बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

संतों का कठोर जीवन...💐

दो रोटी के लिए हाथ फैलाते देखा है, शारीरिक तकलीफों से कराहते देखा है, मदद के लिए गुहार लगाते देखा है, लोगों द्वारा उन्हें दुत्कारते देखा है, अंतिम समय में जीर्णशीर्ण अवस्था में पल पल मरते देखा है। बुढ़ापे में उनकी कठोर जिंदगी की कल्पना मात्र से ही हालत पतली हो जाती है, रूह काँप उठती है। 

कभी मैं भी घर द्वार छोड़कर उसी रास्ते पर चलने को आतुर था जिस रास्ते पर गृह त्यागी गुजरे थे। युवावस्था में संतों का जीवन बड़ा लुभावना लगता था, उनका ओजपूर्ण व्यक्तित्व आकर्षित करता था। उनकी वाणी बड़ी मीठी लगती थी, उर्जा से भर देती थी। 

बहुत सोच विचार और सलाह मशविरे के बाद रास्ते से लौट आया, शादी करके घर बसा लिया, पेट पालने लायक रोटी कमा लिया। आज अहसास होता है कि मेरा निर्णय सही था। शादी, परिवार, बच्चे, नौकरी, व्यवसाय आदि साहब के मार्ग में कभी बाधा नहीं बनते बल्कि सहयोगी ही होते हैं।

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