कभी कोई इक्छा पूरी नहीं होती तो उनकी तस्वीर पलटकर उल्टा रख देता हूँ, तो कभी इक्छा पूरी होती है तो उन्हें सिक्के भी चढ़ाता हूँ। कभी बच्चों की तरह उन्हें चाकलेट खाने को देता हूँ, तो कभी उनकी तस्वीर लेकर देर तक रोता हूँ। उन्हें मेरी हर बात पता है, हर राज पता है।
उन्हें लेकर अनेकों छोटी बड़ी बातें, विचार मन में तैरते रहते हैं। उनके साथ हृदय के एक कोने में अलग ही दुनिया बसा रखी है। उस दुनिया में मैं उनके साथ हंसता हूँ, रोता हूँ, जीता हूँ। जिन्हें लिख दूं तो आप सब मुझे पागल कहेंगे, अहंकारी कहेंगे, गुरुद्रोही कहेंगे, नास्तिक कहेंगे और तुरंत अनफ्रेंड भी कर देंगे। कहने को बहुत कुछ है लेकिन हृदय की बात किससे कहें, कैसे कहें, किन शब्दों में कहें??
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