है, वो पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब के अजर अमर ग्रंथ "अमृत कलश" से प्रेरित होते हैं। इसलिए शब्दों के भाव हृदय को छूते हैं, इसलिए शब्दों के भाव में हर कोई अपने को जोड़ लेता है।
पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब के व्यक्तित्व की शैली ही अनूठी थी, हर कोई उनसे अपना रिश्ता जोड़ लेता था, हर कोई उनके आकर्षक में बंध जाता था। मेरा बचपन उन्हीं की कहानियां सुनते हुए बीता, जवानी उन्हें ही पढ़ते हुए बीती। अतः मेरे लेख पर, जीवन और अस्तित्व पर उनकी छाप स्वाभाविक ही है।
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रविवार, 18 अगस्त 2019
उनकी राह में जीवन खप जाए...💐
कई चीजें निःशब्द ही दी और ली जाती हैं। आशीर्वाद, कृपा, उपकार जैसे शब्द उनमें से एक हैं, जिन्हें निःशब्द लिया और दिया जाता है। फेसबुक के किसी पोस्ट पर साहब का लाईक या कमेंट उनके निःशब्द आशीर्वाद और कृपा की तरह हैं। जो समय समय पर हमें प्राप्त होते रहा है।
फेसबुक पर उनका लाईक और कमेंट विटामिन की गोलियों की तरह सकारात्मक असर पैदा करती है, जो जीवन को सीधे और प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। उनके लाइक और कमेंट से प्रेरणा मिलती है, कुछ कदम उनकी ओर और बढ़ाने की ताकत मिलती है। संस्कारों का परिष्करण होता है, जिससे जीवन जाग उठता है, दिनचर्या में ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है। उनके छुअन से अस्तित्व महक उठता है। ध्यान उनकी ओर लगे रहता है।
मेरे फेसबुक पोस्ट पर उनका लाईक और कमेंट जीवन भर की जमा पूंजी है। जिन्हें अनेकों बार पढ़ता हूँ, उनके शब्दों को जीवन में गढ़ता हूँ, उन्हें जीने की कोशिश करता हूँ। लाईक और कमेंट रूपी उनकी कृपा, और महाप्रसाद मुझे निरंतर निःशब्द रूप में प्राप्त हो रहा है।
आंसुओं को शब्दों में बयान करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है। लेकिन उनसे कहना चाहता हूं की उनकी प्रतीक्षा में जीवन ढल जाए, उनकी राह में जीवन जर जाए, उनके चरणों में जीवन खप जाए...
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शनिवार, 17 अगस्त 2019
साहब की सहजता...💐
सामान्यतः किसी रिश्तेदार के घर जाते हैं तो चाय ऑफर किया जाता है। अक्सर हम झिझकते हुए चाय पीने से मना करते हैं। जिद होने पर आखिरकार चाय की प्याली उठा ही लेते हैं। अपने घर में रोज कई बार चाय पीते हैं तब मना नहीं करते। परिस्थिति जरा सी क्या बदली हम हिचकने लगते हैं, हम असहज हो जाते है।
किसी संत ने कहा था कि सहजता तब होती है जब हम बिना हिचके, बिना शर्माए, बिना तिरस्कार के, बिना कुछ सोचे विचारे ऑफर की गई चाय पी लेते हैं। चूंकि हम रोज चाय पीते ही हैं तो रिश्तेदार के घर मना क्यों करने लग जाते हैं।
ऐसे छोटे छोटे सहजता के उदाहरण हमारे दैनिक जीवन में रोज सामने आते हैं। सहजता में स्वतः परिस्थिति को स्वीकार लिया है। इस स्वीकारोक्ति में जरा भी बुद्धि लगाने की जरूरत नहीं होती।
इसके उलट अगर हम चाय पीने के आदि होने के बाद भी ऑफर की गई चाय लेने से मना करते हैं तो यह असहजता और अहंकार का द्योतक होता है। दरअसल अहंकार के रूप बेहद महीन होते हैं, जो आसानी से समझ नहीं आते।
गुरुवार, 15 अगस्त 2019
... छोड़ दो💐
पिताजी कहते हैं सुबह चार बजे बिस्तर छोड़ दो, घरवाली कहती है घर मे रुपए छोड़ दो, दोस्त लोग कहते हैं गर्ल फ्रेंड छोड़ दो, स्नेही लोग कहते हैं चाय छोड़ दो, संत लोग कहते हैं लोभ मोह माया छोड़ दो...!
