कभी मैं भी घर द्वार छोड़कर उसी रास्ते पर चलने को आतुर था जिस रास्ते पर गृह त्यागी गुजरे थे। युवावस्था में संतों का जीवन बड़ा लुभावना लगता था, उनका ओजपूर्ण व्यक्तित्व आकर्षित करता था। उनकी वाणी बड़ी मीठी लगती थी, उर्जा से भर देती थी।
बहुत सोच विचार और सलाह मशविरे के बाद रास्ते से लौट आया, शादी करके घर बसा लिया, पेट पालने लायक रोटी कमा लिया। आज अहसास होता है कि मेरा निर्णय सही था। शादी, परिवार, बच्चे, नौकरी, व्यवसाय आदि साहब के मार्ग में कभी बाधा नहीं बनते बल्कि सहयोगी ही होते हैं।
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