कुछ छोड़ने की जरूरत ही क्यों है यार। घोर कलयुग में पैदा हुआ हूँ, मैं तो कहता हूं सबकुछ पा लो। धन पा लो, पद पा लो, लोभ मोह माया के साथ मुक्ति भी पा लो।
एक ही अवसर है, एक ही जीवन है। राह में जो सरलता और सहजता से मिले स्वीकार कर लो।
बुधवार, 14 अगस्त 2019
पूर्णिमा...💐
आज पूर्णिमा व्रत है। घर में बड़े बुजुर्ग उपवास रखे हैं, सुबह से कुछ नहीं खाए हैं। कहते हैं आज की तिथि बड़ी पावन होती है। जो भी श्रद्धापूर्वक पूर्णिमा व्रत मनाता है, उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती है।
मेरे मन में बचपन से ही पूर्णिमा व्रत को लेकर बड़ी उत्सुकता रही है। उस दिन घर में सुबह चार बजे से ही चहल पहल शुरू हो जाती थी। महिलाएं घर के आंगन को गोबर से लिपती थीं, चौक पूरती थीं, नारियल प्रसाद और आरती तैयार करती थीं, बाड़ी से ताजी सब्जियां लाई जाती थी, सब लोग सुबह से स्नान करके तैयार हो जाते थे। तब पूर्णिमा को किसी उत्सव की तरह मनाया करते थे।
हर पूर्णिमा को बारी बारी से सबके घरों में ग्रंथों का पठन पाठन और भजन सत्संग होता। मोटे मोटे ग्रंथ निकाले जाते। बड़े बुजुर्ग और श्रद्धालुजन पूनो महात्म्य का पाठ करते, सारा दिन घर में भजन और सत्संग होता। घर आंगन आध्यात्मिक सुगंध से सुवासित रहता।
शाम को प्रसाद वितरण होता, ततपश्चात सब लोग एक साथ बैठकर नाना प्रकार के व्यजनों का रसास्वादन करते। भोजन प्रसाद के बाद रात भर फिर सत्संग होता, साहब की बातें होती।
बचपन की पूर्णिमा व्रत की अनुभूतियाँ और दृश्य मन में गहरी समाई हुई है, जिन्हें याद करता हूँ। किसी पूर्णिमा पर मैंने भी कलशे पर एक आरती जलाई थी, जो आज भी प्रज्ज्वलित है...
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गुरुवार, 8 अगस्त 2019
फेसबुक के दोस्तों...💐
फेसबुक के मेरे दोस्तों...कुछ ऐसा कहो कि साहब के प्रति भाव से मेरा भी हृदय भीग जाए, मेरी भी पलकें भीग आए, उनकी छवि दृष्टि पटल पर उभर आए, उनके प्रेम से भर जाऊँ, जीवन में जागरण आ जाए। कुछ तो ऐसी बात बताओ कि साहब ताउम्र के लिए हृदय में उतर आएं।
मैं सुनना चाहता हूं कि आप सबके जीवन में साहब के क्या मायने हैं? मैं सुनना चाहता हूं कि आपके जीवन में साहब ने क्या बदला? मैं जानना चाहता हूं कि आपका जीवन साहब से किस तरह और क्यों प्रभावित है? कुछ तो हुआ होगा, कोई तो घटना रही होगी, कोई तो परिस्थिति ऐसी निर्मित हुई होगी जिससे आपके जीवन में साहब उतर आए होंगे।
साहब से जुड़े जीवन के वो छोटे बड़े किस्से, सुख दुख के लम्हें, वो अमूल्य और परिवर्तनकारी क्षणों को आप सबके माध्यम से महसूस करने का सुख मैं भी लेना चाहता हूं। हो सके तो जरूर शेयर करें...🙏
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मेरी तन्हाई 💐💐💐
तन्हाई केवल एक एहसास नहीं, बल्कि एक ऐसी गहरी दुनिया है जहाँ कोई और नहीं, बस आप और आपकी सोच होती है। यह एक खाली कमरा नहीं, बल्कि एक भरी हुई क...
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सुख और दुख हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। जैसे चलने के दायां और बायां पैर जरूरी है, काम करने के लिए दायां और बायां हाथ जरूरी है, चबाने ...
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जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस। मुझ ही जैसा होय रहो, सब सुख तेरे पास।। कुछ दिनों से साहब की उपरोक्त वाणी मन में घूम रही थी। सोचा उनके जैस...
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पान परवाने का मोल तब समझा जब जिंदगी तबाह होने के कगार पर थी, साँसे उखड़ने को थी। जीवन के उस मुहाने पर सबकुछ दांव पर लगा था, एक एक पल युगों के...